आपकी कलम

विलूप्त होती भारतीय संस्कृति

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विलूप्त होती भारतीय संस्कृति
विलूप्त होती भारतीय संस्कृति

!! विलूप्त होती भारतीय संस्कृति !!

● याद आता है वो गुजरा जमाना,
मिल-बैठकर खाना और खिलाना।
● एक ही थाली मे खाते भाई-बहन,
वो प्यार-मोहब्बत वो अफसाना ।
● वो नानी के घर की गरमी की राते,
देर रात तक होती गपशप और बाते ।
● नानी भी सुनाती परियो की कहानी,
वो सब अब कहाँ,इनके तो ख्वाब ही आते।
● ताश के पत्तो की जब बाजी जमती,
तुरूप के पत्तो की खुब चाले चलती।
● सुबह से शाम कब ढल जाती,
ऐसी वो एक महफिल जम जाती।
● छुपा-छुपी ,गुल्ली-डंडे खेल सारे,
कभी जीत जाते ,कभी हम हारे ।
● सितौलिए की तो क्या बात कहे ,
यही होते थे सब खेल-कुद हमारे।
● मिल-जुलकर मनाते थे तीज-त्यौहार,
इक-दूजे की होती थी खुब मनुहार।
● पकवानो व मिठाईयो से घर महकता,
प्रेम-भाव का था वो अनमोल उपहार ।
● अब रिश्तो मे नही रही वो मिठास,
न ही अपनेपन का मधुर एहसास ।
● शुगर की बिमारी घर-घर पसरी ,
मिठेपन मे भी बस गई एक कडवास।
● मोबाईल से ही हम रिश्ते निभाते,
पास रहते है ,पर कभी मिल न पाते।
● आधुनिकता की चकाचौधं हर ओर,
कहाँ आज के बच्चे संस्कार पाते।
● मातृभाषा मे बात करने से कतराते,
अंग्रेजी मे बात करना, शान मानते।
● छोटे-बडे का कहाँ ज्ञान है इनको,
बडो का अनादर करने से नही शरमाते ।
● पर हम संस्कारो का दीप जला रखेगे,
अपनी संस्कृति व संस्कारो का मान रखेगे।
● काव्य की अविरल यह सरिता बहाकर,
युवा-पीढी को सीधी राह दिखाएँगे।
हेमलता पालीवाल " हेमा"

paliwalwani.com

पालीवाल वाणी ब्यूरो... ✍️
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