इंदौर
भीषण गर्मी में नए सत्र का 'चोचला' : कब, कैसे, किस अनुमति से हुआ शुरू?
नितिनमोहन शर्मा.
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तेज़ गर्मी में स्कूलों की टाइमिंग को लेकर महापौर ने कलेक्टर को लिखा पत्र
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भयावह गर्मी में शुरू होने वाला नया सत्र क्या पढ़ाई-लिखाई के लिए होता हैं?
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नए सत्र के नाम पर रिज़ल्ट वाले दिन ही पेरेंट्स से फ़ीस की एक किश्त वसूल कर क़िताब कॉपी की लिस्ट थमा देते हैं
नितिनमोहन शर्मा...✍?
आज तक ये समझ नही आया कि ये भीषण गर्मी में, वार्षिक परीक्षाओं के परिणाम के तुरंत बाद नवीन शिक्षा सत्र की शुरुआत कब, कैसे और किसकी अनुमति से हुई? क्या ये फैसला सरकार ने लिया या सरकार के 'सिर पर सवार' निजी स्कूल वालों का हैं? अगर सरकार का फैसला होता तो वह स्वयम के सरकारी स्कूलों में नवीन सत्र पुरानी परिपाटी के तहत जलाई महीने में क्यो शुरू करता हैं?
अगर सरकार, अपने सरकारी स्कूलों को जुलाई में शुरू करती हैं तो फ़िर ये निजी स्कूल वाले किसकी शह पर भीषण गर्मी में नवीन सत्र शुरू कर रहें हैं? इस संदर्भ में शिक्षाविदों की कोई बैठक या राय या प्रस्ताव सरकार के समक्ष आया था क्या? अगर आया था तो उस पर आम राय कब बनी? कुछ पता ही नही।
गलती तो पालकों की भी : 'हिज-हाइनेस' मान, सर झुकाए सब फैसले स्वीकार कर रहें हैं?
सवाल तो ये भी है कि क्या सिर्फ पढ़ाई-लिखाई के प्रति गम्भीरता के कारण ये निजी स्कूल भरचक गर्मी में नया सत्र शुरू कर रहें हैं या इसके पीछे कुछ और ' ज्ञान-गणित ' हैं? गलती तो पालकों की भी हैं, जो लूट मचाये इन निजी स्कूलों को ' हिज-हाइनेस ' मान, सर झुकाए सब फैसले स्वीकार कर रहें हैं? बच्चें तो आपके हैं न कि स्कूल वाले के? फ़िर आप इस भट्टी होते मौसम में स्कूल चलो अभियान पर क्यो मुंह सिले बेठे है? कलेक्टर से फ़रमान जारी करने की डिमांड करते हैं, मीडिया को माध्यम बनाते है लेकिन स्वयम क्या कर रहें हैं? खुद इस गर्मी में घर मे दुबककर मासूम बच्चों को ऐसे कैसे रोज धूप के हवाले कर रहें हैं?
सरकार, प्रशासन, मीडिया से पहले पेरेंट्स को नज़र नही आता
सरकार, प्रशासन, मीडिया से पहले पेरेंट्स को नज़र नही आता कि ये अटपटे समय कैसे नवीन सत्र शुरू हो गया? किसी पेरेंट्स ने या उनके समूह ने इस पर कभी कोई आवाज़ उठाई? उस सरकार व सिस्टम से उम्मीद लगा रहें हैं, जिसे ये दुकान के रूप में चल रहे प्राइवेट स्कूल वाले कब से ' घोलकर ' पी गए।
नही पिये होते रिज़ल्ट वाले ही दिन आपसे फ़ीस की पहली किश्त वसूलकर कॉपी-किताबों की लिस्ट थमाते? एनसीआरटी की कोर्स क़िताबों की जगह प्राइवेट पब्लिशर की महंगी क़िताबों की सूची थमाते? हर साल मन-मुताबिक फ़ीस बढ़ाते? यूनिफॉर्म बदलते? इन सबकी खरीदी के लिए, उन दुकानों के अते पते बताते, जिनसे स्कूल वालों की कमीशन की साठगांठ हैं?
