इंदौर
आयुर्वेद से कैंसर के मरीज पा रहे राहत : डॉ. अखलेश भार्गव
डॉ. अखलेश भार्गव-
इंदौर, अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज में सैकड़ों मरीज ले रहे है इलाज
इंदौर : आज हम हमारे सामान्य जीवन में देख रहे हैं कि लगातार कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. निश्चित रूप से हजारों वर्ष पूर्व सुश्रुत संहिता में इस बीमारी का वर्णन है. इसका मतलब प्राचीन समय में भी यह बीमारी पाई जाती थी, क्योंकि आचार्य सुश्रुत ने कैंसर के छह प्रकार का वर्णन किया है और इसकी वेल्ले की संप्राप्ति बताइ है वहां पर उन्होंने अनेक प्रकार के असाध्य घावों का वर्णन किया है. जिनके ठीक होने में अनेक प्रकार की तकलीफ होती है और आज हम देखते हैं कि कैंसर के घाव भी निश्चित रूप से मुश्किल से ठीक हो पाते हैं. मैंने अपनी सामान्य प्रैक्टिस में देखा है कि कीमो थेरेपी एवं रेडियो थेरेपी करने से कैंसर के घाव के ठीक होने में मुश्किल पैदा होती है, क्योंकि जब हम किसी भी घाव को रेडियोथैरेपी देते हैं, तो वहां पर स्थित कोशिकाओं मैं केंद्रक के चारों और जो इलेक्ट्रॉन चक्कर लगा रहे होते हैं वह रेडिएशन की उर्जा पाकर अपने अधिक व्यवस्थित कक्ष में आते हैं. अर्थात अपने ऊपरी कक्षा से निचली कक्षा में आने पर ऊर्जा का क्षरण होता है और इस प्रकार स्वस्थ कोशिकाओं का विनाश होता है.
स्वस्थ कोशिकाओं के नाश होने से घाव को वरना बहुत मुश्किल हो जाता है. इस प्रकार की समस्या कीमो थेरेपी मैं भी बनी रहती है. आज हम देख रहे हैं कि कैंसर के मरीजों के रूप में हमारे पास मुख्य तो 6 प्रकार के मरीज सामने आ रहे हैं, इनमें से एक प्रकार के भी मरीज हैं, जिन्हें कैंसर का पता लग चुका है और वह प्रारंभिक अवस्था में ही आयुर्वेद इलाज की इच्छा लेकर हॉस्पिटल में आ रहे हैं. कुछ मरीज जिनको वृद्धावस्था में अथवा किसी गंभीर बीमारी के चलते एलोपैथिक इलाज, कीमोथेरेपी अथवा शल्यक्रिया करवाना संभव नहीं हो पाता है, वह आयुर्वेद द्वारा कैंसर को समाप्त करने के लिए अस्पताल में आते हैं, कुछ मरीज जागरूकता के बढ़ने से अपने कैंसर में कीमोथेरेपी अथवा रेडियो थेरेपी होने से पहले ही आयुर्वेद दवाओं को शुरू करना चाहते हैं, ताकि किसी प्रकार की समस्याएं पैदा ना हो, कुछ मरीज इस प्रकार के आते हैं, जिन्हें कैंसर के दौरान सर्जरी की गई है और उनके घाव बन गए हैं और उन घाव को भरने के लिए आयुर्वेदिक दवाएं एवं आयुर्वेदिक घी से बनी हुई दवाइयों का प्रयोग करने के लिए अस्पताल के लिए आते हैं, धीरे-धीरे कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ चुकी है.
अभी हमारे पास कुछ महिलाएं जिन की माताओं को अथवा प्रथम पीढ़ी में किसी को स्तन कैंसर हुआ है, तो वह चाहती हैं कि उन्हें किसी प्रकार का आयुर्वेदिक इलाज मिल सके, जिन से भविष्य में किसी प्रकार की बीमारी ना हो. अधिकांश मरीजों की संख्या ऐसे लोगों की है, जिनका एलोपैथी में किसी प्रकार का इलाज चल रहा है और वह साथ में अपनी बीमारी को जल्दी खत्म करने के लिए आयुर्वेद चिकित्सा करवाना चाहते हैं. अभी हाल ही में हमारे पास शासकीय अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज, इंदौर में प्रतिमाह 25 से 30 मरीज आयुर्वेद द्वारा कैंसर की चिकित्सा हेतु दवाइयां लेने आते हैं और लगातार लाभ भी पा रहे हैं. क्योंकि हजारों वर्ष पूर्व आचार्य सुश्रुत ने शारीरिक स्थान में आयुर्वेद के द्वारा कोशिका में हुए जीन परिवर्तन की व्याख्या की है, भारत में प्रतिदिन कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिस में स्तन कैंसर लगभग 13% है. सभी चिकित्सा पद्धतियों में इसके इलाज की व्यवस्था है. परंतु पिछले कुछ समय में रोगियों का आयुर्वेद में विश्वास बढ़ा है और आयुर्वेद औषधियों के द्वारा कैंसर मरीज राहत पा रहे हैं.
