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Indian Railways : अब रेलवे के स्कूल जाएंगे निजी हाथों में!

Paliwalwani
Indian Railways : अब रेलवे के स्कूल जाएंगे निजी हाथों में!
Indian Railways : अब रेलवे के स्कूल जाएंगे निजी हाथों में!

आप यदि रेलवे (Indian Railways) से जुड़े हैं तो रेलवे के स्कूलों (Railway School) के बारे में अवश्य जानते होंगे। देश में जहां भी आजादी के पहले के रेल कारखाने (Railway Workshop) या बड़े इस्टेबलिसमेंट (Railway Establishment) हैं, वहां रेलवे का स्कूल चल रहा है। अब इन स्कूलों से रेल मंत्रालय (Ministry of Railways) पीछा छुड़ाएगा। केंद्र सरकार ने तय किया है कि रेलवे इन स्कूलों को आगे नहीं चलाएगा। इन स्कूलों को या तो केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) को सौंप दिया जाएगा या फिर राज्य सरकार (State Government) को। यदि ये राजी नहीं हुए तो फिर उन स्कूलों को निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा।

केंद्र सरकार का क्या है फैसला?

भारत सरकार से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सरकार ने रेलवे को स्कूल चलाने की जिम्मेदारी से मुक्त करने का फैसला किया है। दरअसल, इस तरह का एक प्रस्ताव केंद्रीय वित्त मंत्रालय के प्रिंसिपल इकोनोमिक एडवाइजर संजीव सान्याल ने तैयार किया था। इसे राष्ट्रपति भवन स्थित केबिनेट सेक्रेटारिएट को भेजा गया था। बताया जाता है कि इस प्रस्ताव पर केबिनेट सेक्रेटारिएट की हरी झंडी मिल गई है। इस बारे में पिछले दिनों ही रेल मंत्रालय को जरूरी कम्यूनिकेशन भेज दिया गया है। इस पर रेलवे को तत्काल कार्रवाई करनी है। केबिनेट सेक्रेटारिएट ने इस प्रस्ताव पर रेलवे से प्रगति रिपोर्ट भी तलब किया है।

क्यों रेलवे नहीं चलाएगा इन स्कूलों को?

यह तो आप जानते ही होंगे कि अंग्रेजों ने जहां भी रेलवे के कारखाने (Railway Workshop) या बिग इस्टेबलिसमेंट लगाया था, वहां टाउनशिप बसाने से लेकर सारी व्यवस्था की थी। इनमें रेल कर्मचारियों के बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल भी शामिल था। उस समय रेलवे कंपनी के लिए स्कूल बनाना मजबूरी थी, क्योंकि तब आसपास कोई स्कूल नहीं था। अब गांव-गांव में स्कूल खुल गए हैं। इसलिए सरकार को लगता है कि चलाए, यह तर्कसंगत फैसला नहीं है।

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रेलवे के स्कूल में अधिकतर बच्चे रेल कर्मचारी के हैं?

रेलवे का स्कूल खोला तो गया है रेल कर्मचारियों के बच्चों के लिए। लेकिन, इस समय इसमें अधिकतर बाहर के बच्चे पढ़ रहे हैं। इस समय देश में रेलवे के करीब 95 स्कूल चल रहे हैं। इनमें रेल कर्मचारी के बच्चे तो करीब 15 हजार ही हैं, जबकि बाहर के बच्चे 34 हजार से भी ज्यादा पढ़ रहे हैं। यही नहीं, रेलवे 87 केंद्रीय विद्यालयों को भी प्रायोजित करता है। इसमें भी अधिकतर बच्चे बाहर के ही हैं। इन स्कूलों में रेल कर्मचारियों के तो करीब 33 हजार बच्चे हैं लेकिन बाहर के 55 हजार से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं। यही नहीं, इस समय रेलवे के सभी कर्मचारियों के 4 से 18 साल के बच्चों की संख्या करीब 8 लाख है। लेकिन इनमें से दो फीसदी से भी कम बच्चे रेलवे के स्कूलों में पढ़ते हैं। ऐसे में रेलवे के लिए स्कूल चलाना हाथी पालने जैसा है।

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रेल कर्मचारी के बच्चे क्यों नहीं पढ़ते रेलवे स्कूलो में?

रेलवे से जुड़े कर्मचारियों का कहना है कि अधिकतर रेलवे स्कूल अंग्रेजी राज में बने थे। उन स्कूलों की छत चूने लगी है। संसाधन भी पुराने हैं। वहां पर्याप्त शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का भी अभाव है। इसलिए रेलवे के कर्मचारी अपने बच्चों को आसपास के निजी स्कूलों (Private Schools) में पढ़ाना ज्यादा पसंद करते हैं।

क्या होगा रेलवे स्कूलों का?

सरकार का कहना है कि रेलवे के स्कूलों को प्राथमिकता के आधार पर केंद्रीय विद्यालय संगठन को सौंप दिया जाएगा। यदि केंद्रीय विद्यालय संगठन से लेने से इंकार करता है तो संबंधित राज्य की सरकार को सौंपा जाएगा। यदि वे भी तैयार नहीं हुए इन स्कूलों को सरकारी निजी भागीदारी में भी चलाया जा सकता है। मतलब कि इन स्कूलों को निजी क्षेत्र को सौंप दिया जाएगा। हां, यदि किसी दूर-दराज के स्थान में रेलवे को लगे कि वहां स्कूल चलाया जाना जरूरी है तो वह ऐसा कर सकता है।

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