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ज्योतिष शास्त्र : गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए करें इस कवच का करें पाठ, सभी कष्ट होंंगे दूर

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ज्योतिष शास्त्र : गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए करें इस कवच का करें पाठ, सभी कष्ट होंंगे दूर
ज्योतिष शास्त्र : गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए करें इस कवच का करें पाठ, सभी कष्ट होंंगे दूर

वैदिक ज्योतिष में गुरु बृहस्पति को देवताओं के गुरु की उपाधि दी गई है। गुरु ग्रह धनु और मीन राशि स्वामी हैं। साथ ही  यह मकर राशि मे नीच के होते हैं और कर्क इनकी नीच राशि है। वहीं  गुरु ग्रह ज्ञान, शिक्षक, संतान, बड़े भाई, शिक्षा, समृद्धि, वैभव, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, धन, दान, पुण्य और वृद्धि आदि के कारक होते हैं। ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह 27 नक्षत्रों में पुनर्वसु, विशाखा, और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के स्वामी होते हैं। वहीं गुरु ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने में लगभग ढाई साल का समय लगाते हैं।

वहीं कुंडली में गुरु ग्रह के अशुभ होने से  व्यक्ति की वृद्धि थम जाती है और उसके मूल्यों का ह्लास होता है। पीड़ित गुरु व्यक्ति को शारीरिक कष्ट भी देता है। व्यक्ति को नौकरी तथा विवाह आदि में परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में हम यहां पर बताने जा रहे हैं कि अगर आपकी कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ स्थित है, तो आपको गुरु कवच का नित्य पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव से आपको मुक्ति मिलेगी। वहीं जीवन में धन- संपत्ति का लाभ मिलेगा। साथ ही अविवाहित लोगों के विवाह के योग बनेंगे। वहीं जीवन में सुख- समृद्धि आएगी और ज्ञान में वृद्धि होगी। साथ ही गुरु ग्रह की आप पर विशेष कृपा रहेगी…

गुरु ग्रह कवच

ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः ।

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ।।

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ।

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ।।

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ।

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ।।

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा ।

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ।।

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः ।

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ।।

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु ।

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ।।

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ।

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ।।

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः ।

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ।।

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ।।

 

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