सुरक्षित गोस्वामी आध्यात्मिक गुरु क्या हमारी वाणी हमारे मन का आइना होती है?- अमित कालरा, अमृतसरहां। हमारी वाणी हमारे मन की अवस्था को दर्शाती है। जैसा मन होगा, वैसे ही शब्द निकलेंगे।
कई बार मन में द्वेष होता है, लेकिन संबंधों को बनाए रखने के लिए हम बड़ी चालाकी से शब्दों को सजाकर बोलते हैं। अगर शब्दों की यह चतुराई न हो, तो हम द्वेष को एकदम बाहर निकाल देते हैं, जिस कारण दूसरे से मनभेद हो जाता है।
दोष वाणी में नहीं, मन की बिखरी अवस्था का होता है। हमारी कोशिश मन में बदलाव की होनी चाहिए, न कि सिर्फ वाणी का सुर सुधारने की। जैसे किसी बहू के मन में सास के लिए या सास के मन में बहू के लिए अच्छी भावना नहीं है, लेकिन शब्दों को अच्छी तरह पेश कर दिया जाता है तो लगता है कि आपस में बड़ा प्यार है।
प्यार रखना ही है तो दिखावे का क्यों? मन से भी अच्छी भावना रखें। संबंधों में और मजबूती आएगी। साथ ही आपका मन भी शांत रहेगा। वाणी अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए होती है और सामने वाला जिस उलझन में या मन की जिस अवस्था में है, वहां से उसे ऊपर लाने के लिए होती है।
अगर कठोर शब्द दिया भी जाए, तो वह सुधार के लिए हो, न कि नीचा दिखाने के लिए। आज हर शख्स अपनी दुनिया में उलझा है। ऐसे में अहंकार, स्वार्थ या द्वेष से भरे हमारे शब्द दूसरे को तकलीफ दे सकते हैं। अगर बिखरे मन को साधना है तो वाणी को साधना एक आसान तरीका होता है, क्योंकि जैसे ही वाणी को संभालकर बोलते हैं, मन अपने आप सधने लगता है। स्वस्थ जीवन के लिए मन और वाणी दोनों का संयमित होना बड़ा जरूरी होता है।