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US Embassy ने ट्रंप के दावे का किया खंडन : ट्रंप का दावा और विवाद की जड़
paliwalwani
अमेरिका.
अमेरिकी दूतावास (American Embassy) ने अपने ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (President Donald Trump) के उस दावे का सख्ती से खंडन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में मतदाता भागीदारी बढ़ाने के लिए अमेरिकी सहायता एजेंसी (American aid agency- USAID) ने 21 मिलियन डॉलर (लगभग 175 करोड़ रुपये) का फंड आवंटित किया था।
दिल्ली में अमेरिकी दूतावास ने भारत (India) के विदेश मंत्रालय को स्पष्ट किया कि वित्तीय वर्ष 2014 से 2024 तक USAID/India ने भारत में मतदाता भागीदारी से संबंधित कोई फंडिंग प्राप्त नहीं की और न ही ऐसी किसी गतिविधि को लागू किया गया। यह बयान ट्रंप के दावे के ठीक विपरीत है, जिसने भारत में राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी।
इस साल की शुरुआत में डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि भारत सरकार ने USAID के फंड का उपयोग मतदाता भागीदारी से संबंधित गतिविधियों के लिए किया। ट्रंप ने फरवरी में मियामी में एक समिट में कहा था, “भारत में मतदाता भागीदारी के लिए 21 मिलियन डॉलर क्यों खर्च करने की जरूरत है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे।” उनके इस बयान ने भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विपक्षी कांग्रेस पार्टी के बीच तीखी बहस को जन्म दिया।
भारतीय संसद में 2 जुलाई को पेश दस्तावेजों में ट्रंप के दावों पर बड़ा खुलासा हुआ। दस्तावेजों के मुताबिक, अमेरिकी दूतावास ने 2014 से 2024 तक भारत में यूएसएआईडी फंडिंग को कवर करने वाले डेटा को शेयर किया है, जिसमें कार्यान्वयन भागीदारों, उद्देश्यों और प्रत्येक गतिविधि की प्रमुख उपलब्धियों का विवरण शामिल है। दूतावास ने भारत के विदेश मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग को सूचित किया कि USAID/India ने 2014 से 2024 तक मतदाता भागीदारी के लिए कोई फंडिंग न तो प्राप्त की और न ही प्रदान की। दूतावास ने यह भी बताया कि 15 अगस्त 2025 से भारत में USAID के सभी संचालन को आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया है।
दूतावास ने साफ कहा कि, “यूएसएआईडी/इंडिया ने 2014 से 2024 के बीच भारत में मतदाता टर्नआउट के लिए न तो 21 मिलियन डॉलर की कोई राशि प्राप्त की और न ही इस संबंध में कोई गतिविधि चलाई है।” इसके अलावा, दूतावास ने 2022, 2023 और 2024 के लिए USAID के फंड आवंटन का लाभार्थी-वार विवरण भी उपलब्ध कराया, जैसा कि भारत सरकार ने मांगा था।
ट्रंप ने इस साल की शुरुआत में कई मौकों पर आरोप लगाया कि बाइडन प्रशासन ने यूएसएआईडी के जरिए भारत में मतदाता टर्नआउट बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर आवंटित किए। उनका कहना था कि यह धन चुनावों को प्रभावित करने की मंशा से दिया गया। यह विवाद तब शुरू हुआ जब 16 फरवरी को एलन मस्क के नेतृत्व वाले डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (DOGE) ने एक सूची जारी की। इस सूची में 723 मिलियन डॉलर की विदेशी सहायता योजनाओं को रद्द करने का उल्लेख था, जिसमें भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर की मदद भी दिखाई गई थी।
इसी सूची का हवाला देते हुए ट्रंप ने रिपब्लिकन गवर्नर्स एसोसिएशन की बैठक और गवर्नर्स वर्किंग सेशन समेत कई कार्यक्रमों में कहा कि, “जब अमेरिका में ही मतदाता टर्नआउट की समस्या है, तो भारत जैसे देश में अमेरिकी टैक्सपेयर्स के पैसे से वोटर टर्नआउट क्यों बढ़ाया जा रहा है? यह तो एक तरह की ‘किकबैक स्कीम’ है।”
ट्रंप के दावे ने भारत में सत्तारूढ़ BJP और विपक्षी कांग्रेस के बीच तीखी राजनीतिक बहस को जन्म दिया। BJP ने दावा किया कि यह फंड भारत के चुनावी प्रक्रिया में “बाहरी हस्तक्षेप” का सबूत है और इसके पीछे कांग्रेस की मिलीभगत हो सकती है। वहीं, कांग्रेस ने इन आरोपों को “निराधार” करार देते हुए BJP पर पलटवार किया।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के दावों को “बेहद परेशान करने वाला” करार दिया और कहा कि संबंधित विभाग और एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमने अमेरिकी प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी देखी है।
यह स्पष्ट रूप से बहुत परेशान करने वाली है। यह भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की चिंता को बढ़ाता है।” अब अमेरिकी दूतावास के स्पष्ट खंडन के बाद यह साफ हो गया है कि भारत में मतदाता टर्नआउट के लिए किसी प्रकार का अमेरिकी फंड नहीं दिया गया था।