असम के नागांव जिले में बोर्दोवा थान प्रसिद्ध वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव का जन्मस्थान है. पूर्वोत्तर में काफी असर रखने वाले संत शंकरदेव की स्मृति में यहां सत्र मंदिर बनाया गया है. मध्यकाल के संत और महान समाजसुधारक श्रीमंत शंकरदेव के इस सत्र मंदिर का असम में काफी राजनीतिक रसूख भी माना जाता है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता यहां आशीर्वाद लेने पहुंचना नहीं भूलते.
असमिया भाषा के काफी प्रसिद्ध कवि, नाटककार, गायक, नर्तक, समाज का संगठन करने वाले संत श्रीमंत शंकरदेव हिंदू समाज सुधारक भी थे. उन्होने नववैष्णव या एकशरण पंथ का प्रचार करके असमिया जीवन को व्यवस्थित और वहां के लोगों को आपस में जोड़ने का बड़ा काम किया था. असम के गागांव जिले में अलिपुखरी गांव में 26 सितंबर, 1449 को जन्मे शंकरदेव ने वैष्णव पंथ में ही एक शरण मत की शुरुआत की. इसमें मूर्तिपूजा की प्रधानता नहीं है.
धार्मिक त्योहारों के समय केवल एक पवित्र ग्रंथ को चौकी पर रख दिया जाता है. इसे ही नैवेद्य और भक्ति निवेदित की जाती है. इस मत में दीक्षा की व्यवस्था नहीं है. 24 अगस्त 1568 (मंगलवार) को पश्चिम बंगाल के कूच बिहार में भेलदोंगा जगह पर उन्होंने आखिरी सांस ली थी. उन्होंने हिंदुओं की जातीय एकता पर काफी जोर दिया था. पूरे असम में और आसपास के राज्यों के कई इलाकों में श्रीमंत शंकरदेव के भक्तों और अनुयायियों की बड़ी आबादी है.