इंदौर

पालीवाल समाज 44 श्रेणी इंदौर की राजनीति में एक फिर आया सदस्यों का दर्द बाहर

sunil paliwal
पालीवाल समाज 44 श्रेणी इंदौर की राजनीति में एक फिर आया सदस्यों का दर्द बाहर
पालीवाल समाज 44 श्रेणी इंदौर की राजनीति में एक फिर आया सदस्यों का दर्द बाहर

● 28 सालो से निस्वार्थ भाव से नवरात्री महोत्सव के दौरान माताजी की सेवा देने वालों को भूलाया...

इंदौर । पालीवाल ब्राह्मण समाज 44 श्रेणी इंदौर की राजनीति बड़ी अजीब सी हो गई। इस अखाडे में कौन शतरंज की चाल चल रहा है, उसे कोई समझ नहीं पाया। वर्तमान के दौर में आज एक फिर सोशल मीडिया पर एक परिवार अन्य सदस्यों के समाने अपना दर्द बयां कर रहा है। एक बानकी समाज सदस्यों को जैसा सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा को पालीवाल वाणी आम सदस्यों के समाने प्रस्तृत कर रहा है। 

प्रिय साथियों, ‘‘जै चारभुजारी’’ वर्तमान परिस्थिति को देखकर यह मैसेज लिखना बहुत ही आवश्यक हो गया था। पालीवाल समाज 44 श्रेणी इंदौर में वर्तमान में कुछ समाजजन जो कि अपने आपको समाज के सर्वेसर्वा समझने लगे है, उनका उद्देश्य समाज की सेवा करना नही है बल्कि समाज को राजनीति का एक अखाड़ा बनाना है, इनका नजरिया समाज मे दिखावे वाला है एवं  इनका ध्यान सिर्फ समाज मे कैसे भी अपनी ब्रांडिंग और मार्केटिंग करना है, ये लोग अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो गए है इन्हें हर जगह सेवा में भी राजनीति दिखने लगी है। वर्तमान समाज के कुछ सर्वेसर्वो ने अपनी निजी ईर्षा एवं द्वेष के कारण एक परिवार जो कि विगत 28 सालो से निस्वार्थ भाव से नवरात्री में मंदिर में माताजी को अपनी सेवा देते आ रहा था उसे अपनी निजी कुंठाओ के कारण षडयंत्र पूर्वक सेवा से दूर करने में सफल हो गए है। प्रिय जन आज तो वो परिवार विच्छेद हो गया है , पर आपको इस समाज(पालीवाल 44 श्रेणी इंदौर) के 50 साल पुराने इतिहास को भी जानना जरूरी है उसके साथ साथ उन नीव के पत्थरों के बारे में भी जानना जरूरी है जिन्होंने वर्षो से इंदौर में समाज को स्वालंबी बनाये रखने में अपने निजी जीवन की भी आहुति दे दी, पहले किस तरह से उन लोगो ने समाज के मंदिर के लिए जमीन से लेकर भवन तक बनाने को लेकर बूंद बूंद घड़े की तरह सींचा जिससे आज समाज की पहचान उन नीव के पत्थरों से पड़ी है। परंतु वर्तमान परिदृश्य में समाज के कुछ सर्वेसर्वा आज उन नीव के पत्थरों (सेवादारों) को वैसे ही निकलना चाहती है जैसे की दूध में से मक्खी। बनी बनाई ईमारत में तो कोई भी रंग रोगन कर सकता है पर ईमारत की मजबूती उसकी नीव से ही रहती है, आज हमारे समाज की पहचान ही उन नीव के पत्थरों से है जिनके कारण आज समाज को इंदौर शहर में एक पहचान मिली है, चुकी अब ये समाज के कुछ सर्वेसर्वा यह भूल गए है अगर नीव के पत्थर को निकालेंगे तो वे बिना बुनियाद के अपनी ईमारत कब तक खड़ी रख पाएंगे। समाज के कुछ सर्वेसर्वा अगर अपने वरिष्ठों का सम्मान नही कर सकती है तो कम से कम उनके साथ  समाज मे निम्न स्तर की राजनीति करने से तो बाज आये। आज समाज के स्थिति को देखकर लग रहा है आने वाले समय मे अपना समाज सेवादारों से मुक्त होकर एक दिखावे की  राजनीति करने वालो के हाथों की कठपुतली बनकर नही रह जाये।

● पालीवाल वाणी ब्यूरों-Sunil Paliwal...✍️

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