आपकी कलम
paliwalwani : पति पत्नी का एक खूबसूरत संवाद
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पति पत्नी का एक खूबसूरत संवाद
मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा
क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता,
मैं बार-बार तुमको बोल देता हूँ,
डाँट देता हूँ , फिर भी तुम
पति भक्ति में लगी रहती हो,
जबकि मैं कभी
पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता ?
मैं वेद का विद्यार्थी और मेरी पत्नी
विज्ञान की, परन्तु उसकी
आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना
ज्यादा हैं , क्योकि मैं केवल पढता हूँ,
और वो
जीवन में उसका पालन करती है.
मेरे प्रश्न पर, जरा वो हँसी, और
गिलास में पानी देते हुए बोली
ये बताइए, एक पुत्र यदि
माता की भक्ति करता है, तो उसे
मातृ भक्त कहा जाता है, परन्तु
माता यदि पुत्र की
कितनी भी सेवा करे,
उसे पुत्र भक्त तो
नहीं कहा जा सकता न.
मैं सोच रहा था,
आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी.
मैंने प्रश्न किया ये बताओ ....
जब जीवन का प्रारम्भ हुआ, तो
पुरुष और स्त्री समान थे,
फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि
स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है ?
मुस्काते हुए उसने कहा ्आपको
थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी.
मैं झेंप गया.
उसने कहना प्रारम्भ किया ्
दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है ...
◆ ऊर्जा और पदार्थ ◆
पुरुष --झ ऊर्जा का प्रतीक है, और
स्त्री --झ पदार्थ की.
पदार्थ को यदि विकसित होना हो, तो
वह ऊर्जा का आधान करता है,
ना की ऊर्जा पदार्थ का.
ठीक इसी प्रकार ... जब एक स्त्री
एक पुरुष का आधान करती है, तो
शक्ति स्वरूप हो जाती है, और
आने वाली पीढ़ियों अर्थात्
अपनी संतानों के लिए
प्रथम पूज्या हो जाती है,
क्योंकि
वह पदार्थ और ऊर्जा
दोनों की स्वामिनी होती है,
जबकि पुरुष
मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है.
मैंने पुनः कहा
तब तो तुम मेरी भी
पूज्य हो गई न, क्योंकि
तुम तो ऊर्जा और पदार्थ
दोनों की स्वामिनी हो ?
अब उसने झेंपते हुए कहा आप भी
पढ़े लिखे मूर्खो जैसे बात करते हैं.
आपकी ऊर्जा का अंश
मैंने ग्रहण किया, और
शक्तिशाली हो गई, तो क्या
उस शक्ति का प्रयोग
आप पर ही करूँ ?
ये तो कृतघ्नता हो जाएगी.
मैंने कहा ् मैं तो तुम पर
शक्ति का प्रयोग करता हूँ ,
फिर तुम क्यों नहीं ?
उसका उत्तर सुन ...
मेरी आँखों में आँसू आ गए.
उसने कहा जिसके संसर्ग मात्र से
मुझमें जीवन उत्पन्न करने की
क्षमता आ गई, और
ईश्वर से भी ऊँचा जो पद
आपने मुझे प्रदान किया,
★ जिसे माता कहते हैं ★
उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती.
फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा
यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा,
तो मुझे क्या आवश्यकता ?
मैं तो माता सीता की भाँति
लव कुश तैयार कर दूँगी,
जो आपसे मेरा
हिसाब किताब कर लेंगे.
नमन है ... सभी मातृ शक्तियों को
जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में
समस्त सृष्टि को बाँध रखा है.
नोट : यह पोस्ट मुझे कहीं से मिली, विज्ञान और अध्यात्म का अनोखा संगम, कृपया ध्यान से पढ़े़ं , सृष्टि की रचना का अद्भुत व्याख्यान
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