इंदौर

दल बदलुओं को देख गिरगिट भी होने लगे हैरान : सियासी माहौल कॉमेडी शो जैसा

प्रदीप जोशी
दल बदलुओं को देख गिरगिट भी होने लगे हैरान : सियासी माहौल कॉमेडी शो जैसा
दल बदलुओं को देख गिरगिट भी होने लगे हैरान : सियासी माहौल कॉमेडी शो जैसा

इंदौर, प्रदीप जोशी। जिस तरह से नेता इन दिनों दल बदल रहे है और इस संबंध में उनके द्वारा जो दलीले दी जा रही है। वो किसी के गले उतरने वाली नहीं उल्टे इन दलीलों और नेताओं के कारण सियासी माहौल कॉमेडी शो जैसा लगने लगा है। पल पल रंग बदलते नेताओं को देख निश्चित ही गिरगिट भी हैरान हो रहे होंगे।

ऐसा ही एक किस्सा इंदौर जिले और धार लोकसभा के अंतर्गत आने वाली महूं (अंबेडकर नगर) विधानसभा सीट का। कांग्रेस के टिकट पर हाल में विधानसभा चुनाव लड़े नेता रामकिशोर शुक्ला एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए। पहली बार कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में उन्होंने भाजपा का चौला औढ़ा था। अब वर्तमान विधायक उषा ठाकुर के झंडे तले वे भाजपाई बन गई।

ये कैसी उपेक्षा, जो खत्म ही नहीं होती

रामकिशोर शुक्ला को कांग्रेस का वरिष्ठ नेता माना जाता है। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय को महूं से टिकट दिया। तब शुक्ला जी का कांग्रेस में दम घुटने लगा और वे भाजपा में शामिल हो गए। दस बरस यानी दो चुनावों में उन्होंने भाजपा का काम किया। फिर पार्टी ने उषा ठाकुर को महूं से मैदान में उतार दिया। अब शुक्ला फिर भाजपा में उपेक्षित महसूस करने लगे। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने का माहौल बनता देख उन्होंने फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया। लगे हाथों पार्टी ने विधानसभा का टिकट भी थमा दिया। शुक्ला जी इस चुनाव में बुरी तरह हारे और तीसरे नंबर पर रहे। हारने के बाद बाद उन्हें फिर कांग्रेस में अपनी उपेक्षा का अहसास होने लगा। भाजपा का स्थापना दिवस पर उन्होंने फिर भाजपा का झंडा थाम लिया।

शुक्ला के विरोध में दरबार ने की थी बगावत

इस विधानसभा चुनाव में महूं से अंतरसिंह दरबार कांग्रेस के टिकट के प्रबल दांवेदार थे। कमलनाथ, दिग्विजयसिंह उन्हें आश्वस्त भी कर चुके थे। अचानक पार्टी ने भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में आए रामकिशोर शुक्ला को मैदान में उतार दिया। पार्टी फैसले से व्यथित दरबार ने बगावत कर निर्दलीय रूप से मैदान पकड़ लिया। इस चुनाव में कांग्रेस अलग थलग पड़ गई और मुख्य मुकाबला दरबार और भाजपा की उषा ठाकुर के बीच रह गया। दुसरे नंबर पर रहे दरबार ने पिछले दिनों भाजपा का दामन थाम लिया। अब पीछे पीछे शुक्ला भी भाजपा में आ गए। सियासत के इस खेल को देख दरबार और उनके समर्थक निश्चित ही अचंभित और हैरान हो रहे होंगे।

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