इंदौर

अब अभिभावक बने...इंदौर : बाहर से आये स्टूडेंट्स को यू लावारिस न छोड़े, शहरवासी बने पालक

नितिनमोहन शर्मा
अब अभिभावक बने...इंदौर : बाहर से आये स्टूडेंट्स को यू लावारिस न छोड़े, शहरवासी बने पालक
अब अभिभावक बने...इंदौर : बाहर से आये स्टूडेंट्स को यू लावारिस न छोड़े, शहरवासी बने पालक
  • कोई मुंबई, पुणे, चेन्नई के नही, आपके मालवा निमाड़ के है ये सब बच्चे

  • राजनीतिक दलों के नेता कार्यकर्ता, सामजिक संगठन निभाये भूमिका

  • महिला संग़ठनों की भरमार, मैदान पकड़े नेत्रियां

  • स्टूडेंट्स वाले इलाकों के चौराहों पर कुर्सी डालकर बेठे नेता, राजनीति से हटकर भी कुछ कीजिये

नितिनमोहन शर्मा...✍️

ये ही तो असली इंदौर है। एक हद तक सब देखता है। झेलता है। फिर उठ खड़ा होता है। अराजकता के ख़िलाफ़। अव्यवस्था के विरुद्ध। नाईट लाइफ जैसे फैसलों के विरुद्ध भी इसी तरह इन्दौर मुखर हुआ। पहले देखता रहा कि ये " नया तमाशा " आखिर है क्या? जब तमाशे का बड़ा तमाशा होने लगा तो पहली शर्म इंदोरियो की आँखों मे उतरी ओर वह उठ खड़ा हुआ उस नाईट कल्चर के खिलाफ, जिसे नाईट लाइफ के नाम पर इस शहर पर जबरिया थोपा जा रहा है।

जबरिया महानगर बनाने के इस खटकरम के ख़िलाफ़ दलगत राजनीति से ऊपर उठकर शहर की राजनीति और शहर के बाशिंदो ने इस फैसले की मुखालफत की। जिम्मेदारों को स्पष्ट कर दिया कि नही चाहिए ऐसी राते, जिस पर किसी का नियंत्रण नही और जो शहर में नंगाई फैलाये। ड्रग, पब, बार, शराब और नशाखोरी को लंबे समय से देख रहा शहर अब ये सब बर्दाश्त करने के मूड में नही है। खासकर इस शहर में ड्रग के फलते फूलते व्यापार पर अब समय रहते अंकुश जरूरी है। दलीय नेताओ, सामाजिक संगठनों और मीडिया घरानो की नाराजगी के बाद सत्तारूढ़ दल पर अब दबाव है कि वे इतना सब होने के बाद भी इस शहर में ड्रग के नशे में डूबी ऐसी अराजक नाईट लाइफ चाहते है क्या जो पूरे देश मे इंदौर की बरसो पुरानी पहचान को शर्मसार कर दे? ख़ुलासा फर्स्ट ने सामजिक सरोकारों के नाते अगुवाई जरूर की लेकिन हिम्मत तो आप सबके एकसाथ जुटने से दूनी होना है न। तो आइए, हम इस समस्या के स्थाई निदान की तरफ बड़े। सुझाव ओर तरीक़े आपके पास भी होंगे ही...तो आप भी इस कार्य मे आगे आये कि कैसे शहर की मूल पहचान को कायम रखते हुए हम वाकई एजुकेशन हब बने रहे। अन्यथा वो दिन दूर नही जब कोई इंदौर आने के नाम से ही अपने बच्चो को ये कहते हुए रोक न ले कि वहां जाएगा तो पढ़ना लिखना तो दूर..बिगड़कर धूल हो जाएगा।

इंदोरियो.. क्या ये सुनना पसंद करेंगे आप?

इंदौर जाओगे...बिगड़कर धूल हो जाओगे "

