Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj: प्रेमानंद श्रीनाथ गोविंद शरण महाराज विभिन्न विषयों में अपने प्रवचनों के कारण काफी लोकप्रिय है। उन्हें आम आदमी से लेकर अनुष्मा शर्मा जैसे सेलिब्रिटी भी अनुसरण करते हैं। प्रेमानंद महाराज सुखी जीवन जीने के उपाय बताते हैं। उनका कहना है कि जीवन में सुख-दुख कर्मों के हिसाब से आते हैं। लेकिन मन के विचारों से सबकुछ बदला जा सकता है। सत्य की राह मुश्किल तो होती है, लेकिन वहीं आपको मोक्ष की ओर ले जाती है। प्रेमानंद महाराज के काफी प्रवचन सोशल मीडिया में वायरल होते हैं। ऐसे ही एक वीडियो में एक व्यक्ति महाराज जी से पूछते हैं कि क्या इंसान के जन्म से पहले ही तय होता है कि वह कब पाप और पुण्य करेगा? इस सवाल का कुछ तरह से प्रेमानंद महाराज ने जवाब दिया…
भजन मार्ग के सोशल मीडिया अकाउंट में मौजूद एक वीडियों में एक व्यक्ति प्रेमानंद जी महाराज से पूछता है कि महाराज जी जब इंसान का जन्म होता है उसी समय तय हो जाता है कि कब यह व्यक्ति अच्छे कर्म करेगा और कब बुरे। इस सवाल का जवाब देते हुए प्रेमानंद महाराज जी ने कहा कि नहीं गलत… तुम्हारा गलत चिंतन है। मनुष्य जब जन्म लेता है उसके पहले दो कर्मों से उसके शरीर की रचना होती है पाप कर्म और पुण्य कर्म से। कई बार एकांतिक में बताया है केवल पाप कर्म से यातना देह मिलता है, जो नरक में मिलता है नरक लोक में केवल पुण्य कर्म से देव शरीर मिलता है जो स्वर्ग लोक में है। लेकिन जब पाप और पुण्य दोनों मिले होते हैं, तब मनुष्य लोक में जन्म मिलता है।
मनुष्य को जीवन में समय-समय पर सुख और दुख मिलते हैं, जो पूर्व कर्मों के फल होते हैं। लेकिन यह तय नहीं होता कि वह कब कौन सा कर्म करेगा। पाप और पुण्य कर्म करने की स्वतंत्रता मनुष्य के पास है। प्रारब्ध (पूर्व के कर्मों का फल) हमें प्रेरित नहीं करता कि हम पाप करें, बल्कि हमारी वासना हमें पाप की ओर ले जाती है। हम चाहे उपासना करें या वासना से प्रेरित होकर पाप करें, यह चुनाव हमारे हाथ में होता है।
शरीर के कष्ट, जैसे किसी की जन्मजात बीमारी, पूर्व जन्म के कर्मों का फल हो सकते हैं। जैसे अगर पूर्व जन्म में किसी ने पाप कर्म किए हों, तो यह शरीर उसी के अनुरूप बना है। जैसे जन्म से ही किडनी में दोष होना।
अतः, कर्म करने की स्वतंत्रता हमारे पास है। सुख-दुख हमारे प्रारब्ध का फल हो सकता है, लेकिन पाप-पुण्य का कर्म हम अभी भी कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, कोई व्यक्ति वर्तमान में पाप कर रहा है लेकिन सुखी है, क्योंकि उसके पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों का फल मिल रहा है। और कोई पुण्यात्मा व्यक्ति दुख भोग रहा है, क्योंकि उसके पूर्व जन्म के पाप कर्मों का फल मिल रहा है।
नाम जप (ईश्वर का स्मरण) से क्या बुरे कर्म टल सकते हैं? हां, बिल्कुल टल सकते हैं। यदि हमारे पाप कर्मों का भार बहुत अधिक है और नाम जप बहुत कम है, तो वह तुरंत असर नहीं दिखाएगा। लेकिन जब नाम जप की मात्रा पाप के भार के बराबर हो जाती है, तब वह उसे नष्ट कर सकता है। चूँकि हमारे अनंत जन्मों के पाप हैं, इसलिए हमें डटकर नाम जप करना चाहिए। जितना अधिक नाम जप करेंगे, उतने ही हमारे पाप क्षीण होंगे और अंदर प्रसन्नता, आनंद, और सुख की वृद्धि होगी।