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जब भक्त को न्याय दिलाने के लिए कोर्ट पहुंचे भगवान....जाने मथुरा के इस मंदिर की दिलचस्प कहानी...

उत्तर प्रदेश Published by: PALIWALWANI Updated Mon, 28 Apr 2025 11:44 AM
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Mathura Pagal Baba Temple: पागल बाबा मंदिर मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर स्थित है. 1965 में इसकी नींव रखी गई और 1981 में प्राण प्रतिष्ठा हुई. बाबा को चाय और सिगरेट का भोग लगता है. 1980 में बाबा ने जिंदा समाधि ली थी. इस मंदिर से जुड़ी हुई एक रोचक कहानी है. जिसमें भगवान कृष्ण अपने भक्त को न्याय दिलाने के लिए अदालत में पहुंचे.

पागल बाबा मंदिर मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर स्थित है. इसके बारे में एक कथा प्रचलित है. इसके अनुसार एक गरीब कृष्ण भक्त ब्राह्मण दिनभर ठाकुरजी का नाम जपता रहता था.

उसके पास जो कुछ भी था या यूं कहें कि जितना भी रूखा-सूखा उसे मांगकर खाने को मिलता, वह उसे भगवान की मर्जी समझकर खुशी-खुशी ग्रहण करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा था. एक बार वह किसी साहूकार से पैसे लेने के लिए गया.

साहूकार ने उससे पैसे जल्द ही लौटाने का वादा लिया. ब्राह्मण हर महीने नियम से किस्त का हिसाब करके साहूकार के पैसे लौटाने जाता था. आखिरी किस्त के थोड़े दिन पहले ही साहूकार ने वसूली का एक पत्र उसके घर भिजवा दिया. यह देखकर ब्राह्मण परेशान हुआ और साहूकार से विनती करने लगा लेकिन वह नहीं माना.

मामला अदालत में पहुंचा. ब्राह्मण ने जज लीलानंद ठाकुर से अनुरोध करते हुए कहा कि एक किस्त के अलावा उसने साहूकार का सारा कर्ज अदा कर दिया है. यह साहूकार झूठ बोल रहा है.

यह सुनकर साहूकार ने क्रोधित होकर दलील दी कि उसने कोई गलत व्यवहार नहीं किया है. जिस किसी के भी सामने आरोपी ने धन लौटाया हो, उसे अदालत में पेश किया जाए. इतना सुनकर ब्राह्मण सोच में डूब गया. क्योंकि उसका कोई भी गवाह नहीं था. माना जाता है कि उनकी गवाही देने अचानक बूढ़े आदमी के भेष में भगवान श्री कृष्ण पहुंचे. जिन्होंने सबकुछ जज के सामने बता दिया. जिससे वह ब्राह्मण बरी हो गए. इस घटना के बाद जज भी हैरान रह गए.

पुजारी ने बताया कि यहां श्रीमद् लीलानंद ठाकुर यानी पागल बाबा को नित सुबह, दोपहर और शाम भोग लगाया है. भोग में दाल, चावल, रोटी, मिष्ठान तो होते ही हैं, साथ ही चाय और सिगरेट का भोग भी लगाया जाता है.

इसका कारण है कि बाबा चाय और सिगरेट के बेहद शौकीन थे. वे दिन में कई बार चाय और सिगरेट लिया करते थे. जिस दिन से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई है, तब से आज तक यहां बाबा को चाय और सिगरेट का भोग जरूर लगता है. बाद में इस चाय के प्रसाद को भक्तों के बीच बांट दिया जाता है.

मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर की नींव 1965 में रखी गई थी. पागल बाबा ने इस मंदिर की नींव को खुद ही रखा था. 24 जुलाई 1980 को पागल बाबा ने जिंदा समाधि ले ली थी. इसके बाद 1981 में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई। पागल बाबा मंदिर की लंबाई 150 फीट है, चौड़ाई 120 फ़ीट और ऊंचाई 221 फीट है.

 

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