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भाजपा की चुनावी पंगत में बाहर से आये नेता अब तक बाहर : "पावणे" कब जिमेंगे?

नितिनमोहन शर्मा
भाजपा की चुनावी पंगत में बाहर से आये नेता अब तक बाहर : "पावणे" कब जिमेंगे?
भाजपा की चुनावी पंगत में बाहर से आये नेता अब तक बाहर : "पावणे" कब जिमेंगे?
  •  संजय, विशाल, पंकज, अंतरसिंह, स्वप्निल, रामकिशोर की चुनाव में क्या भूमिका? भाजपा में अब तक कुछ तय नही 
  •  मिशन 2023 के मेन हीरो थे नेता, दलबदल के बाद अब सहायक अभिनेता भी नही 
  •  चुनाव कोर कमेटी, विभिन्न समितियों, चुनाव प्रबंधन से अब तक दूर है कांग्रेस से भाजपा में गए दिग्गज नेता 
  •  बाहर से आये नेताओ की भूमिका तलाश रही भाजपा, अल्पसंख्यक इलाको की मिल सकती है जिम्मेदारी..! 

 नितिनमोहन शर्मा

बराती कम, घराती ज्यादा नजर आए और " पावणे " नही कहलाये

भाजपा में "चुनावी पंगत" बिछ चुकी हैं। चुनावी तैयारियो के रूप में संगठन स्तर पर प्रतिदिन " जीमना-चुठना" चल रहा हैं। लेकिन इस पंगत से "पावणे" बाहर हैं। जबकि लोकव्यवहार में "पावणो' को खासा महत्ब दिया जाता हैं। उन्हें हर काम मे आगे रखा जाता हैं। खूब मान सम्मान मिलता हैं। " पावणे" पहली पंगत में ही जीमते भी हैं। लेकिन भाजपा की इस चुनावी पंगत से वे "पावणे" अब तक दूर हैं, जो दूसरे दल से कमलदल में आये हैं।

"पावणे" कोई " हल्के-पतले भी नही हैं। सब के सब भारी भरकम हैं। चाहे बदन के दम पर या धन के दम पर। सब दमदार है लेकिन नया दल " हाथ ही रखने" नही दे रहा। न मैदानी दम दे रहा। नतीजतन "पावणे" मिशन 2024 की रंगत औऱ बिछ चुकी चुनावी पंगत के बावजूद दूर खड़े रहकर टुकुर टुकुर " चुनावी ब्याह" देखने को मजबूर हैं। बाराती बन वे बड़ी बेसब्री से " घराती" यानी भाजपा की तरफ देख रहे है कि कुछ कामकाज मिल जाये। ताकि बराती कम, घराती ज्यादा नजर आए और " पावणे " नही कहलाये। 

जी हां, ये बात है इंदौर जिले के उन नेताओं की जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये हैं। सब के सब कांग्रेस के दिग्गज नेता रहें हैं। चाहे फिर मैदानी जमावट हो या फिर चुनावी जमावट, ये नेता अपने अपने क्षेत्र में खासा असर रखते हैं और कई कई बार कांग्रेस  की लाज बचाते आये हैं। सबके सब नेता अपने दल में जिताऊ चेहरे भी माने जाते हैं। पार्टी गाहे बगाहे इन पर आंख मूंदकर दांव लगाती रही हैं।

फिर चाहे वह हर बार, हर चुनाव में दाँव पर लग जाने वाले पंकज संघवी हो या फिर मैदानी नेता अंतरसिंह दरबार। भाजपाई गढ़ को भेदने वाले संजय शुक्ला हो या फिर देपालपुर जैसे ग्रामीण इलाके में कांग्रेस को जीवित रखने वाले पटेल परिवार के विशाल पटेल। महू विधानसभा का दल बदलने के बाद भी झट से टिकट ले आने वाले रामकिशोर शुक्ला हो या फिर लोकसभा का चुनाव लड़ने का दम भरने वाले स्वप्निल कोठारी हो। सबके सब कांग्रेस के " नाक के बाल" थे। अब ये सब बेहाल हैं।

