इंदौर
विमुक्ता जी, हम शर्मिंदा है... मुख्यमंत्री के मुंह से दो बोल का इंतजार खत्म नही हुआ, जीवन की कहानी खत्म हो गई
नितिनमोहन शर्मा- जिंदा जलाई गई प्राचार्य हार गई जिंदगी की जंग
- उच्च शिक्षा मंत्री में रत्तीभर नैतिकता हो तो अब दे इस्तीफ़ा, कॉलेज प्रबंधन भी कटघरे में
- निजी कॉलेजों, यूनिवर्सिटी, उच्च शिक्षा विभाग के गठजोड़ की हो जांच
- महज एक सब इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर पुलिस ने भी जिम्मेदारी से झाड़ा पल्ला
- हंसती खेलती जिंदगी के साथ उजड़ गया एक पूरा परिवार, आरोपी अब जाकर रासुका में निरुध्द
नितिनमोहन शर्मा...✍️
विमुक्ता जी। हम शर्मिदा हैं। दम तोड़ती संवेदनाओं वाला समाज शर्मिंदा हैं। इन्दौर शर्मसार हैं। पेट्रोल डालकर जिंदा जलाने की घटना उस शहर में हो गई जो "एजुकेशन हब" हैं। फिर भी सब तरफ ख़ामोशी पसरी रही। कोई हलचल नही। न समाज मे। न सिस्टम में। न सत्ता में। न सरकार में। न नेताओ में। न अफ़सरो में। जलाई गई एक कॉलेज की प्राचार्य थी। उसी कॉलेज में बाल्टी भर पेट्रोल डालकर उसी स्टूडेंट ने जला दिया, जिसके भविष्य को वो गढ़ रही थी। देह 90 फीसदी झुलस गई और ये ही झुलसी देह 5 दिनों तक जीवन मौत से संघर्ष करती रही। लेकिन शुरू के 3 दिन तक किसी ने ख़बर तक नही ली। न शहर के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने। न अफ़सरो ने। न विश्वविद्यालय की कुलपति ने। न उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक ने। न फार्मसी महकमे के कर्ताधर्ताओं ने। मासूम बेटी और परिजनों के साथ अकेले अस्पताल में संघर्ष। कितना शर्मनाक रहा ये व्यवहार विमुक्ता जी आपके साथ। हम शर्मिंदा हैं।
हम शर्मिंदा है विमुक्ता जी। आपकी झुलसी देह की कारुणिक चीत्कार भी प्रदेश के मुखिया का दिल नही पसीजा पाई। आपको उम्मीद थी कि वे अपने मुंह से दो शब्द आपके लिए बोलेंगे। आपकी पूरी प्राचार्य, प्राध्यापक बिरादरी के लिए बोलेंगे। बोलेंगे नही तो लिखेंगे। उद्वेलित होंगे। दुःखी भी होंगे वो। लेकिन शर्म की बात है कि ऐसा कुछ हुआ नही। वो उस शहर में आये भी थे जहां आप जिंदा जला दी गई। एक राजनीति से जुड़े धर्म के कार्यक्रम में। विशेष हेलीकॉप्टर से। अतिरिक्त समय निकालकर। पर आप तक नही आये और न आपके साथ हुए व्यवहार पर कोई दिशा निर्देश देते नजर आए। आपकी बीटिया को अपने "मामा" से बहुत उम्मीदें थी। भरोसा था। लेकिन आपका इंतजार खत्म नही हुआ और जिंदगी खत्म हो गई। सुर्ख फफोलों के साथ असहनीय दर्द सहती आपकी झुलसी देह शायद अब प्रदेश के मुखिया की संवेदनाये जगा पाये? और पूरे सिस्टम जांच के दायरे में आ जाये।
विमुक्ता जी। हम शर्मिदा है। न तो हम आपके विभाग के मंत्री को आप तक ला पाये न मंत्री महोदय से इतना सा भी कहलवा पाये कि घटना बहुत दुःखद हैं। मंत्री बगल के शहर उज्जैन में ही रहते हैं लेकिन इन्दौर की इस घटना पर उन्होंने ऐसे मुंह फेर लिया जैसे सुदूर झारखंड के किसी वनांचल में कोई प्राचार्य जिंदा जला दी गई हो और जिससे प्रदेश, प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री का कोई लेना देना नही। आप जिस देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अधीन थी, उसकी मुखिया को भी 4 दिन बाद आपके हाल जानने का वक्त मिला। अतिरिक्त संचालक का तो पता ही नही चला कि उन्होंने क्या किया?