जबलपुर व कलेक्टर दीपक सक्सेना मॉडल ' क्यो लागू नही हुआ
अपने बच्चे के हित की लड़ाई पेरेंट्स न लड़ेंगे तो क्या सरकार-प्रशासन लड़ेगा? लड़े थे जबलपुर कलेक्टर लेक़िन ये लड़ाई जबलपुर से बाहर निकल ही नही पाई। रस्मी तौर के कुछ फरमानों को छोड़ दे तो जबलपुर को छोड़ प्रदेश के अन्य जिलों में प्राइवेट स्कूल वालो के मामले में 'जबलपुर व कलेक्टर दीपक सक्सेना मॉडल ' क्यो लागू नही हुआ या लागू करवाया गया?
इस सत्र में भी तमामं निजी स्कूल वालो ने एक बार फिर ' प्राइवेट स्कूल-निजी पब्लिशर 'के गठजोड़ का मुज़ाहिरा किया और सिलेबस से हटकर पुस्तको की सूचियां आपको यानी पेरेंट्स को न सिर्फ़ थमाई, बल्कि ख़रीदने को मजबूर भी कर दिया। वह भी उन्हीं दुकानों से जिससे स्कूल का ' कमीशन का अनुबंध' हैं। जबलपुर कलेक्टर दीपक सर ने इसी गठजोड़ का तो भंडा फोड़ा था। फ़िर ये कार्रवाई प्रदेश के अन्य ज़िलों में क्यो नही हुई? सरकार ने इस पर कोई कदम क्यों नही उठाया?
प्रदेश में शिक्षा मंत्री, मंत्रालय भी हैं क्या?
बेतुके समय भीषण गर्मी में ये नया सत्र सबकी मिलीभगत से ही शुरू होने का ' चोचला ' शुरू हुआ हैं। पेरेंट्स, मीडिया के ज़रिए बच्चों के स्वास्थ्य की फ़िक्र कर रहे है कि उन्हें भीषण गर्मी में स्कूल आना जाना पड़ रहा है और कलेक्टर से उम्मीद कर रहे है कि वह इन स्कूलों पर लगाम केसे। क्या कलेक्टर ' सरकार ' है जो वे ये काम सहजता से कर लेंगे? स्कूलों के नाम पर ये ' कारपोरेट दुकानें' सरकार पर ही हावी है तो एक जिले के जिलाधीश की क्या बिसात? जबलपुर के बाद अन्य जिलों में निजी स्कूलों की लूट पर ' आँखन देखे मक्खी निगलने' की स्थिति क्या बताती है?
नागरिकों को पता ही नही कि राज्य का शिक्षा मंत्री कौन हैं
जिम्मेदार तंत्र में सबको सब पता है, पर सब 'शुतुरमुर्ग ' बने हुए हैं। मध्यप्रदेश के शिक्षा मंत्री को कभी इस मूददे पर बोलते, सुनते देखा? मोहन राज ही नही शिव राज में भी शिक्षा मंत्री नाम का ये ' जीव प्राइवेट स्कूलों के नाम पर ' सदैव ' सुप्तावस्था ' में ही नज़र आया। इसलिए प्रदेश के नागरिकों को पता ही नही कि राज्य का शिक्षा मंत्री कौन हैं और वह निजी स्कूलों की लूट रोकने क्या कर रहा हैं? मंत्री का बयान जब तब आया भी तो सिर्फ़ सरकारी स्कूलों को लेकर ही। प्राइवेट स्कूल मूददे पर शायद वे कोई 'अघोषित प्रोटोकॉल' का वैसे ही पालन करते हैं, जैसे इसके पूर्व ओर उससे भी पूर्व की सरकारें करती रही।
कलेक्टर के स्कूलों के टाइम बदलने मात्र से प्राइवेट स्कूलों के हाल बदल नही जाएंगे। हा ये जरूर हुआ है कि आपके बच्चो की चिंता को ख़ुलासा फर्स्ट द्वारा जगजाहिर करने के बाद शहर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कलेक्टर आशीषसिंह को स्कूलों की टाइमिंग को लेकर पत्र लिखा है जिसमे गर्मी में बच्चो के स्वास्थ की चिंता प्रकट की गई है। अब सबकी नज़र कलेक्टर महोदय पर है...!!