धर्मशास्त्र

आपका शरीर उसी तरह से है, जैसे किसी मकान का कोई एक कमरा : परम पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज

Paliwalwani
आपका शरीर उसी तरह से है, जैसे किसी मकान का कोई एक कमरा : परम पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज
आपका शरीर उसी तरह से है, जैसे किसी मकान का कोई एक कमरा : परम पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज

आपका शरीर उसी तरह से है जैसे किसी मकान का कोई एक कमरा। कमरे में खिड़कियां भी हैं और दरवाजे भी हैं। उस कमरे में अगर आपने एक खिड़की खोली है तो हवा का आना और जाना नहीं हो पाएगा। कमरे में वायु प्रवाह के लिए एक ओर प्रवेष तथा दूसरी ओर निकास का मार्ग होना चाहिए। हवा एक तरफ से अन्दर आए और दूसरी ओर से बाहर जाए। इसलिए पहली खिड़की खोलने के साथ दूसरी खिड़की भी खोल दीजिए। जैसे ही दूसरी खिड़की खुलेगी ताजी हवा अन्दर प्रवेष करेगी और प्रवेष करते ही गंदी हवा को दूसरी ओर से बाहर निकाल देगी।

आपको भी ऐसा ही करना है। विचारों और विकारों को बाहर निकाल दीजिए, जैसे ही आपके अन्दर खालीपन आएगा उसी खालीपन को भरने के लिए परमात्मा की कृपाएं आपके अन्दर प्रवेष कर जाएंगी और उसकी कृपा हो जाएगी। इसलिए अपने आपको खाली करना जरूरी है, जब आप ऐसा कर लेंगे तो जब भी एकांत में होंगे तो आप एक अलग ही तरह की षांति महससू करेंगे।

ध्यान-साधना के लिए पहले अपने मन को साधने की कोषिष कीजिए। आप अपने आसन पर दस मिनट से बीस मिनट तक स्थिरता से बैठें और कोशिश करें कि इन क्षणों में हिलंे-डुलें भी नहीं। आसन का चयन भी ऐसा करें जिसमें आप आसानी से बैठ सकें और अपनी रीढ़ को सीधा रख सकें। 

आसन पर बैठे-बैठे आप आज्ञाचक्र में ध्यान लगाएं। आज्ञाचक्र आपके मस्तक पर जहां तिलक लगाते हैं वहां स्थित है और इसी स्थान पर महिलाएं बिंदी लगाती हैं। माथे के इस अग्र भाग पर ध्यान टिकाकर अपने अन्दर खो जाना चाहिए। जब भी आपका ध्यान में बैठने का मन करे तो सबसे पहले अपने मन और मस्तिष्क को विचारों से खाली करें। मतलब आपका मन मस्तिष्क विचारषून्य होना चाहिए। जैसे ही आप मन को खाली करेंगे वैसे ही परमात्मा की अनुभूतियां अंदर उतरनी षुरू हो जाएंगी। आपको सिर्फ इतना ही करना है कि अपने को अन्य विचारों और तनावों से खाली करना है। एक तरफ से प्रभु के आने का द्वार बना दें, दूसरी तरफ से अन्दर के विचारों और विकारों के बाहर जाने की राह बना दें।

क्योंकि ध्यान एक प्रकार की नींद है जिसमें होष रहता है लेकिन मन सो जाता है। जब मन सो जाता है तो नींद आती है। सोने के लिए आप अपने आप को खाली करते हैं, कुछ भी नहीं सोचते, विचारषून्य होकर जब आप लेटते हैं तो नींद आ जाती है। नींद में सपने भी तभी आते हैं जब मन के सो जाने से उसकी सारी षक्तियां खो जाएं, लेकिन चित्त का आत्मा के साथ संबंध जुड़ जाए। आपके चित्त में जो याददाष्त है उसके साथ जब आत्मा का संबंध जुड़ता है तब स्वप्न आते हैं।

जो कुछ भी अन्दर चित्त में रिकार्ड है, यादें हैं, वे आत्मा के साथ सम्बंधित हो जाती हैं। आत्मा उस समय सूक्ष्म नाड़ी में प्रवेष करती है और चित्त के साथ जैसे ही उसका जुड़ाव होता है। तो सपने दिखाई देते हैं। परन्तु उस समय कोषिष यही होती है कि स्वप्नावस्था से वापिस नींद में आ जाएं। अगर आप ग्यारह बजे रात में नींद लेते हैं तो दो बजे के बाद फिर आप वहां से वापिस चलते हैं जैसे किसी पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने के बाद कोई आदमी वापिस चलता है तो उतरने में आसानी होती है कठिनाई नहीं होती। वैसे ही नींद की गहराई में जाने के बाद जब वापिस आ रहे होते हैं तो उस समय ऐसी स्थिति बनती है कि नींद बीच-बीच में उखड़ती रहती है नींद उखड़ती है तो स्वप्न आ जाता है। स्वप्न जैसे ही आया वह आपको फिर दोबारा नींद में पहुंचाकर गुम हो जाएगा। दोबारा आपकी नींद टूटेगी तो फिर बीच में स्वप्न आएगा।

