आपकी कलम
क्या आप खुद संतुष्ट हैं... खुद से : युवाओं की आत्महत्या दर बढ़ रही है...!
निर्मल सिरोहिया- निर्मल सिरोहिया
देश में मंहगाई अनियंत्रित है। बेरोजगारी कायम है और अपराध निरकुंश हो रहे हैं। इस बीच युवाओं की आत्महत्या दर बढ़ रही है और नाबालिग लापता होने के आंकड़े चौंका रहे हैं। इन सब की तह में जाकर खोजबीन करने की बजाय मेरे कथित पत्रकार साथी यूपी के गुंडे अतीक को सही सलामत नैनी जेल तक पहुंचाने में लगे थे। वे पत्रकारिता का कौन सा धर्म निभा रहे थे, मुझे समझ नहीं आता।
क्योंकि मुझे जिन मूर्धन्य पत्रकारों ने कलम से शब्दों को गढ़ना सिखाया, उसमें ऐसी किसी पत्रकारिता का जिक्र तक नहीं था। हां, ख़बरों के तथ्य तलाशना, उसकी पड़ताल करना और ख़बरों के समाज पर प्रभाव की सीख जरूर मिली। दरअसल, प्रबंधन का छात्र होने के बावजूद जब एक कलमकार बनने की ठानी थी, तो मकसद साफ था कि सामाजिक दायित्वों को निभाने के प्रयास करना हैं। वह विपरीत परिस्थितियों में आज भी निभाने की कोशिश, मैं और मेरे जैसे कई ख़ालिस पत्रकार कर रहें हैं।
खैर, सवाल पिछले 30 घंटे से जारी 'अतीक की सुरक्षा' वाली पत्रकारिता को लेकर है। आखिर एक गुंडे को लेकर यह बैचेनी क्यों ? कि उसके पीछे-पीछे अहमदाबाद से प्रयागराज तक गुजरात, राजस्थान, मप्र, उत्तरप्रदेश और दिल्ली के पत्रकारों का पूरा लवाजमा दौड़ लगाता फिर रहा था। कुतर्क यह कि कहीं इस गुंडे का हश्र भी विकास दुबे की तरह न हो जाए...!
तो क्या विकास दुबे जैसे नासूर को समाज में सुरक्षित रखना चाहिए था, जबकि यह तथ्य कई बार साबित हुए हैं कि रसूखदार बदमाश, जेलों से भी अपनी सल्तनत चलाते रहे हैं...! और हां, यदि आपको पत्रकारिता करना ही थी तो यह क्यों नहीं खोजा कि विकास कैसे और किसके संरक्षण में उज्जैन तक पहुंचा था ? नहीं, यह आप नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उन दरबारों में तो आप क्या... आपके संस्थान तक शरणागत हैं...!
साथियों, एक बार चिंतन करिए, पत्रकारिता के पेशे को अपनाते वक्त आपका मकसद क्या था... आप अपनी आने वाली पीढ़ी को कौनसे आदर्श और मापदंड सौंपकर जाएंगे....और क्या आप खुद संतुष्ट हैं... खुद से....!