आपकी कलम

माँ... करोगी क्या मुझे पढ़ा कर : नलिनी पुरोहित

Paliwalwani
माँ... करोगी क्या मुझे पढ़ा कर : नलिनी पुरोहित
माँ... करोगी क्या मुझे पढ़ा कर : नलिनी पुरोहित

माँ...

करोगी क्या मुझे पढ़ा कर

करुणा मुझे सिखा कर समझा कर,

माँ...

क्योंकि तेरे मन में भी तपता है रेगिस्तान और

लप-लपाती लू को भी

सहा है तूने, फिर भी रेत में

धंसे है तेरे पांव, 

 माँ...

ये सतयुग नहीं और न ही

सीता, मीरा और अहिल्या सी नारियां,

 आज वे होतीं तो भी नहीं जा सकती

 अकेले वन में, 

रावण बसे हैं

सभी के मन में.

और न ही  इस युग में मीरा सी भाव-भक्ति, 

आज कौन कन्या कान्हा को अपना पति मान सकती है,

 और हां, ना ही अहिल्या बन अपने पुत्र को  अपने ही हाथों से

मृत्यु दंड दे सकती है.

आजकल तो मां,

पुत्र स्वयं लजा देते हैं मां का दूध...? 

तो कहो माँ करोगी क्या...

मुझे पढ़ा कर करूणा मुझे समझा कर.

  • नलिनी पुरोहित-जोधपुर
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