आपकी कलम

टिप्पणी : हमें कई लोग ऐसे मिलेंगे, जो निंदा की हो सकती है या प्रशंसा की : पं. विजयशंकर मेहता

Paliwalwani
टिप्पणी : हमें कई लोग ऐसे मिलेंगे, जो निंदा की हो सकती है या प्रशंसा की : पं. विजयशंकर मेहता
टिप्पणी : हमें कई लोग ऐसे मिलेंगे, जो निंदा की हो सकती है या प्रशंसा की : पं. विजयशंकर मेहता

सार्वजनिक जीवन में हमें कई लोग ऐसे मिलेंगे जो कोई न कोई टिप्पणी हमारे ऊपर करेंगे। वो निंदा की हो सकती है या प्रशंसा की, लेकिन उस टिप्पणी को सुनकर अपने अतीत में कभी मत चले जाइए। हम मनुष्यों की आदत होती है खो जाते हैं बीते वक्त में, जब कोई दूसरा हमसे कुछ कहता है। पहला प्रयास यह करें कि उस टिप्पणी को वर्तमान में ही लें।

वर्तमान में लेने का अर्थ है भूल जाएं और अपने लक्ष्य पर जुटे रहें। फिर भी अगर इच्छा हो तो थोड़ा-बहुत भविष्य में झांक लें, लेकिन अतीत का सहारा बिलकुल न लें, क्योंकि टिप्पणी सुनकर अतीत में गए कि तनाव आया। तनाव लंबे समय टिका तो लिम्फोसाइट यानी डब्ल्यूबीसी की मात्रा कम हो जाएगी। ये सेल्स हमें मदद करती हैं किसी भी बाहरी आक्रमण से।

चिकित्सा विज्ञान का यह सिद्धांत मनोविज्ञान पर भी लागू होता है। खुद को भीतर से कमजोर न करें। जब भी बाहरी संवाद सुनें, वर्तमान में उसको जी लें और संवादों को विदा कर दें। प्रशंसा में बहुत रस आ रहा है तो प्रोत्साहन में बदल दें, लेकिन निंदा को कपड़ों पर जमी धूल की तरह झड़क दें।

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