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यूपी में सरकार किसी की हो लेकिन इस सीट पर चलता है कांग्रेस का सिक्का, फेल हो जाती है हर गणित
Paliwalwaniउत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और सभी राजनीतिक दल पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं। 2022 का यूपी चुनाव पहले के चुनावों से कुछ अलग रूप में नजर आ रहा है, क्योंकि मुख्य लड़ाई भाजपा और सपा के बीच ही नजर आ रही है। बसपा पहले जैसी मजबूत नहीं लग रही है तो कांग्रेस के ऊपर दबाव है कि वह अपना पुराना प्रदर्शन ही दोहरा ले। हालांकि उत्तर प्रदेश में एक विधानसभा सीट ऐसी भी है जहां पर कांग्रेस का दबदबा पिछले 40 सालों से हैं।
रामपुर खास सीट पर पिछले 42 सालों से कांग्रेस का दबदबा:
प्रतापगढ़ जिले की रामपुर खास सीट पर कांग्रेस का दबदबा 1980 से बना हुआ है। प्रदेश में सरकार किसी की रही हो, चुनाव में कोई भी दल कितना ही मजबूत क्यों ना हो, चुनाव में किसी की भी लहर हो लेकिन इस सीट पर कांग्रेस की जीत तय रहती है। वर्तमान में इस सीट से विधायक कांग्रेस की नेता आराधना मिश्रा मोना हैं। आराधना, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी की बेटी हैं।
1980 से लेकर 2012 तक लगातार 9 बार प्रमोद तिवारी रामपुर खास सीट से विधायक चुने गए। प्रदेश में सरकारें बदलीं ,मुख्यमंत्री बदले लेकिन प्रमोद तिवारी की बादशाहत रामपुर सीट पर बरकरार रही। प्रमोद तिवारी का लगातार 9 बार विधायक बने रहना भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है। 2017 के विधानसभा चुनाव में जब प्रमोद तिवारी राज्यसभा सांसद थे उस वक्त उन्होंने इस सीट से अपनी बेटी आराधना मिश्रा को चुनाव मैदान में उतारा। आराधना मिश्रा मोना ने बीजेपी प्रत्याशी को 17000 से अधिक वोटों से हराया था।
आराधना मिश्रा 2 बार से विधायक:
आराधना मिश्रा लगातार दो बार से विधायक हैं। 2013 में जब प्रमोद तिवारी राज्यसभा सांसद बन गए, फिर 2014 में रामपुर खास सीट पर उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में कांग्रेस ने आराधना मिश्रा को टिकट दिया। आराधना मिश्रा ने उपचुनाव में भी जीत हासिल की और विधायक बनी।
वर्तमान में आराधना मिश्रा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के विधायक दल की नेता भी हैं। पूरी संभावना है कि इस चुनाव में भी इस सीट पर कांग्रेस की उम्मीदवार आराधना मिश्रा मोना ही होंगी और जीत की हैट्रिक भी लगा सकती हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के गिने-चुने ही विधायक हैं और उसमें एक आराधना मिश्रा हैं।
जातीय समीकरण:
बता दें कि रामपुर खास सीट पर सभी वर्ग के लोग रहते हैं लेकिन यह विधानसभा ब्राह्मण, क्षत्रिय और दलित बाहुल्य है। अगर पिछले 42 सालों के नतीजों पर नजर डालें तो एक ही बात समझ में आती है कि यहां पर जाति धर्म का कोई राजनीतिक मतलब नहीं है। इस विधानसभा सीट पर सारे जातीय समीकरण प्रमोद तिवारी के आगे फेल हो जाते हैं।