जब दुनिया आपको दोषी ठहराने लगे... जब आपके अपने ही आपको समझने की कोशिश ना करें... ऐसी स्थिति में आपको केवल आंतरिक मजबूती ही रास्ता दिखा सकती है। केवल आपकी आंतरिक मजबूती ही आपको खुश रहने का अवसर दे सकती है। जब हालात आपके लिए प्रतिकूल हो जाते हैं, तब आपको सहनशक्ति, साहस और आगे बढ़ने के लिए हौसला चाहिए होता है। गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा था “संतुलन ही तुम्हारे योग का असल इम्तिहान है”।
महात्मा गांधी से संबंधित एक घटना का जिक्र यहां किया जा सकता है, जब गांधी जी की जीवनसंगिनी कस्तूरबा गांधी मृत्युशैया पर थीं। सभी डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी, उनका कहना था ‘इनके जीवन के बस कुछ पल या कुछ मिनट और...”
तब गांधीजी अपनी कुटिया से बाहर आए और पंडित सुधाकर चतुर्वेदी जी से बोले “मेरे लिए गीता की यह पंक्तियां पढ़ो...” जब उन्होंने यह पंक्तियां पढ़ी तब बापू बोलें, “आज तुम्हारे बापू का इम्तिहान है, आज मेरा इम्तिहान है, आज मै जान जाऊंगा कि क्या मैं कस्तूरबा के जाने का गम सह पाऊंगा या नहीं...”
जब वो ये बात बोल रह थे तब उनकी आंखों से आंसू साफ झलक रहे थे... “आज इम्तिहान का दिन है, मैं स्थित प्रज्ञ हूं या नहीं”।योग हमारे जीवन में एक ऐसा संतुलन लाता है जिससे बड़ी से बड़ी घटना हमें तोड़ नहीं पाती।बस यह अनुभव करें कि आपका मस्तिष्क किस ओर जा रहा है.... कैसे यह हमारे चारों तरफ अव्यवस्था का निर्माण करता है।
एक क्षण हमारे लिए सुखद होता है.. अगला ही क्षण हमें कोई दुख मिल जाता है। योग, इन्हीं मानोवैज्ञानिक समस्याओं का उत्तर है। योग वो संतुलन है जो हमें भीतरी तौर पर जोड़ता है, यह हमरी चेतना को स्थिरता प्रदान करता है।