धर्मशास्त्र

कबीर साहेब जी की वाणी जगततगुरु संत रामपाल जी के मुखाविंद से वाणी

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कबीर साहेब जी की वाणी जगततगुरु संत रामपाल जी के मुखाविंद से वाणी
कबीर साहेब जी की वाणी जगततगुरु संत रामपाल जी के मुखाविंद से वाणी

गुरु भगता मम आतम सोई। वाके हृदय रहूँ समोई।।

अड़सठ तीर्थ भ्रम भ्रम आवे। सो फल गुरु के चरनों पावे।।                   

आमेट. परमात्मा ने स्वयं बताया है कि गुरु के भक्त मेरी आत्मा हैं, शेष काल के जाल में फंसकर काल की आत्मा हैं. जो मेरे कृपापात्र संत को गुरु बनाए हैं, मै उसके हृदय में रहता हूँ अर्थात् मेरा आशीर्वाद सदा गुरु भक्त पर बना रहता है. अड़सठ प्रकार के तीर्थ स्थान माने गए हैं. पुराणों में कहा है कि अड़सठ तीर्थों का भ्रमण करने से मोक्ष प्राप्त होता है. परमेश्वर ने कहा है कि वैसे तो तीर्थ भ्रमण से कोई लाभ नहीं होता, हानि होती है क्योंकि तीर्थों पर जाने का निर्देश श्रीमद्भगवत गीता में नहीं है. जिस कारण से शास्त्र विरुद्ध साधना होने के कारण व्यर्थ है. (प्रमाण गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में) फिर भी यदि आप मानते हैं कि 68 तीर्थों पर जाने से मोक्ष लाभ है, तो 68 तीर्थों का भ्रमाण करने में पुराने समय में लगभग एक वर्ष लगता था. वर्तमान में तीन महीने तथा तीन-चार लाख रुपये का गाड़ी खर्च होता है. 68 तीर्थों का फल पूर्ण सन्त के चरणों की धूल (चरणामृत) से ही आप जी को प्राप्त हो जाएगा. परंतु गुरु पुरा हो. इसलिए गुरु की महिमा अपार तथा लाभदायक हैं. उक्त जानकारी समाजसेवी श्री राजू भोई ने पालीवाल वाणी को दी.

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