आपकी कलम

!! एक व्यंग्य रूप कविता !!

paliwalwani...✍️
!! एक व्यंग्य रूप कविता !!
!! एक व्यंग्य रूप कविता !!

आओ बंद को खोले !
सालो से बंद पडे है !!
मजहबी एकता के !
बंद झरोखे ,जिसमे !!
झाँकते थे कभी हम !
आओ बंद को खोले !
सालो से बंद पडे है !!
ईद की सवैया की खुशबू !!
या होली-दिवाली की !
मिठ्ठी मिठ्ठी मठडियों की !!
भिन्नी मन मोहक खुशबू !
आओ फिर से वह बंद !!
झरोखे खोल देते है !
बंद हो गए वो चौपाले !!
पीपल या बरगद के नीचे !
बैठ, करते थे लम्बी बाते !!
चाचा, ताऊ और दादा की !
मूँछो पर ताव चढाते !!
हँसी ठिठोली, संग संग मनाते !
उत्सव, तीज त्यौहार !!
आओ बंद को खोले !
सालो से बंद पडे है !!
बंद हो गई वो पनघट की !
पतली डगर, मिट गए वो !!
निशान, वो पगतल जो !
जाते थे पनघट की ओर !!
गाँव की सखियाँ, धुल का !
गुब्बार उडाती, सर पर !!
पानी की गगर, पतली कमर !
आओ बंद को खोले !
सालो से बंद पडे है !!
हँसती, गीत गाती, न जाने !!
कहाँ चली गई वो डगर !
बंद ने बंद करादी, और खडी !!
कर दी, जाति, धर्म की ऐसी !
दीवार, नफरतो की ईटो से !!
बन रही यह दीवार !
आओ हम बंद खोले !!
फिर से हम जी भर कर बोले !

हेमलता पालीवाल ‘‘ हेमा ’’
उदयपुर, राजस्थान

पालीवाल वाणी समाचार पत्र ब्यूरो...✍️
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