आपकी कलम
भारत में 68 में से एक बच्चा ऑटिज्म का रोगी : अधिक उम्र वाले माता-पिता के बच्चे मानसिक तौर पर कमजोर हो सकते हैं...
S.P.MITTAL BLOGGER
अजमेर, ब्यावर और पुष्कर में 9 अप्रैल तक ऑटिज्म रोग की निशुल्क जांच होगी
मैं राजस्थान महिला कल्याण मंडल संस्था के निदेशक राकेश कौशिक और संस्था की मुख्य कार्यकारी क्षमा कौशिक का आभारी हुं कि उन्होंने मुझे छोटे बच्चों में पाए जाने वाले ऑटिज्म रोग के बारे में जानकारी उपलबध् करवाई। 2 अप्रैल 2025 को वर्ल्ड ऑटिज्म डे मनाया जाता है।
इस अवसर पर संस्था के अजमेर के पंचशील नगर सी ब्लॉक में डॉ. क्षेत्रपाल अस्पताल के पास अद्वैत सेंटर फॉर एक्सीलेंस पर एक समारोह रखा गया। इस समारोह में मुझे मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया। अजमेर के जेएलएन अस्पताल की मनोरोग चिकित्सक डॉ. मेघ्ज्ञ्क्रा ने ऑटिज्म के बारे में चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत में 68 बच्चों के जन्म पर एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार होता है। चार ऑटिज्म वाले बच्चों में तीन लड़के होते हैं।
यानी लड़कियों के मुकाबले लड़के ऑटिज्म रोगी होते हैं। भारत में ऑटिज्म के शिकार बच्चों की संख्या में वृद्धि हो रही है। इसका प्रमुख कारण है कि अधिक उम्र में शादी होना। जब अधिक उम्र में शादी होती है तो फिर बच्चे भी देर से पैदा होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 25 की उम्र में शादी करने वालों के बच्चे स्वस्थ होते हैं, जबकि 35 की उम्र वाले माता पिता के बच्चे कई रोगों से पीड़ित होते हैं।
कार्यक्रम में संस्था की मुख्य कार्यकारी क्षमा कौशिक ने बताया कि कई बार माता-पिता को यह पता ही नहीं चलता कि उसका बच्चा मानसिक तौर पर कमजोर है। जब बच्चे को स्कूल भेजा जाता है, तब स्कूल के शिक्षक बताते हैं कि बच्चा सामान्य प्रवृत्ति का नहीं है। बच्चा जन्म लेने के बाद से ही सीखने लगता है। जन्म के थोड़े दिन बाद ही अंधेरे और रोशनी के साथ साथ आवाज को भी समझता है, लेकिन जो बच्चा ऑटिज्म यानी मानसिक दृष्टि से कमजोर है, उस पर रोशनी, अंधेरे और आवाज का असर नहीं होता।
जब बच्चा चलने लगता है कि तो स्वस्थ बच्चा गिरने से डरता है, लेकिन ऑटिज्म वाला बच्चा दुर्घटना का शिकार हो जाता है। उन्होंने बताया कि छोटी-छोटी बातों से यह पता लगाया जाता है कि बच्चा मानसिक तौर पर कमजोर तो नहीं है। बच्चे की जांच के लिए जो साधन और उपकरण चाहिए वह उनके अद्वैत सेंटर पर उपलब्ध है। जो बच्चे ऑटिज्म से ग्रस्त है, उनका इलाज भी किया जाता है। यदि समय रहते इलाज शुरू हो जाए तो बच्चे को रोग मुक्त किया जा सकता है।
कई बार माता-पिता की लापरवाही की वजह से ऑटिज्म रोग स्थायी हो जाता है। यही बच्चे बड़े होकर विमंदित बन जाते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चे के जन्म के बाद समय समय पर प्रवृत्ति को जांचा जाए। उम्र के हिसाब से बच्चे का शरीर और दिमाग भी विकसित होना चाहिए। कई बार बच्चे सामान्य दिखते हैं, लेकिन वे ऑटिज्म के शिकार होते हैं।
संस्था के निदेशक राकेश कौशिक ने बताया कि वर्ल्ड ऑटिज्म के उपलक्ष में 2 से 9 अप्रैल तक उनके पंचशील स्थित अद्वैत सेंटर के साथ साथ ब्यावर में नेहरू रोड के बाहर मुनौत कॉलोनी स्थित संजय स्कूल तथा पुष्कर में पुराने रंगजी के मंदिर में उम्मीद सेंटर पर बच्चों में ऑटिज्म रोग की जांच निशुल्क की जा रही है। ऑटिज्म रोग और उसके निदान के लिए संस्था की गतिविधियों की जानकारी मोबाइल नंबर 9829140992 पर राकेश कौशिक से ली जा सकती है।
S.P.MITTAL BLOGGER