इंदौर
स्वर्गीय महेंद्र बापना, बापू को जानने वाला कोई भी बापू को कैसे भूल सकता
चंद्रशेखर शर्मा 'काकाबापू जिंदाबाद !
चंद्रशेखर शर्मा 'काका '
बापू बोले तो शहर का वो सितारा किरदार जो असमय अस्त हो गया ! एक सड़क दुर्घटना ने जिसे उसके चाहने वालों से एक झटके में हमेशा के लिए जुदा कर दिया। एक ऐसा शख्स जो सबका मददगार था, यारों का यार था, हंसता-मुस्कुराता, ठहाके लगाता और शहर का नामचीन किरदार था। जी हां, आप सही समझे हैं और यह सब बापू अर्थात शहर के सितारा पत्रकार और हर घटना-दुर्घटना में मौके पर तत्काल प्रकट हो जाने वाले अति प्रिय साथी, मित्र और अजीज स्वर्गीय महेंद्र बापना के स्मरण में ही लिखा जा रहा है। वो भले आज सशरीर अपने चाहने वालों के बीच नहीं हैं लेकिन अपने चाहने वालों और मित्रों से लेकर अपने जानने वालों के जेहन में उनका मुस्कुराता चेहरा और यादें वैसे ही जुड़ी हुई हैं जैसे नाखून से मांस ! बापू को जानने वाला कोई भी बापू को कैसे भूल सकता है ? नामुमकिन !
- बापू ने अकेले दम फर्श से अर्श पर पहुंचाने का जादू : ऐसा कौन होगा, जिसकी उसने मांगने पर मुसीबत में या आड़े वक्त, मदद नहीं की ? ऐसे भी कई हैं जिनको बापू ने अकेले दम फर्श से अर्श पर पहुंचाने का जादू किया था। कहते हैं कि ऐसे मददगार महानुभावों को ऊपरवाला हजार हाथों से नवाजता हैं, जिनमें से दो हाथों को छोड़कर बाकी हाथ अदृश्य होते हैं ! बापू भी ऐसे ही थे। उन अदृश्य हाथों का परिचय केवल उन्हीं को मिलता था जो बापू से मदद पाते थे, हासिल कर पाते थे अथवा उपकृत होते थे और ऐसे लोगों की कोई गिनती न !
- जितना लिखो, कम निकलेगा ! : बहरहाल, बेशुमार लोगों के अज़ीज़ और पत्रकारिता में अनेक लोगों के हीरो और चौबीसों घण्टे पत्रकार रहे बहुत प्यारे मित्र बापू के बारे में, उनके लोकमंगल किरदार के बारे में जितना लिखो, कम निकलेगा ! अलबत्ता मुख्य और उल्लेखनीय बात यह है कि स्वर्गीय बापू के अत्यधिक स्नेही मित्रों ने बापू की स्मृति में उन्हें उनके तमाम चाहने वालों की ओर से आदरांजलि प्रस्तुत करने के लिए एक निहायत सार्थक कार्यक्रम की रूपरेखा रची है। जी हां, बापू के करीब 30-35 बरस से मित्र और बापू के हर रंग के सहयात्री और सखा रहे रूपेश व्यास की अगुआई में बापू के अन्य अजीज मित्रों ने इस कार्यक्रम का खाका तैयार किया है।
- कोई बापू की तरह न खोये ! : मालूम हो कि पीपल्याहाना चौराहे पर बापू का एक नामुराद सड़क हादसे में असमय अवसान हो गया था। सो उसी को केंद्र में रखकर बापू के इन मित्रों ने तय किया है कि वो बापू की याद में तीन सौ से भी अधिक ऐसे पत्रकारों, फोटोग्राफरों और कैमरामैनों को शिरस्त्राण यानी उम्दा हेलमेट भेंट करेंगे जो अपने काम के चलते दिन-रात फील्ड में रहते हैं और पूरा शहर नापते हैं। जाहिर है वो इसलिए कि आईन्दा किसी सड़क हादसे में किसी और मीडियाकर्मी को कोई बापू की तरह न खोये ! वाकई बापू की याद में और बापू के प्रति यह बेहद प्रशंसनीय और बहुत सार्थक आदरांजलि ही कही जाएगी।
- बापू के चाहने वाले अभी जिंदा हैं : इस कार्यक्रम की पूरी जानकारी अखबारों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आदि के जरिये आपके सामने रखी गई है । खास बात यह कि रूपेश व्यास के अलावा ऐसे कई मित्र भीतर ही भीतर इस टीस के हवाले थे कि बापू को गए करीब दो साल होने को आ रहे हैं और कोई भी शहर के इस अति होनहार सपूत की याद में तिनका तक इधर से उधर नहीं कर रहा ! सो क्या ये दिलदार शहर एकाएक इतना ओछा और नुगरा हो गया है ? यह बात इनकी आत्मा को खाये जा रही थी और बापू के इन्हीं मित्रों ने तय किया कि कोई दूसरा कुछ करे या न करे, लेकिन बापू के चाहने वाले अभी जिंदा हैं और पर्याप्त सक्षम भी। बस, फिर क्या देर थी ? केवल कुछ मित्रों के फोन खड़के और मिनटों में यह कार्यक्रम तैयार था। बहरहाल, बापू के चाहने वालों और जानने वालों से लेकर उनके मित्रों और अन्य सभी से विनम्र आग्रह है कि बापू को याद करने के मकसद से संजोए गए इस कार्यक्रम में जरूर पधारें। पूरा यकीन है कि प्यारे बापू भी वहां कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाखुशी अवश्य उपस्थित मिलेंगे। यों आप-हम सबके दिलों में तो वो स्थायी रूप से विराजित हैं ही। बापू जिंदाबाद !