आपकी कलम
विज्ञान हमारा स्वाभिमान, देश के वैज्ञानिकों को ख़ुलासा फर्स्ट का प्रणाम : दुनियाभर से बजा भारत का डंका
नितिनमोहन शर्मा-
पूर्णचंद्र विजय...
दुनियाभर से बजा भारत का डंका, भारतवासियों का मस्तक हुआ ऊँचा
देशभर में पसरा उत्सव, राजबाड़ा बना देश की वैज्ञानिक उपलब्धि का जीवंत गवाह
घर-आँगन से लेकर गली मोहल्लों और बाजारों में भी मना चांद पर तिरंगे का उत्सव
नितिनमोहन शर्मा
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बुधवार की गोधूलि बेला, भारत के भाग्य का उदय लेकर आई। ये बेला हिंदुस्तान के भाल पर विजयी तिलक दमका गई। ये गोधूलि बेला, काल के कपाल पर एक अमिट हस्ताक्षर अंकित कर गई। माँ भारती के ललाट पर विजयी त्रिपुंड खींच गई। समूची दुनिया मे हिंदुस्तान का मस्तक गर्व से ऊँचा कर गई। इस आर्यावृत की विज्ञान से जुड़ी मेघा ने अखिल ब्रह्मांड को चमत्कृत कर दिया। अपने कदम अंतरिक्ष के उस हिस्से में जाकर रख दिये, जहाँ आजतक कोई देश पहुच नही पाया। चांद पर यू तो कई देश पहुँचे लेकिन पूर्ण चंद्र विजय हमारे हिस्से के आई।
जैसे पूर्णिमा का चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त पूर्ण माना जाता है, ठीक वैसे ही ये पूर्णचन्द्र विजय भारत की रही। हमारा विज्ञान चंद्रमा के उस हिस्से में पहुँचा जहां तक दुनिया का कोई भी अंतरिक्ष अभियान नही पहुँचा। भारत के वैज्ञानिकों ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना दुनिया के विकसित राष्ट्रों ने भी नही की थी। पूरा देश झूम उठा। नतमस्तक हो गया अपने वैज्ञानिकों के समक्ष। उनकी इस उपलब्धि के सामने।
140 करोड़ देशवासियों का मस्तक ऊंचा हो गया। फख्र से सीना चौड़ा हो गया। एक तिरंगा चांद पर लहराते ही, करोड़ो तिरंगे जमीन पर फहराने लगे। सब दिशाओं में माँ भारती की जयजयकार गूंज उठी। वंदेमातरम का जयघोष गुंजायमान हो गया। विज्ञान की इस उपलब्धि पर गदगद देश के पंत प्रधान ने इस पल को विकसित भारत का शंखनाद और नए भारत का जयघोष बताते हुए वैज्ञानिकों को बधाई दी। ख़ुलासा फर्स्ट देश के वैज्ञानिकों को प्रणाम करता हैं। नमन करता हैं। क्योंकि विज्ञान हमारा स्वाभिमान हैं।
बरसो बरस बाद ऐसा अवसर आया जब समूचा देश समवेत स्वर में चंद्रयान मिशन को लेकर प्रार्थनारत था। मंदिर में पूजन अर्चन से लेकर मस्जिदों में भी दुआओं के लिए हाथ उठे हुए थे। घर आँगन से लेकर गली मोहल्लों में ही नही, बाजारों में भी माहौल बना हुआ था। स्कूल कालेज, निजी संस्थानों से लेकर राह चलते भी लोग उस वक्त थम गये, जब घड़ी ने 6 बजाए। जनसामान्य तो टीवी स्क्रीन पर बस टकटकी लगाए हुए था। उसे अंतरिक्ष मामले में इतनी कोई जानकारी तो नही, बस इतना पता था कि बस भारत के कदम चंद्रमा पर पड़ने ही वाले है। जैसे ही स्क्रीन पर इसरो से जुड़ी टीम ने जयघोष किया, उत्सव शुरू हो गया। ऐसा जश्न, जैसा भारत के क्रिकेट के वर्ल्ड कप जीतने पर होता हैं। शहर का राजबाड़ा चौक तो देश की इस वैज्ञानिक उपलब्धि का जीवंत गवाह बना ही, शहर का ऐसा कोई हिस्सा नही रहा जहा वैज्ञानिकों की इस जीत का उत्सव नही मना।
अमृत महोत्सव में अमृत वर्षा- भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि हमारे वैज्ञानिक कठोर परिश्रम से यह जो धन्यता का क्षण हमारे लिए खींच कर लाए हैं, उसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं और सारे वैज्ञानिकों का, उनको प्रोत्साहन देने वाले शासन-प्रशासन, सबका धन्यवाद, अभिनंदन करते हैं। भारत उठेगा और सारी दुनिया के लिए उठेगा। भारत विश्व को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की प्रगति की राह पर अग्रसर करेगा।
ज्ञान के, विज्ञान के भी क्षेत्र में हम बढ़ चलेंगे। नील नभ के रूप के नव अर्थ भी हम कर सकेंगे। भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देंगे। दास्य के घन बादलों से सौख्य की वर्षा करेंगे। सारे देश का आत्मविश्वास जग गया है। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में यह एक वास्तविक अमृत वर्षा करने वाला क्षण हम सब लोगों ने अपनी आंखों से देखा है, इसलिए हम धन्य हैं। आगे बढ़ने के लिए आवश्यक सामर्थ्य, आवश्यक कला कौशल, आवश्यक दृष्टि, यह सब कुछ हमारे पास है। यह आज के प्रसंग ने सिद्ध कर दिया है। भारत माता की जय।