आपकी कलम
भैं गी पाणी में...
राजेन्द्र सनाढ्य राजनभैंगी पाणी में
दो छोरा बैठा-बैठा,
आपस मा करी रा वातं,
अतराक मा सुरू वैईगी,
एक अनोखी करामात।
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एक छोरों बोल्यों,
भैं गी पाणी में,
वठी ने मोटी लगाई,
अधर ऊं उतरी पाणी में।
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कत्याळों तो वेणोंईस हो,
लगाई ने आई गी पाण,
वणी चम्पल पकड़ न,
माथा मा मेली केई दाण।
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म्हूँ थने भैं लागी री हूँ,
थारे घरे आई क ई चरवां,
मोटी- ताजी हूँ तो हूँ,
थारे क्यूँ खाई रा हैं खरवां।
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छोरों बिचारों सकपकाई ग्यों,
वो तो हैंपूची हो अणजाणं,
वणी पड़ौसी री वातं कीदी,
जो दिवाळ्यों वैईग्यों जाण।
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मुहावरों उन्दो पड़ी ग्यों,
दोयां रो नी हो दोस,
एक दूजा रो मुंडों देखें,
क ई कारण नी हो ठोस।
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वातं करणी तो राजन,
अठी ने- वठी ने देख न करणी,
क ई पतों अड़े- भड़े वे,
कोई असी खूँखार धरणी।
कोई असी खूँखार धरणी।।
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● राजेन्द्र सनाढ्य राजन
व्याख्याता- रा उ मा वि नमाना
नि. कोठारिया, जि.राजसमंद, राजस्थान M. 9982980777