 वक्त है, संभल जाईये..बचाइये शहर की संस्कारित पहचान, शालीन सँस्कृति को 

सब दोष बाहर से पढ़ने लिखने आये बच्चो पर मत मढ़िये। ये बच्चे कोई चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु, पुणे से नही आये है। ये आपके अगल बगल के बच्चे है। आपके मालवा निमाड़ के गांव कस्बों के बच्चे है ये सब। कोई कुक्षी अंजड़ बड़वानी धार धामनोद से है तो कोई खंडवा खरगोन बुरहानपुर का है। कोई ताल आलोट महिदपुर खाचरोद का है तो किसी ने हरदा हंडिया खिरकिया नेमावर से इंदौर की राह पकड़ी है। किसी के पेरेंट्स ने झाबुआ रतलाम जावरा मंदसौर से अपने बच्चो को बेहतर शिक्षा के लिए आपके शहर के भेज दिया है तो कोई अपने कैरियर के लिए उज्जैन नागदा देवास सोनकच्छ से यहां आया है। कुछ स्टूडेंट्स ग्वालियर से लेकर रीवा सागर और भोपाल से जबलपुर तक से इंदौर को मुफ़ीद मानकर यहां से पढ़ाई कर रहे हैं। इन सब बच्चो के दम से आपका इंदौर सिरमौर बन रहा है शिक्षा के क्षेत्र में जिसे आप एजुकेशन हब कहते कहते थकते नही। इन्ही बच्चो के दम पर इस शहर में कोचिंग सेंटर्स लाखो करोड़ो अरबो के वारे न्यारे कर रहे है। खाने पीने के धंधे चल रहे हैं। होस्टल्स के रूप में इन्ही बच्चो के दम पर शहर के कई हिस्सों के रोजगार का नया साधन खड़ा हो चुका है। आपके लोक परिवहन के साधन भी इन्ही के दम पर दौड़ रहे है। जरूरत बस इस शहर के ही कुछ नया करने की है। 

नाईट लाइफ के नाम से पसरते जा रहे नाईट कल्चर के खिलाफ शहर के रोष को अब नया मुकाम देने का वक्त आ गया है। बीते कुछ दिनों के मूवमेंट्स से ये तो साफ हो गया कि शहर इस तरह की रँगीन रातों का पक्षधर नही जिस पर किसी का अंकुश नही हो और जो राते सिर्फ अय्याशी ओर अश्लीलता का पर्याय बन कर रह जाये। राजनीतिक दलों से लेकर सामजिक संग़ठन भी इसे लेकर चिंतित है। शहरवासी तो उस दिन से ही नाराज है जबसे इस आशय का फैसला लिया गया था। चूंकि अब इस शहर में इस तरह के बड़े फैसले लेने और लागू करने में शहर के बाशिंदों की सलाह मशविरा बीते दिनों की बात हो गई है। अब तो अफसर जनता के प्रतिनिधियों यानी नेताओ से भी इस संदर्भ में कोई राय मशविरा नही करते। न नेताओ को जनता और शहर की तासीर से जुड़े ऐसे किसी मसले पर अब रुचि रह गई। वे या तो अपने दल में होने वाली उठापठक को लेकर चिंतित होते हे या फिर उसी फैसले पर हिलते डुलते और मुंह खोलते है जो उनकी राजनीतिक सेहत पर असर डालता है। अन्यथा वे गहरी चुप्पी ओढे रहते है। बहाना बना लेते है अपने दल के अनुशासन का या गाइडलाइंस का। कांग्रेस भाजपा दोनो इस मसले पर एक जैसे है। तीसरी ताकत वाली आम आदमी पार्टी या अन्य दल से उम्मीद ही बेमानी है।

अकेले भाजपा में ही नगर इकाई के अलावा दर्जन-दो दर्जन मोर्चा प्रकोष्ठ है। ये ही हाल कांग्रेस का है जहां ब्लॉक स्तर तक नेताओ की फ़ौज धूल खा रही है। सेकड़ो की संख्या में सामजिक संगठन है। दर्जनों महिला मंडल है। कई महिला संगठन के हाल तो ये है कि जैसे एक दिन आयोजन न हो तो तबियत खराब हो जाये। लेकिन सब मिलकर इन हालातों के लिए केवल पुलिस और प्रशासन को कोस रहे हैं। नेता भी ओर समाज सेवा के नाम से शहरभर में विचरते लोग भी। इसमे महिला पुरूष दोनो है। शहर की बिगड़ती सामाजिक और सांस्कृतिक आबोहवा में इन सबकी भी भूमिका भी हो तो बात बने। ये काम अकेले पुलिस का नही ओर न कलमनवीसों का। ये दोनों तो अपने अपने स्तर पर पहले दिन से लगे है। जरूरत है सामुदायिक निगरानी की। भरोसे की। ये भरोसा उन सबको देना होगा जिन्हें हम बाहरी बताते हुए इस समस्या का मूल कारण मान चुके हैं। तो क्या इन्हें बाहरी मानकर यू ही लावारिस छोड़ दिया जाए?

