आपकी कलम
उनके ध्यान पर आपका इतना ध्यान क्यूं!
विनोद नागरसामयिक आलेख
● विनोद नागर - वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार
देश भर में पिछले एक डेढ़ माह से चल रही चुनावी रेलमपेल ने राज नेताओं को थका कर रख दिया है। पहली बार सात चरणों में संपन्न होने वाले लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी के चरमोत्कर्ष पर पहुंचते-पहुंचते गर्मी ने भी वो रौद्र रूप दिखाया कि नेताओं को मंच पर माइक थामते ही सिर पर पास रखी पानी की बोतल ऊंडेलनी पड़ी।
दिन-रात एक कर चुके स्टार प्रचारकों को भले ही अब उतनी धूल नहीं फांकना पड़ती, लेकिन मैराथन चुनाव रैलियों , रोड शो और लगातार चुनावी दौरों की हवाई यात्राओं ने उन्हें थकाकर चूर कर दिया है। न समय पर खाना खाने का ठिकाना न आराम और विश्राम का अता-पता। कहने वाले कह सकते हैं कि लोकतंत्र के इस महारणक्षेत्र में महाविजय हासिल करने के लिए महाआहुति तो देनी ही पड़ेगी। इसमें अचरज की क्या बात..!
पर अगर यदि किसी ने सवा महीने से बिना थके, बिना रुके अपने संकल्प की सिद्धि के लिए स्वयं को अहर्निश भाव से अनवरत झोंके रखा है, तो यह कर्मयोग आलसी, आराम तलब, सुविधाभोगी राजनीतिज्ञों को अटपटा लग रहा है। यदि कोई मुखर, निर्भीक, वाकपटु जन नेता अपने मिशन के अगले चरण के लिए स्वयं को ऊर्जित कर 48 घंटे के लिए मौन धारण कर ध्यान योग साधना में लीन हो जाए तो विरोधियों को इतनी चिल्ल-पों मचाने की क्या जरूरत है?
ध्यान आध्यात्मिक चेतना जगाने की एक यौगिक क्रिया है। इसे प्रायः एकांत में शांत वातावरण में किया जाता है। इसकी आत्मानुभूति अवर्णनीय है। अब यदि इसे कोई व्यक्ति अपनी सामान्य दिनचर्या को त्यागकर नितांत व्यक्तिगत स्तर पर कर रहा है तो इसमें किसीको कोई आपत्ति क्यूं होनी चाहिए? जहां तक कैमरों की मौजूदगी, फोटो/ विडियो/ न्यूज कवरेज का सवाल है, उच्च स्तरीय बैठकों की तरह इस इवेंट यदि इसे इवेंट माने तो का भी शुरुआती फुटेज ही तो देखने को मिला है। कोई अड़तालीस घंटे का लाइव प्रसारण तो हो नहीं रहा। अब यदि मीडिया इसे स्वविवेक से प्रमुखता से दिखाता रहे तो दोष किसका कहें!
जब सातवें और अंतिम चरण का चुनाव प्रचार थम चुका है शनिवार को मतदान का आखिरी दौर भी निपट जाएगा तो किसी राजनेता के एकांत में जाकर ध्यान योग करने से.. मौन रहने से.. भला आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन कैसे हो रहा है ? क्या "एकांत" और "मौन" को भी चुनाव प्रचार का हिस्सा माना जा सकता है? इस तरह की बहकी दलील "खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे" से ज्यादा महत्व नहीं रखती।
अगर चुनाव के दौरान आपने इतनी गर्मी सही है तो दिमाग को ठंडा रखना भी सीखिए। हताश-निराश होकर इतना बौखलाने की क्या जरूरत है? सातवें चरण का मतदान इत्मीनान से हो जाने दीजिए। थोड़ा धैर्य तो रखिए। चुनाव परिणाम कहीं भागे नहीं जा रहे..!
दक्षिण पश्चिमी मॉनसून इस बार केरल में समय से पहले दस्तक दे चुका है। कन्याकुमारी में 48 घंटे के "ध्यान" योग और "मौन" तप के बाद जब बादल गरजेंगे और बिजली कड़केगी तो "हम लोग" मौसम का मिज़ाज कितना बदला हुआ पाएंगे? बस इसका इंतजार है सबको..! और आपको कहीं लंबी छुट्टियां मनाने का तो नहीं..? जिन बेचारी ईवीएम पर बार-बार गड़बड़ी की तोहमतें लगाई जाती रहीं वे भी अपना काम ईमानदारी से पूरा कर आपकी ओर मुंह बिचकाते हुए दड़बों में लौट जाएंगी। पर आपको शर्म न आएगी।
चलते-चलते एक बिन मांगी सलाह देने का लोभ संवरण नहीं हो पा रहा कि यदि चार तारीख तक आपको भी बेचैनी के कारण नींद न आए और बार बार करवटें बदलते रहें तो चंद्रमा पर चंद्रयान की लकीरें गिनने का उपक्रम अवश्य करें, क्योंकि मौन रहना आप सरीखे बड़बोले लोगों के बस में कहां?