आज हमारे बीच शासकीय अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज, लोकमान्य नगर इंदौर जो कि एक सरकारी संस्थान है, के शल्य तंत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर अखलेश भार्गव है जो पिछले कई वर्षों से कैंसर के मरीजों के लिए जागरूकता और आयुर्वेद इलाज से संबंधित कार्य कर रहे हैं.
कैंसर क्या है...
किन्ही कारणों से हमारे शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में अनियंत्रित विभाजन शुरू हो जाता है और यह विभाजित कोशिकाएं मिलकर एक गांठ का रूप बना लेती हैं जिसे हम कैंसर कहते हैं. शरीर में लगभग 200 प्रकार के कैंसर पाए जाते हैं और यह कोशिका रक्त एवं लसीका के माध्यम से शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलने लगती हैं. जिसे हम मेटास्टैसिस कहते हैं
कैंसर के कारण... सामान्यतः 5 से 10% लोगों में अनुवांशिक होता है, किंतु केमिकल युक्त भोजन, सब्जी, फल, पानी का सेवन, जंक फूड, डिब्बाबंद भोजन, शराब, बीड़ी, तंबाकू का सेवन ,व्यायाम की कमी, मोटापा, रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना , अधिक मिर्च मसाले वाले भोजन का सेवन करना, ज्यादा रेडिएशन वाले स्थान में रहना, प्लास्टिक के बर्तन में गर्म खाना, खाने पीने की चीजों में कलर का प्रयोग करना, खाने में बार-बार गर्म तेल का उपयोग करना आदि अनेक कारणों से कैंसर की उत्पत्ति होती है.
महिलाओं में स्तन कैंसर के लक्षण है...
उम्र बढ़ने के साथ-साथ एवं मासिक धर्म समाप्त होने पर स्तन कैंसर का खतरा बढ़ता है, इसके मुख्य लक्षणों में स्तन में गांठ या उभार का होना, स्तन की त्वचा का रंग लाल हो जाना, पूरे स्तन में या कुछ भाग में सूजन आना, स्तन में गुठलियां जैसी पडना, स्तन में से खून अथवा मवाद का आना, स्तन के आकार में अचानक परिवर्तन होना, स्तन के पास कांख में ग्रंथियों का फूल जाना आदि प्रमुख लक्षण हैं. ऐसे लक्षण मिलने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए और मैमोग्राम, सीटी स्कैन, बायोप्सी आदि जांच करवाना चाहिए.
कैंसर का पता लगने पर आयुर्वेद में क्या इसका इलाज संभव है...
आयुर्वेद में हजारों वर्ष पूर्व ही सुश्रुत संहिता मैं अर्बुद अर्थात कैंसर के कारण, लक्षण एवं चिकित्सा का वर्णन है. कैंसर की अलग-अलग स्टेज में दोषो के प्रकोप के अनुसार एवं किस धातु में कैंसर स्थित है उसके द्वारा चिकित्सा की जाती है. आयुर्वेद में 7 धातु रस, रक्त ,मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र होती हैं. जिस भाग में कैंसर होता है. उसका अलग-अलग इलाज होता है. तथा कीमोथेरेपी , रेडियो थेरेपी आदि के दौरान मरीज को जो दिक्कत जैसे डिप्रेशन मे आना, वजन कम होना, भूख नहीं लगना, मुंह में छाले हो जाना, कब्ज बने रहना, नींद नहीं आना आदि को दूर करने में भी आयुर्वेद दवाओं का बहुत अच्छा प्रभाव है, यदि कीमोथेरेपी अथवा रेडिएशन शुरू करने से पहले जैविक हल्दी, तुलसी, सदाबहार, गिलोय, ग्वारपाठा, आमलकी आदि दवाइयों का प्रयोग किया जाए तो बेहतर परिणाम मिलते हैं. आयुर्वेद दवाई कैंसर इलाज के दौरान लिवर, किडनी तथा अन्य अंगों को दुष्प्रभाव से बचाती है.
आयुर्वेद में कैंसर इलाज के क्या सिद्धांत है...
हमारे शरीर की कोशिकाओं में स्थित डीएनए और उपस्थित जीन मे म्यूटेशन होने पर कैंसर की उत्पत्ति होती है. प्रत्येक कोशिका में शारीरिक दोष वात, पित्त, कफ का कार्य चलता रहता है. आयुर्वेद दवाओं के द्वारा इनको साम्यावस्था में लाया जाता है, जिससे कैंसर कोशिकाओं का विभाजन समाप्त होता है और कैंसर कोशिकाओं का एक स्थान से दूसरे स्थान में पहुंचना भी कम होता है.
