Friday, 31 October 2025

दिल्ली

ड्यूटी पर आते-जाते वक्त हादसे में मौत होने पर भी मिलेगा मुआवज़ा – सुप्रीम कोर्ट

paliwalwani
ड्यूटी पर आते-जाते वक्त हादसे में मौत होने पर भी मिलेगा मुआवज़ा – सुप्रीम कोर्ट
ड्यूटी पर आते-जाते वक्त हादसे में मौत होने पर भी मिलेगा मुआवज़ा – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में कहा कि किसी कर्मचारी के कार्यस्थल पर आने-जाने के दौरान होने वाली घातक दुर्घटनाएं कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम, 1923 (Employee Compensation Act, 1923) के तहत मुआवज़े के लिए पात्र हो सकती हैं।

अदालत कवर करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने यह फैसला उस मृत चौकीदार के पक्ष में सुनाया, जो आधी रात अपने कार्यस्थल की ओर जा रहा था। कार्यस्थल से लगभग पांच किलोमीटर दूर वह सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया और उसकी मौत हो गई।

न्यायालय ने कहा कि अगर किसी कर्मचारी की यात्रा और उसके कार्य के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित हो, तो रोजगार संबंधी कर्तव्यों को “उचित यात्रा परिस्थितियों” तक बढ़ाया जा सकता है। इसका अर्थ है कि नौकरी से संबंधित यात्रा भी रोजगार का हिस्सा मानी जा सकती है।

इस मामले में कर्मचारी मुआवज़ा आयुक्त ने मृतक के परिजनों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने यह कहते हुए आदेश पलट दिया कि दुर्घटना “रोजगार के कारण और उसके दौरान” नहीं हुई थी। इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी।

विवाद का केंद्र कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम (Employee Compensation Act) की धारा 3 में प्रयुक्त वाक्यांश “रोजगार के कारण और उसके दौरान” की व्याख्या था। बीमा कंपनी और नियोक्ता दोनों ने दायित्व से इनकार करते हुए कहा कि दुर्घटना उस समय हुई जब मृतक कार्यस्थल पर नहीं पहुंचा था, इसलिए यह “रोजगार के दौरान” नहीं मानी जा सकती। उनके अनुसार यह “व्यक्तिगत यात्रा” थी, जो नौकरी से संबंधित नहीं थी, और इस कारण अधिनियम के सुरक्षात्मक दायरे से बाहर है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रश्न यह है कि क्या “रोजगार के कारण और उसके दौरान” की व्याख्या को कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (ESI Act) की धारा 51ई में प्रयुक्त समान वाक्यांश के अनुरूप माना जा सकता है।

प्रतिवादियों के तर्क को खारिज करते हुए जस्टिस विश्वनाथन द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम की धारा 3 में प्रयुक्त यह वाक्यांश ESI Act की धारा 51ई के समान उद्देश्य रखता है। यह प्रावधान यात्रा के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को रोजगार से संबंधित मानता है, बशर्ते यात्रा कार्य संबंधी दायित्वों से जुड़ी हो।

अदालत ने कहा, “यह सर्वविदित है कि जब समान विषय के दो अधिनियम एक ही उद्देश्य की पूर्ति करते हैं, तो किसी विपरीत संकेत की अनुपस्थिति में, न्यायालय उस अधिनियम की भाषा की तुलना अन्य समान अधिनियमों से कर सकता है ताकि प्रावधान के अर्थ को बेहतर तरीके से समझा जा सके।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ESI Act की धारा 51ई स्पष्टीकरणात्मक (explanatory) प्रकृति की है, इसलिए यह पूर्वव्यापी (retrospective) रूप से लागू होगी। इसका मतलब यह हुआ कि कार्यस्थल पर आने-जाने के दौरान हुई दुर्घटनाओं के लिए मुआवज़े के दावे अब स्वीकार्य होंगे।

अदालत ने कहा : 

“हम EC Act की धारा 3 में प्रयुक्त वाक्यांश ‘उसके नियोजन के दौरान और उसके कारण उत्पन्न दुर्घटना’ की व्याख्या में ऐसे मामलों को शामिल करते हैं, जहां कोई कर्मचारी अपने निवास स्थान से ड्यूटी के लिए या ड्यूटी पूरी करने के बाद अपने निवास स्थान तक आते-जाते समय दुर्घटना का शिकार हो जाए — बशर्ते दुर्घटना की परिस्थितियों, समय, स्थान और उसके नियोजन के बीच सीधा संबंध हो।”

न्यायालय ने पाया कि मृतक एक रात्रिकालीन चौकीदार था और समय पर ड्यूटी पर पहुंचने के लिए कार्यस्थल की ओर जा रहा था। इस स्थिति में दुर्घटना की परिस्थितियों, समय और स्थान का उसके रोजगार से स्पष्ट संबंध था। अतः यह दुर्घटना “रोजगार के दौरान और उसके कारण उत्पन्न” मानी जाएगी।

इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी मुआवज़ा आयुक्त और सिविल जज (वरिष्ठ खंड), उस्मानाबाद द्वारा 26 जून 2009 को दिए गए आदेश को सही ठहराया, जिसमें मृतक के परिजनों को मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया था।

अंत में न्यायालय ने कहा कि ES Act और ESI Act दोनों लाभकारी कानून हैं और उनकी भाषा समान है, इसलिए उनकी व्याख्या को संरेखित (harmonize) किया जाना चाहिए। इस तरह, ESI Act की धारा 51ई का लाभ EC Act के मामलों में भी लागू किया जा सकता है।

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