आप सो रहे हैं और आपकी आत्मा ने स्वप्न देखा और उस स्वप्न की याद भी बची रह गई। परन्तु जिस समय आप ध्यान में होते हैं, उस समय बस आपको इतनी याद रहती है कि हम षांति में थे, आनन्द की अनुभति में थे। बाकी कुछ भी याद नहीं रहेगा।

जैसे ही आप अपने आप में खो जाएंगे, आपका ध्यान टिक जाएगा। अन्दर केवल षांति की अनुभूति रहेगी। जैसे ही आप ध्यान की गहराई में उतरते हैं वैसे ही अन्दर की अतृप्त इच्छाएं जो कुछ चाह करती हैं, उनकी तृप्ति हो जाती है।

इच्छाओं की तृप्ति इस तरह से होती है कि मान लीजिए, अगर किसी आदमी को कुछ सुन्दर देखने की इच्छा है तो उसकी यह इच्छा जैसे भगवान का सौन्दर्य या संसार के किसी पदार्थ के सौन्दर्य के रूप में सामने आता है। ऐसा महसूस होता है कि बहुत सुन्दर फूल खिले हुए हैं। सौन्दर्य से भरपूर फूल, इंद्रधनुषी रंग, चमकता हुआ चांद और सूरज बहुत सारे सितारे तरह-तरह की रंग-बिरंगी तितलियां आदि सुन्दर दृष्य एकदम सामने आएंगे ।

यह दृष्य ऐसे मनमोहक लगेंगे कि जैसे संसार में पहले आपने ऐसा कहीं नहीं देखा होगा और मन यही कहेगा कि परमात्मा तेरी महिमा, तेरी लीला देख रहा हूं। तू कितना सुन्दर है, तेरा संसार कितना सुन्दर है। किसी को यदि सुगन्ध लेने की इच्छा है तो उसे तरह-तरह की सुगन्ध महसूस होने लगेगी। और उस समय जैसे किसी को लगता है कि अब मैं चिन्तामुक्त हो गया हूं तो उसे वैसे ही अनुभूतियां महसूस होंगी।

किसी को यह महसूस होगा कि उसे संसार के सारे स्वादिष्ट पदार्थ जो आज तक नहीं खा पाए थे उपलब्ध हो गए हैं। वहां जिह्ना को स्वाद की अनुभूति होगी। किसी को भोग वासनाओं की तृप्ति महसूस होती है। इसके बाद की अनुभूतियों में यह सारी चीजें खो जाती हैं। अन्दर एक ऐसी असीम षांन्ति महसूस होती है कि जिसके आनन्द में डूबा हुआ इंसान हिलना भी नहीं चाहता।

ध्यान में साधक की वही स्थिति होती है जिस प्रकार कोई बहुत स्वादिष्ट चीज मुख में आ जाए तो आदमी मुख बंद कर लेता है, बहुत सुन्दर मन पसंद चीज मिल जाए तो आदमी आंखें बन्द करके उसे अन्दर ही अन्दर महसूस करता है, मानों परम सुख की उपलब्धि मिल गई। वह सुख के उस स्वरूप को अन्दर ही अन्दर पी रहा है। इंसान उस असीम आनन्द मंे डूब जाता है। वह उससे ध्यान नहीं हटाना चाहता है।

इसलिए जिसकी ऐसी निर्विकल्प समाधि सिद्ध हो जाए फिर वह उस स्थिति में पहुंच ऐसा खो जाएगा कि अगर समाधि टूट जाए तो उसे संसार में कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा। वह रोएगा चिल्लाएगा और बार-बार कहेगा कि मुझे वहीं ले चलो जहां पर मैं था। इसलिए जिन लोगों ने कभी वह स्वाद ले लिया वे लोग फिर संसार के किसी पदार्थ के आकर्षण में नहीं बंध पाए। उन्हें कुछ अच्छा ही नहीं लगा। 

परमात्मा की भक्ति और उसके ध्यान में डूबने के लिए व्यक्ति को ऐसा उपयुक्त स्थान ढूंढना चाहिए जहां बैठ कर मन भगवान में तल्लीन हो जाए। अपने घर में ऐसा स्थान बना सकें तो बहुत अच्छी बात है नहीं तो किसी आश्रम में या वन में वह स्थान ढूंढना चाहिए। जहां आपका मन ध्यान में रम जाए।

whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
Latest News
Trending News