Monday, 16 June 2025

ज्योतिषी

होलिक दहन मुहुर्त 13 मार्च रात्रि 11.28 बजे से 12.15 तक : बाबूलाल शास्त्री

paliwalwani
होलिक दहन मुहुर्त 13 मार्च रात्रि 11.28 बजे से 12.15 तक : बाबूलाल शास्त्री
होलिक दहन मुहुर्त 13 मार्च रात्रि 11.28 बजे से 12.15 तक : बाबूलाल शास्त्री

टोंक. होलिका दहन भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में किया जाना शास्त्र सम्मत है, इस वर्ष 13 मार्च 2025 फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी गुरूवार सुबह 10.36 बजे तक है, उपरांत पुर्णिमा तिथि प्रारंभ है, जो 14 मार्च शुक्रवार को दोपहर 12.24 बजे तक है, जो तीन प्रहर से कम व्याप्त है।

अत: इस दिन होलिका दहन नहीं हो सकता। अत: 13 मार्च गुरूवार को फाल्गुन पूर्णिमा प्रदोष व्यापिनी है, क्योंकि अगले दिन प्रदोष काल में पूर्णिमा का अभाव है। 

अत: इसी दिन 13 मार्च को होलिका दहन किया जाना है। मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक  बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि 13 मार्च गुरूवार को भद्रा सुबह 10.36 बजे से अद्र्ध रात्रि 23.27 बजे तक रहेगी। इस अवधि में चन्द्र देव, सिंह राशि में विचरण करेगें। अत: भद्रा पृथ्वी लोक नेऋत्य कोण में रहेगी।

मुहूर्त चिंता मणी के अनुसार भद्रा मृत्यु लोक की होने से होलिका दहन में सर्वथा त्याज्य है। अत: होलिका दहन निशिथ काल के पुर्व कर लेना चाहिए, 13 मार्च गुरूवार को भद्रा उपरांत मध्यरात्रि 23.27 बजे के बाद किया जाना चाहिए,  होलिका दहन का श्रेष्ठ मुहूर्त मध्य रात्रि 11.28 बजे से अद्र्ध रात्रि 12.15 तक है जो देश व राज्य के सुख समृद्धि के लिए अति विशेष श्रेष्ठ एवं शुभ मूहूर्त है। 

12 मार्च बुधवार को ढाल बिडकुला जेलपोणी पोने का समय सुबह 06.44 से सायकाल 07.30 तक ढाल गोबर के बने हुए पो लेना चाहिए एवं होली रोपण कर लेना चाहिए। 14 मार्च 2025 शुक्रवार को होली रंगोत्सव मनाया जायेगा। इसी दिन सम्राट की सवारी निकाली जायेगी। बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि अन्य मत धर्म सिन्धु परिच्छेंद दो के अनुसार निशीथोतरं भद्रा समाप्तों भद्रा मुखं त्यकत्वा भद्रा मेव के अनुसार यदि भद्रा निशीथ काल से आगे चली जाये तो भद्रा के मुख को त्याग कर होलिका दहन शास्त्र मत हैए भद्रा मुखं वर्ज यित्वा होलिकाया: प्रदीपनम अन्य मत- भद्राया विहितं कार्य होलिकाया प्रपूजनम! बताये गये हैं, किन्तु सभी अनिष्ठों का नाश एवं मानव कल्याण के लिए भद्रा उपरांत ही होलिका दहन किया जाना चाहिये।

भद्रा का शुभ अशुभ योग

टोंक। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष महत्व है, क्योंकि भद्रा काल में मांगलिक-उत्सव  शुभ कार्यों का शुभारंभ समापन, समाप्ति शुभ अशुभ मानी जाती है । अत: भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी धार्मिक आस्थावान व्यक्ति शुभ मांगलिक कार्य नहीं करता। मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनि देव की बहिन है।

शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कडक़ बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में कुछ समय अवधि के लिए स्थान दिया। भद्रा की स्थिति में शुभ मांगलिक कार्योंए यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया है, किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य  सफलता देने वाले योग शुभ माने गए हैं ।

शुभ मांगलिक कार्यो में भद्रा का  शुभ अशुभ महत्व इस प्रकार है 

हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण,  इनमें करण पंचांग का  महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है।

पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यूं तो ‘‘भद्रा’’ का शाब्दिक अर्थ  कल्याण करने वाली है, लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार अलग.अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों घूमती है, जब यह मृत्युलोक में होती है तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या उनका नाश करने वाली मृत्यु दायक मानी गई है।

जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है उस अवधि में भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है एवं इस का मुख सामने होता है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। क्योंकि उस के अनिष्ट फल मिलते हैं, इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है।

चन्द्रमा जब मेष वृष मिथुन वृश्चिक राशि में विचरण करता है तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है उस का मुख ऊपर की और होता है, चन्द्रमा का विचरण कन्या तुला धनु मकर राशि में होता है तो उस का मुख नीचे की ओर होता है, अर्थात पाताल की ओर होता है, तो पुंछ ऊपर की और होगी, भद्रा जिस लोक में रहती है उसी का फ़ल देती है।

बाबूलाल शास्त्री : टोंक, राजस्थान 

मो. 9413129502, 8233129502

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