नई दिल्ली. उत्तराखंड के एक स्कूली छात्र को जमानत देने से इनकार करने का सुप्रीम फैसला सुर्खियों में है. सर्वोच्च अदालत का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब पूरे देश में पुणे कांड की गूंज है.
पुणे में तेज रफ्तार पोर्शे कार से दो लोगों की कुचलकर जान लेने वाले नाबालिग को जमानत देने पर देशभर में नाराजगी देखने को मिल रही है. इस बीच उत्तराखंड के एक मामले पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को नजीर के तौर देखा जा रहा है. कोर्ट ने गंभीर अपराध के आरोपी बच्चों को कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया है.
दरअसल उत्तराखंड के एक स्कूल में पढ़ने वाले इस नाबालिग छात्र पर 14 साल की क्लासमेट का अश्लील वीडियो सर्कुलेट करने का आरोप है. इस वीडियो से हुई बदनामी की वजह से बच्ची ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी.
उत्तराखंड के स्कूल में हुए इस अश्लील वीडियो कांड में इस साल 10 जनवरी को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड हरिद्वार ने ‘कानून का उल्लंघन करने वाले लड़के’ की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. इस लड़के पर आईपीसी की धारा 305 और 509 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
जुवेनाइल बोर्ड के फैसले को हाईकोर्ट की तरफ से बरकरार रखे जाने के बाद आरोपी लड़के ने अपनी मां के जरिये सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. यहां सीनियर वकील लोक पाल सिंह ने अदालत में दलील दी कि बच्चे के माता-पिता उनकी देखभाल करने के लिए तैयार हैं. उसे बाल सुधार गृह में नहीं रखा जाना चाहिए और उसकी हिरासत उसकी मां को दी जानी चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले की जांच करते हुए लड़के को जमानत देने से इनकार करने के फैसले को सही पाया.
बता दें कि हाई कोर्ट ने भी इस लड़के को जमानत देने से इनकार करते हुए लड़के को ‘गैर अनुशासित बच्चा’ कहा था. यह मामला वैसे तो उत्तराखंड का है, लेकिन पुणे के रईस बिल्डर के बेटे को जमानत दिए जाने की खबर के बाद सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सुर्खियों में है. इस अदालत के इस फैसले से एक नजीर पेश हुई है कि कानून तोड़ने वाले बच्चों को अपराध की गंभीर देखते हुए जमनात नहीं दी जानी चाहिए.