मध्य प्रदेश

नागदा मंडी बिरला ग्राम एवं खाचरोद पुलिस थाने में पिछले 3 वर्षों में लगभग 3000 से ज्यादा आवेदन जांच के इंतजार में...!

Paliwalwani
नागदा मंडी बिरला ग्राम एवं खाचरोद पुलिस थाने में पिछले 3 वर्षों में लगभग 3000 से ज्यादा आवेदन जांच के इंतजार में...!
नागदा मंडी बिरला ग्राम एवं खाचरोद पुलिस थाने में पिछले 3 वर्षों में लगभग 3000 से ज्यादा आवेदन जांच के इंतजार में...!

खाचरोद :

मध्य प्रदेश की विधानसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि नागदा मंडी बिरला ग्राम एवं खाचरोद पुलिस थाने में पिछले 3 वर्षों में लगभग 3000 से ज्यादा आवेदन ऐसे पड़े हुए हैं, जिनकी जांच में बाकी है और आवेदन करता को किसी प्रकार की सूचना नहीं दी गई है देश की संपूर्ण न्याय प्रक्रिया का मूल आधार पुलिस थाने है नागदा खाचरोद शाहिद संपूर्ण देश का ही हाल है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन मत थाना प्रभारी के द्वारा किया जाता है नहीं उसे इलाके के एसडीओपी या न अगर कोई से अधीक्षक द्वारा किया जाता है ना जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा किया जाता है औरवरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा किया जाता है अपनी निरीक्षण टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्देश की उल्लंघन किया जाता है. 

आज जनता को न्याय प्राप्त करना एक चुनौती हो गई है कई जगह तो जनता के आवेदन ही नहीं लिए जाते हैं तो न्याय प्राप्त करना तो बहुत दूर की बात है आवेदन ले ली जाते हैं उसके बाद उसकी जांच नहीं की जाती है और जांच कर ली जाती है तो वर्षों तक आवेदक को सूचना नहीं की जाती है बहुत सा प्राप्त पैसे होते हैं कि पुलिस की इस गैर कानूनी प्रक्रिया से जनता पुलिस थाने तक नहीं पहुंचती है नेताओं के शॉर्टकट से बने इस माफिया के आतंक से किसी भी शिकायत का निष्पक्ष जांच किया जाना वर्तमान में पुलिस अधिकारियों के लिए संभव नहीं है भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए देश में बोलने वाले बहुत सारे नेता और कार्यकर्ता हो गए लेकिन जनता के हित में बोलने वाले लोगों संगठनों की बहुत कमी है जो इक्का दुक्का लोग बोलने का प्रयास करते हैं उनका प्रशासन  आतंक से डरा धमका कर बिठा देता है आज हमारे देश में इस माफिया ने संपूर्ण न्याय व्यवस्था को चौपट कर दिया है डेमोक्रेसी के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो गई डेमोक्रेसी में कार्य कर रहे दोनों राजनीतिक दल योजनाओं में लगे हुए हैं जिनको की जनता के मौलिक अधिकार और डेमोक्रेसी से कोई लेना-देना नहीं  देश में काम कर रहे समस्त सामाजिक कार्यकर्ता सामाजिक संगठन से अनुरोध करता है कि आने वाले लोकसभा विधानसभा चुनाव के समय इन मुद्दों को बड़ी सजकता से उठाएं जिससे कि मीडिया और राजनेता पर दबाव पड़े और देश की जनता को न्याय मिले और लोकतंत्र की स्थापना  हो

 संपूर्ण देश का सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने के संबंध में पालन किए जाने वाले निर्देश दिए हैं, इन निर्देशों पर नीचे चर्चा की गई है :

यदि सूचना से किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो संहिता की धारा 154 के तहत एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है और ऐसी स्थिति में कोई प्रारंभिक जांच की अनुमति नहीं है।यदि प्राप्त जानकारी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करती है, लेकिन जांच की आवश्यकता को इंगित करती है, तो प्रारंभिक जांच केवल यह सुनिश्चित करने के लिए की जा सकती है कि संज्ञेय अपराध का खुलासा हुआ है या नहीं।यदि पूछताछ में संज्ञेय अपराध होने का खुलासा होता है, तो एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में जहां प्रारंभिक जांच शिकायत को बंद करने में समाप्त होती है, ऐसे समापन की प्रविष्टि की एक प्रति पहले सूचनादाता को तुरंत और एक सप्ताह के भीतर प्रदान की जानी चाहिए। इसमें शिकायत को बंद करने और आगे न बढ़ने के कारणों का संक्षेप में खुलासा करना होगा।

संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर पुलिस अधिकारी अपराध दर्ज करने के अपने कर्तव्य से नहीं बच सकता। उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो एफआईआर दर्ज नहीं करते हैं यदि उनके द्वारा प्राप्त जानकारी से संज्ञेय अपराध का पता चलता है।प्रारंभिक जांच का दायरा प्राप्त जानकारी की सत्यता या अन्यथा को सत्यापित करना नहीं है, बल्कि केवल यह सुनिश्चित करना है कि क्या जानकारी किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है।किस प्रकार की और किस मामले में प्रारंभिक जांच की जानी है, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। जिन मामलों की प्रारंभिक जांच की जा सकती है उनकी श्रेणी इस प्रकार है:

वैवाहिक विवाद पारिवारिक विवाद

वाणिज्यिक अपराध(चिकित्सा लापरवाही के मामलेभ्रष्टाचार के मामले ऐसे मामले जहां आपराधिक शुरू करने में असामान्य देरी होती है उदाहरण के लिए, अभियोजन में 3 महीने से अधिक की देरी।

देरी के कारणों को संतोषजनक ढंग से बताए बिना मामले की रिपोर्ट करने में। उपरोक्त केवल दृष्टांत हैं और उन सभी स्थितियों का विस्तृत विवरण नहीं है जिनके लिए प्रारंभिक जांच की आवश्यकता हो सकती है।

अभियुक्तों और शिकायतकर्ता के अधिकारों को सुनिश्चित और संरक्षित करते हुए प्रारंभिक जांच समयबद्ध की जानी चाहिए और किसी भी स्थिति में 7 दिन से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस तरह की देरी के तथ्य और इसके कारणों को सामान्य डायरी प्रविष्टि में प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए।

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