आज ये सब नेता ससम्मान भाजपा में ले तो लिए गए है लेकिन इन्हें वैसे ही बैठा रखा है जैसे " पावणो" को बैठाया जाता हैं। कोई काम नही। जबकि चुनाव सिर पर हैं। अपने पुराने दल में होते तो अभी इंदौर संसदीय सीट की कोर कमेटी के कर्ताधर्ता होते। भाजपा में तो कर्ताधर्ता तो दूर, कार्यकर्ता भी नही हुए। इन नेताओं की अब तक बस एक ही भूमिका अघोषित रूप से तय हुई हैं और वह है स्वागत सत्कार की।

यानी जब कोई मेहमान आये या जाए तो मुंह दिखाई की रस्म अदा करने तक की भूमिका तक अब तक ये नेता सीमित है। लिहाज़ा कोई बड़ा नेता आता है तो विमानतल या सभा मंच पर नजर आते है और फिर मन मारकर नेपथ्य में चले जाते हैं। ये मुंह दिखाई की रस्म अदायगी का काम भी इसलिए मिला है कि इसके जरिये भाजपा में सबसे मेलजोल हो जाएगा। साथ ही कांग्रेस सहित सबको ये बताया और जँचाया जा सके कि देख लो अब ये सब हमारे पास हैं।

अभिनेता थे, सहायक अभिनेता भी नही रहे..! 

कांग्रेस से तमाम ये नेता अपने अपने दल में मुख्य भूमिका में थे। यानी कांग्रेस की फ़िल्म के मुख्य हीरो थे। मेन स्टार थे, जिनके बुते कांग्रेस की फ़िल्म, इंदौर जैसे भाजपाई गढ़ के किसी न किसी इलाके में चल जाती थी। इन नेताओं ने कभी भी कांग्रेस की फ़िल्म इंदौर में पीटने नही दी। न फ्लॉप होने दी। दुर्दिनों के दौर में भी कांग्रेस की उम्मीद बने रहे। पार्टी को भरोसा था कि इनके नायकत्व में फ़िल्म भले ही ब्लॉक बस्टर या सुपर हिट हो न हो, फ्लॉप भी नही होगी।

पंकज संघवी इसमे सबसे भरोसेमंद किरदार थे। उसके बाद उन्ही की तर्ज पर बीते एक दशक से संजय शुक्ला पार्टी के खेवनहार हो गए। चाहे विधानसभा हो या महापौर का चुनाव, पार्टी उन्हें ही वैसे आगे करने लगी जैसे पंकज संघवी को किया करती थी। ये तो शहर की फ़िल्म के मशहूर किरदार थे। गांव की बात करे तो अंतरसिंह दरबार भी बड़े नायक थे। हार जरूर रहे थे लेकिन इलाके में अपने किरदार की धमक बरकरार रखी। भाजपा के दिग्गज नेताओं को " जोर" करवा चुके हैं। देपालपुर की राजनीति में ये ही रोल विशाल पटेल परिवार का रहा हैं। अब ये सब कांग्रेस के मेन हीरो, भाजपा में जाकर फिलहाल तो सहायक अभिनेता भी नजर नही आ रहें। 

पार्टी तलाश रही है भूमिका, जल्द पंगत में होंगे शामिल 

 कांगेस से भाजपा में गए नेता यू ही कमलदल में " शोभा की सुपारी" बनकर नही बैठे रहेंगे। यानी इनकी पावने वाली भूमिका के दिन जल्द लद सकते है ओर ये नेता भी स्वयम को बराती नही, घराती बोल पाएंगे। पार्टी मिशन 2024 में इनके लिए भी भूमिका तलाश रही हैं। भाजपा जैसे दल में ऐसे अहम चुनाव में सबकी भूमिका तय रहती हैं। हर छोटा बड़ा नेता किसी न किसी चुनावी भूमिका में होता ही है।

सूत्रों की माने तो कांग्रेस से आये इन नेताओं से पार्टी इनकी ताकत का ही उपयोग करेगी। जो अब तक कांग्रेस के लिये खर्च करते थे। इसमें सबसे अहम है इन नेताओं का अल्पसंख्यक वर्ग से नाता। सूत्र बताते है कि भाजपा बस इसी नाते को मिशन 2024 में इन नेताओं के जरिये भुनाना चाहती है। लिहाजा जल्द ही ये सब नेताओ के पास चुनावी पंगत में बैठने का मौका मिलने वाला हैं।

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