विमुक्ता जी। हम शर्मिंदा है। हम पुलिस की जवाबदेही तय नही कर पाए। जबकि आप, आप पर होने वाले संभावित हमले के विषय मे थाना सिमरोल को लिखित में कई बार शिकायत दर्ज करा चुकी थी। कालेज प्रबंधन ने भी शिकायती दस्तावेज भेजे थे थाने पर लेकिन पुलिस ने आपकी शिकायत पर जांच तो दूर, कान तक नही धरे। न घटना के 3 दिन तक पुलिस महकमे के किसी बड़े अफसर ने आप तक आकर वस्तुस्थिति जानने की जहमत उठाई। दबाव बना तो उस सब इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर अपनी "ड्यूटी" मुक्कमल कर ली, जिसके जिम्मे आपकी शिकायतों की जांच का काम था।
विमुक्ता जी। हम शर्मिंदा है। जो हम उस गठजोड़ को उज़ागर नही कर पाए जो निजी कॉलेजों, उच्च शिक्षा विभाग, यूनिवर्सिटी और उच्च शिक्षा मंत्री के बीच बना हैं। अगर ये गठजोड़ न होता तो शायद आपके साथ ये हादसा न होता। आप जिस कालेज में थी, वहाँ न सीसीटीवी कैमरे थे न केम्पस सुरक्षित। न पूरी फेकल्टी थी। न आपको और प्राध्यापकों को योग्यता के अनुरूप पूरी पगार मिल रही थी।
कॉलेज के नाम से तेजी से उगी ये छोटी छोटी "दुकानें" किसके प्रश्रय से संचालित हो रही है, ये किससे अब छुपा हैं? न बिल्डिंग। न मैदान। न स्टाफ। न संसाधन। न मुक्कमल फेकल्टी। न सुरक्षा। कमरों ओर दड़बों में क्या किसी प्रदेश के कॉलेज होते हैं? लेकिन हमारे एमपी में है और वो भी इन्दौर जैसे शहर में। जहाँ एकमुश्त फीस ही उच्च शिक्षा का मुख्य आधार हैं। जहां स्टूडेंट के ओरिजनल डॉक्यूमेंट एक बार ले लेने के बाद उसे तब तक नही लौटाए जाते, जब तक उससे पाई पाई वसूल नही जाती। जहा स्टूडेंट्स चाहकर भी यूनिवर्सिटी से डुप्लीकेट मार्कशीट तक नही ले पाते क्योकि इन दुकानों का गठजोड़ यूनिवर्सिटी तक कसा हुआ हैं। मालवा निमाड़ अंचल से आने वाले ऐसे कितने ही स्टूडेंट्स इन निजी दुकानों के मकड़जाल में उलझकर रह जाते हैं। उनकी कही कोई सुनवाई नही। क्या इसी व्यवस्था को एजुकेशन हब कहा जाता हैं?
विमुक्ता जी। हम शर्मिंदा है। क्योंकि हमें पता है कि आपकी दर्दनाक मौत भी इस सिस्टम को नही बदल पाएगी। निजी कॉलेजों की मनमानी अपने दम पर क्या हो सकती है? जहां से इन्हें दम मिलता है, वो सरकार और उसके नुमाइंदो के पास तो आपको साथ हुए इस जघन्य और विभत्स घटना पर आपके हाल जानने, आपकी सुध लेने, घटना ओर दो शब्द बोलने का वक्त तक नही। जिस सरकार का मुखिया घटना वाले शहर में आकर, झुलसी देह के रुदन के बीच भजन गाकर निकल जाए...उस सरकार से उच्च शिक्षा विभाग में पसरे भयानक भ्र्ष्टाचार के निदान की उम्मीद बेमानी हैं।
माफ करना 'लाड़ली बहना' विमुक्ता जी, हम शर्मिंदा हैं। हम आपको समय रहते उस राज्य में न्याय नही दिलवा पाये, जहाँ भविष्य की सत्ता के लिए हाल ही में लाडली बहना योजना का शंखनाद हुआ हैं। उस राज्य में जहा महिलाओं के लिए लाडली लक्ष्मी योजना, मातृशक्ति संबल योजना, जननी सुरक्षा योजना आदि आदि योजनाओं का डंका-डिंडोरा बीते 15-17 बरस से पीटा रहा हैं।