दिल्ली
महंगा कच्चा तेल बढ़ाएगा भारत की मुसीबत : 100 डॉलर प्रति बैरल के पार
Paliwalwaniनई दिल्ली : कच्चे तेल (Crude Oil) के दामों में फिर से तेजी देखी जा रही है. बुधवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जा पहुंचा है. ब्रेंट क्रूड ऑयल प्राइस 101 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा है. 2 अगस्त, 2022 के बाद से कच्चे तेल के दाम अपने उच्चतम स्तर पर ट्रेड कर रहा है. दरअसल ईरान द्वारा कच्चे तेल के सप्लाई शुरू किए जाने की संभावना के बाद सउदी अरब ने ओपेक प्लस देशों द्वारा उत्पादन में कटौती की वकालत की है जिसके बाद कच्चे तेल के दामों में तेजी आई है.
दरअसल माना जा रहा है कि ईरान द्वारा कच्चे तेल की सप्लाई फिर से शुरू की जा सकती है. इस पर सउदी अरब के एनर्जी मंत्री ने ओपेक+ देशों द्वारा प्रोडक्शन में कटौती की बात कही है. तो दूसरी तरफ विकसित देशों में मंदी की आशंका भी गहरा गई है जिसके बाद कच्चे तेल के दामों में तेजी आई है.
कच्चे तेल के दामों में आई ये तेजी भारत की दिक्कतों को बढ़ा सकता है. हाल ही में कच्चे तेल के दामों में गिरावट के बाद सरकारी तेल कंपनियों को पेट्रोल बेचने पर हो रहा नुकसान खत्म हो गया था तो डीजल बेचने पर नुकसान घटकर 4 से 5 रुपये प्रति लीटर रह गया था. लेकिन कच्चे तेल के दामों में आए इस उछाल के बाद सरकारी तेल कंपनियों का नुकसान बढ़ने की आशंका है. सरकारी तेल कंपनियों को हो रहे नुकसान के बावजूद सरकारी तेल कंपनियां इसका भार आम लोगों पर नहीं डाल पा रही हैं. इसका नतीजा ये हुआ कि 2022-23 के अप्रैल से जून तिमाही के दौरान तीनों सरकारी तेल कंपनियों को 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा है.
हाल ही में जब जब मूडीज एनालटिक्स (Moody's Analytics) और सिटीग्रुप (Citigroup) ने कहा है कि कच्चे तेल के दामों में बड़ी गिरावट आ सकती है. तो इससे बड़ी राहत मिली थी. डीज के मुताबिक 2024 के अंत तक कच्चे तेल के दाम 70 बैरल प्रति बैरल तक नीचे आ सकता है. सिटीग्रुप (Citigroup) ने कहा था कि के मुताबिक 2022 के आखिर तक कच्चे तेल के दाम ( Crude Oil Price) फिसलकर 65 डॉलर प्रति बैरल तक गिर सकता है. माना जा रहा था कच्चे तेल के दामों में कमी आई तो इससे महंगाई से राहत मिलेगी. लेकिन कच्चे तेल के दामों ने फिर से यूटर्न ले लिया है इससे भारत की मुसीहत बढ़ने वाली है. भारत अपने खपत का 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. उसे अपने विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के आयात पर खर्च करना होता है.