ऐसा कतई न करे। बल्कि आप हम सबको इन बच्चो का अभिभावक बनना है। स्थानीय पालक बनना है। बगेर बोले। आखिर ये शहर के भरोसे का मसला है। जिस भरोसे इन बच्चो के मा बाप ने इन्हें इंदौर भेजा है, उस भरोसे को कायम रखने के लिए इस शहर को अभिभावक बनना ही होगा। अन्यथा सोचिए आपके शहर में फिर कौन पेरेंट्स अपने बच्चे पढ़ने लिखने या खाने कमाने भेजेगा? इन्दौर की शालीन सँस्कृति ओर खानपान व आबोहवा के कारण तो ये सब यहाँ आये है। अगर यहां इसी तरह सब चलता रहा तो वो दिन दूर नही जब आपके अगल बगल के गांव कस्बों से भी बच्चो को ये कहकर इंदौर आने से रोक दे कि वहाँ जाएगा तो बिगड़ जाएगा। अब आपके इंदौर में मुम्बई चेन्नई पुणे बंगलौर के बच्चे तो पढ़ने आने से रहे। आपके शहर की बदनामी आपको अंचल से मिलने वाली ताकत से रोक देगी। आपका ये शहर, अंचल के शहर, गांव और कस्बों की आर्थिक ताकत से ही फल फूल रहा है। समस्या 'रँगीन रात' से भी कई गुना बढ़कर है जो शहर के आर्थिक ढांचे पर भी देर सबेर असर करेगी। आईटी हब वगेरह सब धरा रह जाएगा जब शहर ही असुरक्षित ओर अमर्यादित हो जाएगा तो।

..तो भईया थोड़ा राजनीति ओर कथित समाजसेवा से हटकर भी कर लो। थोड़ा किटी-बीसी-सजने संवरने के अयोजन से अलग कर के देखिए न? आखिर इसी इंदौर के दम पर तो आपकी राजनीति और समाज सेवा चल रही है न?आपकी किटी पार्टियां हो रही है न। तो फिर कुछ जिम्मेदारी और जवाबदेही आपकी भी तो बनती है न? कि सब कुछ पुलिस करे?और आप ड्राइंग रूम में बैठकर कड़क प्रतिक्रिया देते रहे?

शहर में है कितनी जगह जहा आप हमको फोकस करना है? मुश्किल से आधा दर्जन। भंवरकुआं चोराहा। भोलाराम उस्ताद मार्ग। गीता भवन चोराहा ओर उसके आसपास। एमआईजी-एलआईजी क्षेत्र। अटल द्वार। विजयनगर। बॉम्बे हॉस्पिटल। 

ये ही तो है वो इलाके जहा आपको वो लोग नजर आएंगे जिन्हें आप हम कोस रहे हैं। लड़के लड़कियों के झुंड के झुंड इन्ही इलाको में ही तो नजर आते है। इन हिस्सों से सटकर बने रहवासी इलाको में इन सबका रहना ठिकाना है। आप लोगो ने ही तो होस्टल्स बना लिए है। पेइंग गेस्ट रख लिए। दोनो समय भोजन की मेस भी खोल ली। तो कुछ जिम्मेदार आप भी बन जाईये। केवल हर माह मिलने वाले पैसे तक सिमित मत रहिए। इन बच्चो की थोड़ी खेर खबर भी लीजिये। वक्त वक्त पर। ये भी किसी मा बाप की उम्मीद ओर आस का एकमात्र केंद्र है। सोचिए जरा इनकी जगह आपके बच्चे होते तो? तब भी आप इसी तरह निरपेक्ष बने रहते? रोकते न? टोकते भी न? तो कुछ न सही तो कम से कम निगरानी तो बढ़ाइए ताकि इन्हें भी लगे कि कोई स्थानीय पालक बन उन पर नजर रखे हुए है। आखिर इन बच्चो के परिजनों ने आपके भरोसे, आपके शहर के भरोसे, शहर की अच्छाई के भरोसे ही तो यहां रख छोड़ा है। 

नेतागिरी से जुड़े लोग इन जगहों पर शाम होते ही कुर्सी डालकर बैठ क्यो नही जाते? किसी दादा खलीफा की तरह नही...दादाजी चाचाजी की तरह। भाई-पापा की तरह। आपके बैठने से असर आएगा। आपके अगल बगल में आपके साथ वाले भी रहना ही है। आप ओर आपके समर्थक कभी इनकी चिंता भी तो कर के दखिये एक अभिभावक की तरह नही तो एक अच्छे शहरी के नाते क्योकि बदनामी आपके शहर की ही तो हो रही है न..?? पुलिस जा रही है कोचिंग सेंटर्स और होस्टल्स में। आप नही जा सकते आपके इलाको के होस्टल्स ओर कोचिंग सेंटर में? अपना एजेंडा लेकर नही, स्टूडेंट्स की बेहतरी की सीख लेकर। जॉइए तो सही...सम्पर्क बढ़ाइए तो सही...संवाद कीजिये तो सही...फिर देखिए कैसे आप और उनमें समन्वय बढ़ता है। अगर ऐसा होता है तो ही शहर सही मायने में मध्यभारत प्रान्त का एजुकेशन हब माना जायेगा। अन्यथा ज्यादा नही, 5-10 साल में आपका शहर इतना बदनाम हो जाएगा कि कोई अपने बच्चे को ये कहकर ही इंदौर पढ़ने आने से रोक देगा कि वहाँ जाएगा...बिगड़कर धूल हो जाएगा।

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