इंदौर
गणगौर माता का पूजन :- गणगौर व्रत कैसे करें
संगीता पालीवाल, संगीता जोशीइंदौर। हिन्दू समाज में चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष तौर पर केवल स्त्रियों के लिए ही होता है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। स्त्रियाँ नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं।
मातृशक्ति में गणगौर माता के प्रति श्रद्धा और आस्था कायम
मेनारिया ब्राह्मण समाज महिला मंड़ल 52 श्रेणी इंदौर से पूजा जोशी, संगीता जोशी, सोनाली जोशी ने पालीवाल वाणी को बताया कि पहले की तरह आज भी व्रत को लेकर आस्था और श्रद्धा कायम है। विवाह के पहले साल युवतियां अपने पीहर में आकर व्रत मनाती है। 16 दिनों तक उत्साह का माहौल रहता है। शाम को सहेलियों के साथ बगीचे में जाकर मौज-मस्ती करती है। मंजू पुरोहित, कविता पालीवाल ने बताया कि पालीवाल समाज का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस पर्व का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। जो पुराने गीत चल रहे हैं उन्हीं को महिलाओं द्वारा गाया जाता है। नए गीत नहीं लिखे जाते। पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इस पर्व को बड़े उत्साह से मनाती है।
गणगौर पर्व कब मनाएँ : -
यह पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित बालिकाएँ अर्थात नवविवाहिताएँ प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न करने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है।
गणगौर व्रत कैसे करें :-
* चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए।
* इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए।
* इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।
* जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता (करीब आठ दिन) तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए।
* गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएँ जैसे काँच की चूड़ियाँ, सिंदूर, महावर, मेहँदी,टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं।
* सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है।
* इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है।
* भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है।
* कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी माँग भरनी चाहिए।
* कुँआरी कन्याओं को चाहिए कि वे गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
* चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएँ।
* चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएँ।
* इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएँ और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें।
पालीवाल वाणी ब्यूरो- संगीता पालीवाल, संगीता जोशी
पालीवाल वाणी हर कदम...आपके साथ...निःशुल्क सेवा में तत्पर
?Paliwalwani News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे...Sunil Paliwal-Indore M.P.Email- paliwalwani2@gmail.com
09977952406-09827052406- Whatsapp no- 09039752406
पालीवाल वाणी की नई पेशकश न्यूज रोज अपटेड
?एक पेड़...एक बेटी...बचाने का संकल्प लिजिए...?