आयुर्वेद में गोमूत्र का कैंसर में प्रयोग...
आयुर्वेद में गोमूत्र से बनी दवाइयों का भी प्रयोग किया जा रहा है और इसके काफी अच्छा प्रभाव हैं. वस्तुतः शरीर में अम्लीयता बढ़ जाने के कारण कैंसर की उत्पत्ति होती है, गोमूत्र क्षारीय प्रवृत्ति का होता है जिसकी पीएच 8 .4- 9.4 होती है, शरीर में कीटनाशक पहुंचने पर भी शरीर की अम्लीयता बढ़ती है. इसलिए आयुर्वेदिक दवाओं का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए. क्योंकि यह क्षारीय प्रवृत्ति की होती हैं और इससे कैंसर कोशिकाओं का खात्मा होता है. गोमूत्र को आयुर्वेदिक कीमोथेरेपी कहे तो कोई संशय नहीं है.
कैंसर में घाव का आयुर्वेद इलाज कैंसर के घाव में गाय के घी से बनी दवाइयां का अच्छा प्रभाव है इससे घाव जल्दी भरता है. इसके अलावा घाव को धोने में, पट्टी करने में भी आयुर्वेदिक दवा का प्रयोग किया जाता है. हमारे यहां प्रतिमाह 40 से 50 कैंसर के मरीज आयुर्वेद इलाज देने आ रहे हैं और मरीज को काफी अच्छा लाभ भी मिल रहा है. आयुर्वेद में कौन-कौन सी दवाइयों का अधिक प्रयोग अलग-अलग प्रकार के कैंसर में अलग-अलग दवाइयां दी जाती है, परंतु सामान्यतः जैविक हल्दी, व्हीटग्रास, काली तुलसी, सदाबहार, सहजन, मुलेठी, काली मिर्च, आमलकी, स्वर्ण भस्म, हीरक भस्म, हरताल रस सिंदूर, तांबूल, पन्ना पिष्टी, मोती पिष्टी, नीलम, अश्वगंधा, शिरीष, कालमेघ गूगल एवं ऐसी अनेक दवाओं का कैंसर रोग में प्रयोग किया जा रहा है. सभी दवाइयां चिकित्सक की देखरेख में लेना चाहिए.
कैंसर रोग की किस अवस्था में आयुर्वेद दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए. कैंसर का पता लगते ही आयुर्वेदिक दवाइयों का प्रयोग शुरू कर देना चाहिए. क्योंकि दवाइयां कैंसर की गांठ को कम करती हैं. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कैंसर के मेटास्टैसिस को रोकती है, कैंसर रोगी को तनाव मुक्त रखकर बीमारी को रोकती हैं, शरीर में खून को शुद्ध करती हैं, खून को बढ़ाती है, वृद्धावस्था में जहां अन्य कोई इलाज संभव नहीं है. वहां पर इनका बहुत अच्छा प्रभाव है, जिसे पैलिएटिव केयर कहते हैं. योगा प्राणायाम करने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है. क्योंकि ऑक्सीजन क्षारीय प्रवृत्ति का होता है, यह कैंसर कोशिकाओं के विभाजन को कम करता है. तुलसी में पाए जाने वाला ग्लूटाथिओन कैंसर के विभाजन को कम करता है और कैंसर के फैलने को रोकता है, हल्दी में पाए जाने वाला कुरकुमिन कैंसर सेल को मारता है, काली मिर्च में पाए जाने वाला पाइपेरिन कैंसर सेल के विभाजन को रोकता है . एरंडतेल तथा काली मिर्च भी कैंसर रोधी हैं, ऐसी अनेक दवाएं कैंसर के विरुद्ध प्रभावशाली है, आयुर्वेद में उपलब्ध हैं.
कैंसर के मरीजों को आप क्या संदेश देना चाहते हैं
कैंसर कोई लाइलाज बीमारी नहीं है, समय पर पता लग जाए तो उसका इलाज संभव है . लगातार इलाज, परिवार जनों का सहयोग, समाज का अपनापन एवं मन में दृढ़ निश्चय हो तो कैंसर को हराया जा सकता है. ऐसे अनेक लोग हैं, जो कैंसर को हराकर अपना जीवन जी रहे हैं. आप घबराएं नहीं, हमारे पास आएं हम आपकी सेवा में तत्पर हैं.
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डॉक्टर अखलेश भार्गव, विभागाध्यक्ष शासकीय अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज-लोकमान्य नगर, इंदौर, मध्य प्रदेश