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The Kerala Story: क्या द केरल स्टोरी होगी ब्लॉकबस्टर? : बर्बर बलात्कार के सीन हैं भयावह
PaliwalwaniThe Kerala Story Full Review : (संजीव श्रीवास्तव) पहले से ही सुर्खियां बटोर चुकी फिल्म द केरल स्टोरी बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो चुकी है लिहाजा अब कसौटी पर इसकी लोकप्रियता है. सवाल है जितनी चर्चा मिली है क्या उतने दर्शक भी मिलेंगे? फिल्म की थीम पर डिबेट करने वाले क्या सिनेमा हॉल की खिड़की तक पहुंचेंगे? और क्या द कश्मीर फाइल्स की तरह देश के अंदर जगह-जगह इसके भी विशेष प्रदर्शन का आयोजन हो सकेगा?
वैसे देखा जाये तो काफी समय से इस फिल्म का इंतजार हो रहा था. पिछले साल आये टीजर और हाल में रिलीज हुए ट्रेलर के कन्टेंट ने एक पॉलिटिकल डिबेट कायम कर दी थी और उस डिबेट में केरल में धर्मांतरण का मुद्दा जोर शोर से उठाया गया था. जोकि इस फिल्म का विषय है. लोग जानना चाहते थे कि ट्रेलर में उठाये मुद्दे को फिल्म में किस तरह से दिखाया गया है? और वह कितना सच है? क्या यह द कश्मीर फाइल्स की तरह जनता से जुड़ पायेगी?
संक्षेप में पहले कहानी को समझिए
दरअसल सुदीप्तो सेन निर्देशित द केरल स्टोरी फिल्म में तीन लड़कियों के माध्यम से धर्मांतरण की साजिश की परतें खोली जाती हैं. तीनों में दो हिंदू हैं (गीतांजलि, शालिनी) और एक ईसाई (निमाह). लोकल मुस्लिम लड़कों के माध्यम से इन्हें फंसाकर आईएसआईएस के आतंकियों के पास सीरिया भेजने का षडयंत्र रचा जाता है. तीनों को एक प्रतीक की तरह पेश किया जाता है और बताया जाता है कि इनकी तरह केरल की हजारों लड़कियों को इसी तरह ISIS के चंगुल में फंसाया गया है.
संक्षेप में बस फिल्म की इतनी ही कहानी है. कहानी के इन तीनों के बारे में बताया गया है कि इनके नाम काल्पनिक हैं लेकिन इनकी कहानियां वास्तविक घटना से प्रेरित हैं. अफगानिस्तान-ईरान सीमा और सीरिया के भयावह सीन…वहां की फिजा में आतंकियों के हाथों में गरजती हुईं राइफलें और दूसरी तरफ तीन गैर-इस्लामिक लड़कियों की ट्रैपिंग से फिल्म के कथानक को विस्तार दिया गया है. और फिल्म के अंत में वास्तविकता की पुष्टि के लिए कुछ तथ्य और वक्तव्य भी दिखाये गये हैं.
दोनों फिल्मों के एजेंडा और नैरेटिव में कोई अंतर नहीं है. द कश्मीर फाइल्स जैसे केवल यह दिखाती है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का शिकार केवल हिंदू समुदाय हुआ उसी तरह द केरल स्टोरी यह बताती है कि ISIS ने केवल गैर-इस्लामिक लड़कियों को अपने जाल में फंसाने के लिए चारों तरफ एजेंटों को फैला रखा है.
इस धारणा को पुख्ता तौर पर पेश करने के लिए दोनों फिल्में इस्लामिक आतंकवाद की बर्बरता की कहानी कहती हैं. दी कश्मीर फाइल्स की प्रस्तुति जितनी भड़काऊ थी, दी केरल स्टोरी की प्रस्तुति भी उससे कम भड़काऊ नहीं है. दी केरल स्टोरी में कई डायलॉग विवादित होने लायक हैं. एक मुस्लिम लड़की जिस तरह से क्रिश्चियन और हिंदू धर्म के बारे में टिप्पणियां करती है उसके विवादित होने की पूरी आशंका है. लेकिन उसे सेंसर नहीं किया गया है.
हालांकि रिलीज से पहले फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला और दस सीन काटे भी गये लेकिन इसके बावजूद दी केरल स्टोरी पूरे परिवार को देखने लायक नहीं है. फिल्म में हिंसा का विभत्स चित्रण है. बिना ब्लर किये खून के बिखरे धब्बे, रेत में सरकटी लाशें, औरतों को गोली मारने और हाथ काटने के सीन रोंगटे खड़कर देने वाले हैं.
वैसे तो फिल्म में कई सारे निगेटिव पहलू हैं लेकिन सबसे ज्यादा खतरनाक सीन यहां बलात्कारों के दिखाये गये हैं. बर्बर बलात्कार के ये दृश्य फिल्म की लोकप्रियता में सबसे बड़ी बाधा लगते हैं. हिंदुस्तान जैसे मुल्क में पूरा परिवार बर्बर बलात्कार के दृश्यों से भरी फिल्म को एक साथ देखना बिल्कुल पसंद नहीं करता. इस लिहाज से फिल्म को पूरे परिवार का साथ मिलेगा, इसमें जरा संदेह है.
बलात्कार के दृश्यों के फिल्मांकन में प्रतीकों का सहारा लेकर फिल्मकार बच सकते थे. डायरेक्टर और राइटर सुदीप्तो सेन इस मोर्चे पर चूक गए. हालांकि ऐसा लगता है उन्होंने कुछ मामलों में दी कश्मीर फाइल्स की निगेटिव रिव्यू से जरूर सबक लिया है. क्योंकि दी कश्मीर फाइल्स में कहानी कम थी और उसके हर किरदार भाषण ज्यादा करते दिखाई देते हैं, वहां दी केरल स्टोरी में कहानी भी है और कैरेक्टराइजेशन भी.
यहां के किरदार एक दो जगह छोड़कर मतलब बेमतलब अक्सर भाषण नहीं करते देखे जाते. यहां कहानी में पारिवारिक रिश्तों का ताना-बाना बुना गया है. मां-बेटी, पिता-पुत्री की संवेदनाओं को व्यापक जगह दी गई है. तीनों सहेलियों का आपसी इमोशनल रिश्ता भी है. इससे फिल्म की पटकथा को बल मिलता है. इस मामले में विवेक अग्निहोत्री से थोड़े अलग साबित होते हैं सुदीप्तो सेन. इसका ट्रीटमेंट एक नैरेटिव के साथ जरूर जुड़ा हुआ है.
इस सवाल का सही-सही जवाब एक से दो दिन में सबको मिल जाएगा. कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार कई सालों से राष्ट्रीय स्तर पर एक बहस का विषय रहा है. लेकिन केरल में धर्मांतरण का मुद्दा मीडिया की सुर्खियों में ज्यादा रहा या फिर उस पर राजनीतिक बहसें अधिक होती रहीं. कश्मीरी पंडितों के मुद्दे की तरह यह मुद्दा आम संवेदना नहीं जुड़ सका. और कोई भी फिल्म तभी ब्लॉकबस्टर साबित होती है जब उसकी कहानी आम जनों की संवेदना को छू लेती है.
दी केरल स्टोरी के साथ भी दी कश्मीर फाइल्स जैसा संयोग बनेगा, इसकी संभावना कम दिखती है. क्योंकि बलात्कार के अत्यधिक बर्बर दृश्यों ने इसके एजूकेशनल या इंस्पिरेशनल पक्ष को कमतर बना दिया है. हां, फिल्मकार का मकसद अगर केवल पोलिटिकल एजेंडा सेट करना है तो उसमें यह जरूर कामयाब है. लेकिन इसके बरअक्स उन्हें बॉक्स ऑफिस ब्लॉकबस्टर की तमन्ना छोड़नी पड़ेगी.
फिल्म के थीम और एजेंडे के एकतरफा होने की बहस हम भले कर लें लेकिन एक्टिंग, डायरेक्शन, स्क्रीनप्ले और डायलॉग की बात करें तो फिल्म का ओवरऑल ट्रीटमेंट बेहतर है. कलाकारों में अदा शर्मा के अलावा सिद्धी इदनानी, योगिता बिहानी और सोनिया बलानी ने भी अपने-अपने रोल के साथ न्याय किया है.
एक पेशेवर डायरेक्टर के तौर पर सुदीप्तो सेन की बड़ी सफलता ये है कि उन्होंने इन अभिनेत्रियों से भरसक उम्दा अभिनय करवा लिया है. यह फिल्म आम लोगों के जेहन में स्थान बनाए या न बनाएं किंतु इन अभिनेत्रियों की मंज़िल के लिए नये रास्ते खुल गए हैं.