इंदौर. किसान जिस तरह अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ किस्म के बीज बोता है, हमें भी भक्ति की फसल पाने के लिए केवट और शबरी की तरह सात्विक बुद्धि के बीज बोना पड़ेंगे। कथा बेचने के लिए नहीं, बांटने के लिए होती है। रामकथा वह पुण्य सलिला है, जो हर सूखाग्रस्त मन को तृप्त कर जीवन की मजबूरियों को मौज में बदलने की ताकत रखती है।
यह कथा नहीं, ऐसी रसधारा है, जो भारत भूमि की सर्वश्रेष्ठ और अनमोल धरोहर है। निष्काम भक्ति में भाव के साथ प्रेम भी जरूरी है। समाज और सत्ता को कुंभकर्णी नींद से जागृत एवं चैतन्य बनाने का काम भी यही रामकथा करती है। गीता भवन सत्संग सभागृह में वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में उनकी सुशिष्या साध्वी कृष्णानंद ने रामकथा के दौरान वनवास प्रसंगों की व्याख्या करते हुए उक्त प्रेरक बातें कहीं।
कथा का आयोजन रामदेव मन्नालाल चेरिटेबल ट्रस्ट, गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट एवं गोयल परिवार की मेजबानी में ब्रह्मलीन मन्नालाल गोयल एवं मातुश्री स्व. श्रीमती चमेलीदेवी गोयल की पावन स्मृति में गत 17 जून से यह दिव्य आयोजन जारी है। शुक्रवार को राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के साथ समाजसेवी प्रेमचंद –कनकलता गोयल एवं विजय-श्रीमती कृष्णा गोयल ने व्यासपीठ का पूजन कर स्वामी भास्करानंद से शुभाशीष प्राप्त किए। उन्होंने आरती में भी भाग लिया। गीता भवन में कथा का यह क्रम 23 जून तक प्रतिदिन सांय 4 से 7 बजे तक चलेगा।
साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि ज्ञान और भक्ति की की सीमा नहीं होती। मन की चंचलता इन दोनों को प्रभावित करती है। भगवान राम राजा और युवराज होते हुए भी 14 वर्ष के वनवास पर अपने माता-पिता की आज्ञा से तुरंत चल दिए। माता-पिता की आज्ञा के पालन से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता। राम के साथ लक्ष्मण और सीता भी जंगल में चले गए, यह भी त्याग का बड़ा उदाहरण है। सीताजी ने जनकपुरी की राजकुमारी होते हुए है।
जंगल में अपने वैभव और राजपाट का कोई प्रदर्शन नहीं किया। इन्हीं सब कारणों से राम और सीता का चरित्र वंदनीय बन गया। आधुनिक समाज में भाइयों की जोड़ी को इसीलिए राम और लक्ष्मण की जोड़ी कहा जाता है। भगवान राम ने वनवासियों के बीच प्रेम और स्नेह बांटने में कहीं भी कोई कंजूसी नहीं की। उन्होंने वनवास में अपनी प्रजा को जो स्नेह और प्यार दिया है, वही राम राज्य की आधारशिला माना जाता है।