आपकी कलम
आत्ममीमांसा : वरिष्ठ पत्रकार साथी छोड़ते रहे नई दुनिया, दुखी भी थे अभयजी
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आत्ममीमांसा (101)
-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
- आदरणीय राजेन्द्रजी माथुर के बाद क्रम से नई दुनिया का साथ छोड़ने वालों में श्री महेश जोशी, श्री श्रवण गर्ग, श्री एन के सिंह और श्री शाहिद मिर्जा प्रमुख थे। इनके छोड़ जाने से अभयजी छजलानी बहुत दुखी थे। वे टूटती टीम को नहीं संभाल पाने में अपने को असमर्थ पा रहे थे।
अभयजी ने कोशिश की पर....
मैं उन लोगों से सहमत नहीं हू्ँ कि वे खुश थे, या लोगों को जाने दिया और कोई प्रयास नहीं किया। श्री श्रवण गर्ग से उन्होंने कहा था श्रवणजी, माथुरजी छोड़ गए, आपकी अखबार को जरुरत है, इसलिए पुनर्विचार करोगे तो अच्छा होगा।
फ्रीप्रेस के सम्पादक बने श्रवणजी
श्रवणजी को फ्रीप्रेस में सम्पादक की भूमिका के साथ अच्छा वेतन और सुविधाएं मिल रही थी, इसलिए चाहकर भी वे नहीं रुके। शाहिदजी भी दैनिक भास्कर में अच्छी भूमिका के लिए जा रहे थे। प्रगति और पद के अवसर किसी को नहीं छोड़ना चाहिए। अभयजी ने उनको भी रोका था।
सबमें सम्पादक बनने की योग्यता थी
महेशजी जोशी को भी नहीं रोक पाए। वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह के साथ भी यही सब कुछ था। इनमें एक भी ऐसा नहीं था जो नई दुनिया का सम्पादक बनने की योग्यता न रखता हो। यह पद तो अभयजी को भी उस समय नहीं मिल सका हो, तब इन सबको अभयजी कैसे सम्पादक बनाते और रोक लेते।
मैं स्वयं गवाह था...,
अभयजी इन सबके जाने से दुखी थे, यह मैं स्वयं दावे से इसलिए कह सकता हू्ँ कि अभयजी ने स्वयं मुझसे यह बात कही थी। सुबह ग्यारह बजे अक्सर हम चाय पर उनसे मुलाकात करते थे, यह नित्य होता था और श्री बहादुर सिंह गेहलोत के सामने कही थी।
राजेश बादल ने संभाली भूमिका
राजेन्द्र माथुरजी के बाद इन दिग्गजों के जाने के बाद पेज चार की सामग्री के चयन की भूमिका राजेश बादल संभालने लगे थे। बाद में श्री यशवंत व्यास, स्वर्गीय दिलीप ठाकुर, श्री रवीन्द्र व्यास, श्री भानु चौबे का एक लंबी प्रक्रिया के बाद चयन हुआ। इनको सम्पादकीय विभाग में भूमिकाएं मिली और अखबार निखरने लगा था।
और नए साथी आए और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
श्री राहुल बारपुतेजी ही सलाहकार सम्पादक की भूमिका में थे। एक अंतराल के बाद सुश्री मीना राणा भी सम्पादकीय विभाग का हिस्सा बनी। पत्र सम्पदक के नाम का सम्पादन और चयन उनके ही जिम्मे था। श्री प्रकाश हिंदुस्तानी डाक डेस्क पर श्री महेन्द्र सेठिया के साथ कार्यरत थे।
आए, जुड़े और छोड़ने भी लगे
मगर जिस जोशोखरोश से ये साथी आए थे, दो से तीन को छोड़कर सभी नई दुनिया छोड़ते चले गए। फिर मैंने अभयजी को दुखी देखा। स्वर्गीय शिव अनुराग पटैरिया को अभयजी ने बड़ी भूमिकाएं दी, लेकिन वे बहुत महात्वाकांक्षी थे और ज्यादा दिन अभयजी की गुडलिस्ट में बने नहीं रह सके।
फिर मैंने किया आग्रह...
तब अवसर पाकर मैंने अभयजी से आग्रह किया कि आप नए लोगों को अवसर दे रहे हैं, मुझ पर भी कृपा कीजीए, पर मुझ पर उनकी कृपा नहीं बरसी। वही लोकप्रिय डायलाग सुनने को मिला तुम परिवार के हो, अपने से ज्यादा संस्थान के हित की सोचना चाहिए। मैं फिर परिवारभाव की झील में डुबकी लगाने को मजबूर था। प्रूफ रीडिंग, सम्पादकीय विभाग की डेस्क दर डेस्क घुमता हुआ मोनो फोटो कम्पोजिंग तकनीकी विभाग की भूमिका जारी थी।





