पाली
पालीवाल ब्राह्मण 730 साल से नहीं मनाते रक्षा बंधन पर्व : पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाएगी
Paliwalwaniपाली : कल पूरे देश में भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार में धूमधाम से मनाने जा रहा है. जहां बहने अपने भाइयों की कलाई पर रेशम का धागा यानि राखी बांध रही होगी और वहीं भाई तोहफे साथ उनकी रक्षा करने का वचन देगें. लेकिन राजस्थान में एक गांव ऐसा भी है, जहां पालीवाल समाज के लोग राखी पर्व को नहीं मनाया जाता है. वह लोग इस दिन को काला दिवस के रूप में मानते हैं. पूरे गांव में खुशियों की जगह सन्नाटा पसरा रहता है. पालीवाल समाज की ओर से श्रावणी पूर्णिमा पर रक्षा बंधन का पर्व नहीं मनाया जाएगा. श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन का पर्व सभी जाति के लोग मनाते हैं, लेकिन पालीवाल ब्राह्मण समाज इस पर्व को नहीं मनाते हैं. पालीवाल ब्राह्मण समाज के लिए यह दिन बलिदान और एकता का दिन है.
उन्होंने बताया कि 730 वर्ष पहले मुगल साम्राज्य मोहम्मद गजनवी ने पाली पर आक्रमण किया था और गोवंश को मारकर उनके टुकड़ों को लोर्डिया तालाब में डाल दिया था, इसलिए श्रावणी पूर्णिमा के दिन पालीवाल ब्राह्मण समाज ने पाली नगरी का त्याग करा था. साथ ही समाज ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे यहां का पानी भी नहीं पीएंगे.
पूर्वजों के त्याग व बलिदान का प्रतीक धौला चोतरा, जिसके नीचे 9 मण जनेऊ और 84 मण हाथी दांत चूड़ा दबा है. यह धौला चौतरा समाज की आने वाली पीढ़ियों को पूर्वजों के बलिदान का याद दिलाता है. हर वर्ष श्रावणी पूर्णिमा के दिन पाली में पालीवाल समाज द्वारा तर्पण व एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
देशभर से समाजबंधु यहां पहुंचते हैं, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण समाजबंधु पाली में एकत्रित नहीं हो सकते हैं, इसलिए समाज की ओर से राखी का पर्व तर्पण व एकता दिवस रूप में मनाया जाएगा. साथ ही पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाएगी.