आपकी कलम

श्रीमती लीलादेवी पालीवाल के लिए इंसाफ मांगती कविता...

Paliwalwani
श्रीमती लीलादेवी पालीवाल के लिए इंसाफ मांगती कविता...
श्रीमती लीलादेवी पालीवाल के लिए इंसाफ मांगती कविता...

पालीवाल ब्राह्मण समाज के लिए एक सोचनीय प्रश्न खड़ा हो गया है कि कहीं ऐसा भी होता है कि समाजसेवी के घर में ही इतनी पीड़ा दायक घटना घटित हो जाए...लेकिन यदाकदा ही इंसाफ के लिए...अपनी वेदना किसे प्रकट करें...समाज के जिम्मेदारों को जगाना ही होगा...और कविता के माध्यम से पीड़ित ससुराल वालों के लिए न्याय करना होगा...कब तक पैसों के खातिर जिम्मदार लोग...समाज की बहन-बेटियों पर अत्याचार करते रहेगें...इसलिए समाज की एक मासूम बेटी ने बहुत ही पीड़ादायक अपनी लेखनी से समाज के गुंगे...बाहरें...समझदारों को जगाने का काम कर रही हैं, लेकिन जिम्मेदार लोग आंख मुंद कर तमाशामीन बने हुए है...आज नहीं बोले तो फिर कभी मत बोलना...आदरणीय स्वजन एवं समाजजन इन पंक्तियों ने क्यों...के माध्यम से श्रीमति लीलादेवी पालीवाल के लिए इंसाफ मांगा है। कविता के माध्यम से उनको अंतिम पल की कुछ पंक्तियां...जिम्मेदारों को समर्पित...

जलना नहीं था, फिर भी तुने जला दिया क्यों...!

तेरा तो भला किया, फिर भी तुने जला दिया क्यों ।।

जिसकी मैने राह देखी, उसे नाम दिया राहुल...

उस राह ने मुझे जला दिया क्यों...!

जलना नही था, फिर भी तुने जला दिया क्यों।।

जिस अंकुर से मैने घर सींचा...

जिस वृक्ष को मैने अपनी ढ़ाल समझा...!

उस ढाल को मैने अपनी ढाल समझा।।

उस ढाल ने मुझे जला दिया क्यों...

मैने भी सपने सजाएं, तुझमें अपना अक्क्ष देखा...!

उस अक्क्ष ने मुझे जला दिया क्यों।।

जलना नहीं था, फिर भी तुने जला दिया क्यों...

मेरी मां ने तुझमें मेरा जग देखा...!

उसी जगदीश ने मुझे जला दिया क्यो।। 

मेने तो प्यार का एक कोना मंगा... 

तूने मुझे उसी कोने में जला दिया क्यों...!

में भी बहन थी, बेटी थी, भुआ थी।।

तुने ये सोचे बिना ही मुझे जला दिया क्यों...

जलना नहीं या फिर भी तुने जला दिया क्यों...!

तूने मुझे पत्नी का दर्जा दिया, लेकिन जला के क्यों छिना।।

बच्चों ने माँ का हक दिया,लेकिन जला के छिना क्यो...

सास ससुर ने बहु का दर्जा दिया...!

लेकिन जला के छीना न जाने क्यो।। 

जलाना नही था फिर भी तुने जला दिया क्यों...

तुने मेरे परिवार की भी न सोची...!

तुने मुझे इतनी मेहनत से जला दिया, न जाने क्यों...।।

मैने तरे तेरी पलकों की छांव, सम्मान और प्यार मांगा...

तुने उसी निर्दयता के साथ मुझे जला दिया क्यों...!

जलाना नही था फिर भी तुने जला दिया क्यों।।

मरने पर तो हर बेटी जलती है...

पर तुने किसी कि बेटी को जिंदा ही जला दिया...!

जिस लाल रंग से सजाया था ।। 

उसी को तुने कफन बना दिया क्यों... 

जलाना नही था फिर भी तुने जला दिया न क्यो...!

जलना नहीं था, फिर भी तुने जला दिया।।

जलना नही था फिर भी तुने जला दिया...!

● आप सभी श्रीमती लीलादेवी पालीवाल (केलवा) को इंसाफ दिलवाने में हमारा सहयोग करें। क्योकिं अब हम यही चाहते है कि हमारी कोई भी बेटी बहु दर्द से न गुजरे।

आग्रह : रागिनी सोहनलाल जोशी (पीहर पक्ष)

पालीवाल ब्राह्मण समाज 24 श्रेणी 

● पालीवाल वाणी ब्यूरो...✍️

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