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केरल के एक NGO ‘मरकजुल हिंदिया’ पर लगा प्रतिबंध : 200 करोड़ से ज्यादा का चंदा मिलता था, निजी खर्च के लिए हो रहा था चंदे का इस्तेमाल
Paliwalwaniमरकजुल इगासाथिल कैरियाथिल हिंदिया नामक NGO का लाइसेंस निलंबित करने के पीछे का कारण विदेशी चंदे के दुरुपयोग बताया जा रहा है। इस NGO को सालाना 200 करोड़ से ज्यादा चंदा मिलता था। बताया जाता है कि प्राप्त चंदे का इस्तेमाल एनजीओ से जुड़े लोग निजी वाहन खरीदने और निजी खर्च में करते थे। इस बात का सुबूत मिलने के बाद गृह मंत्रालय ने एनजीओ के सात बैंक एकाउंट भी फ्रीज कर दिए हैं।और उन्हें नोटिस भी जारी किया गया है। अगर उसका जवाब संतोषजनक नहीं रहता है तो लाइसेंस भी रद हो सकता है।
भारत में गैर सरकारी संगठन भारत में मौजूद कुल स्कूलों का दोगुना है। देश में मौजूद अस्पतालों से उनकी संख्या 250 गुना ज्यादा अधिक है। NGO क्षेत्र के विशाल आकार के कारण राज्य के लिए इनकी प्रभावी निगरानी और पर्यवेक्षण करना असंभव हो जाता है। निगमीकृत NGO, RBI द्वारा कड़े पर्यवेक्षण के अधीन हैं, जबकि सामान्य एनजीओ, जिनकी 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है, वह बिना किसी पर्यवेक्षण के संचालित होते हैं। NGO एक लंबे समय से जवाबदेही और पारदर्शिता से बचते रहे हैं और किसी भी प्रकार के विनियमन के खिलाफ हैं जो उन्हें लगता है कि उनकी स्वायत्तता के लिए दखल हो सकता है। वित्तीय प्रबंधन और लेखा एक ऐसा क्षेत्र है जहां वे बाहरी जांच का कड़ा विरोध भी करते है।
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इससे निपटने के लिए सरकार ने FCRA कानूनों में भी बदलाव किया है। FCRA विदेश से आने वाले चंदे का लेखा जोखा रखता है और इससे NGO की मजबूरी होती है कि वह प्राप्त पैसे का हिसाब करे। पिछले 10 वर्षों में भारतीय सरकार द्वारा 20,600 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के FCRA लाइसेंस रद्द किए जा चुके है। 2016-17 और 2018-19 के बीच एफसीआरए के तहत पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों द्वारा 58,000 करोड़ रुपये से अधिक विदेशी धन प्राप्त किया गया है और देश में करीब 22,400 एफसीआरए पंजीकृत एनजीओ हैं।
सरकार के इस कदम का विरोध भी खूब होता है। ऐसा कहा जाता है सरकार NGO सेक्टर, सोशल डेवलपमेंट सेक्टर, सिविल सोसायटी को रद्द करना चाह रही है लेकिन हकीकत यह है कि बहुत से ऐसे संगठन है जिनके काम का लेखा जोखा नहीं है। कई बार तो कई संगठन देशविरोधी कामों में लगे रहते है।
खबर के अनुसार, सरकारी अधिकारियों ने यह माना है चीन, अरुणाचल प्रदेश में जलविद्युत परियोजनाओं के खिलाफ विरोध को भड़काने के लिए कुछ नागरिक समाज संगठनों को फंड देने की कोशिश कर रहा है। ऐसे गैर सरकारी संगठन लंबे समय से लंबित पनबिजली परियोजनाओं पर काम को पुनर्जीवित करने के भारत के प्रयासों का विरोध कर रहे हैं। जिसमें 2,000 मेगावाट (मेगावाट) लोअर सुबनसिरी और 2,880 मेगावाट की दिबांग परियोजनाएं शामिल हैं, जो राज्य द्वारा संचालित एनएचपीसी लिमिटेड द्वारा संचालित हैं। वन अधिकार अधिनियम और क्षेत्र के पारिस्थितिक महत्व के संरक्षण के नाम पर होने वाले विरोध के पीछे सरकार ने बड़े फायदे को पहचाना है।
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ज्यादा स्वतंत्रता न्याय के लिए खतरा होता है और ज्यादा न्याय स्वतंत्रता के लिए खतरा होता है। दोनों के बीच में संतुलन बनाये रखना चाहिए। अगर आप सिविल सोसायटी है, और आप सच में ही गरीबों, वंचितों, दलितों, महिलाओं, मजदूरों के लिए काम करते है तो आपको आगे आना चाहिए और सरकार को हिसाब दे देना चाहिए।