धर्मशास्त्र

श्री कृष्ण कहते हैं जब मेरी सेवा में आओ तो मनुष्य को सेवाभाव ही रखना चाहिए

Paliwalwani
श्री कृष्ण कहते हैं जब मेरी सेवा में आओ तो मनुष्य को सेवाभाव ही रखना चाहिए
श्री कृष्ण कहते हैं जब मेरी सेवा में आओ तो मनुष्य को सेवाभाव ही रखना चाहिए

!! श्री कृष्ण कहते हैं जब मेरी सेवा में आओ तो मनुष्य को सेवाभाव ही रखना चाहिए!!

एक गरीब आदमी था।

वो हर रोज नजदीक के मंदिर में जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वो अपने प्रभू से कहता कि मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए। 

एक दिन ठाकुर जी  ने बाल रूप में प्रगट हो उस आदमी से पूछ ही लिया कि क्या तुम मन्दिर में  केवल इसीलिए, काम करने आते हो।

उस आदमी ने  पूरी ईमानदारी से कहा कि हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूं। पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे।

बाल रूप ठाकुर जी ने कहा कि -- तुम चिंता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा।

युवक चला गया। 

समय ने पलटा खाया, वो अधिक धन कमाने लगा। इतना व्यस्त हो गया कि मन्दिर में जाना ही छूट गया। 

कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही मन्दिर पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा।

ठाकुर जी फिर प्रगट हुए और उस व्यक्ति से  बड़े ही आश्चर्य से पूछा--क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो, सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो। वो व्यक्ति बोला--बहुत धन कमाया। 

अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की, पैसे की कोई कमी नहीं है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था रोज सेवा करने आता रहूं पर आ ना सका।

व्यक्ति बोला,हे प्रभू, आपने मुझे सब कुछ दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया ?

प्रभू जी ने कहा कि तुमने वह मांगा ही कब था? 

जो तुमने मांगा वो तो तुम्हें मिल गया ना।  

फिर आज यहां क्या करने आए हो?

उसकी आंखों में आंसू भर आए, ठाकुर जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला --अब कुछ मांगने के लिए सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शान्ति मिल जाए। ठाकुर जी ने कहा--पहले तय कर लो कि अब कुछ मागने के लिए मन्दिर की सेवा नहीं करोगे, बस मन की शांति के लिए ही आओगे। 

ठाकुर जी ने समझाया कि चाहे मांगने से कुछ भी मिल जाए पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता इसलिए सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है। वो व्यक्ति बड़ा ही उदास होकर  ठाकुर जी को देखता रहा और बोला--मुझे कुछ नहीं चाहिए। 

आप बस, मुझे सेवा करने दीजिए। सच में, मन की शांति सबसे अनमोल है।।और श्री हरि की किरपा जब बरसती है तो वो बरसती ही जाती है।

जब भी मैं बुरे हालातों से घबराती हूँ..!

तब मेरे प्रभु जी कि आवाज़ आती है "रुक .... मैं आता हूँ"..!!

!! हे नाथ..! हे मेरे नाथ...!! मैं आपको भूलूँ नहीं...!!

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