Sawan Somwar 2023: भगवान शिव का सबसे प्रिय मास सावन माह चल रहा है। वहीं आज सावन का पहला सोमवार पड़ रहा है। सावन माह में पड़ने वाले हर एक सोमवार का विशेष महत्व है। इस साल 59 दिन का श्रावण मास होने के कारण पूरे 8 सावन सोमवार पड़ने वाले हैं। आज के दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करने से लेकर व्रत रखने से व्यक्ति को हर तरह के संकटों से छुटकारा मिल जाता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जानिए सावन सोमवार का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि से लेकर हर एक चीज।
सावन के पहले सोमवार पर काफी शुभ योग बन रहा है। आज के दिन रेवती नक्षत्र के साथ सुकर्मा योग भी बन रहा है। इसके साथ ही अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है। सावन के सोमवार के दिन प्रदोष काल में शिवजी की पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है।इसलिए शाम की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 38 मिनट से 7 बजकर 22 मिनट तक है। माना जाता है कि शाम के समय रुद्राभिषेक करने से शिवजी सभी कष्टों को दूर करते हैं।
सावन सोमवार के दिन दिनभर रुद्राभिषेक कर सकते हैं। लेकिन प्रदोष काल में रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है। शाम को 6 बजकर 43 मिनट तक रुद्राभिषेक कर सकते हैं।
सावन के पहले सोमवार के दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करने के साथ शिवलिंग में जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है। आज भगवान शिव का मनन करते हुए व्रत का संकल्प ले सकते हैं। इसके साथ ही शिवलिंग में जल, दूध, शहद, दही, पंचामृत से अभिषेक करें। इसके बाद शिवलिंग में बेलपत्र, आक का फूल, धतूरा, गन्ना, सफेद चंदन, अक्षत आदि चढ़ा दें। इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाकर शिव चालीसा, शिव मंत्र का जाप कर लें। अंत में विधिवत आरती कर लें।
वेद-शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव को बेलपत्र अति प्रिय है। उन्हें बेलपत्र चढ़ाने से वह जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने से वह व्यक्ति के हर संकट को हर लेते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
भगवान शिव को जल, बेलपत्र के अलावा कुछ चीजें अर्पित करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। सावन के पहले सोमवार के दिन शिवलिंग के गंगाजल, केसर, गन्ने का रस, इत्र, दूध, दही, घी, सफेद चंदन, शहद, भांग, भस्म आदि चढ़ाना शुभ साबित हो सकता है।
ऊं नम: शिवाय:।
शंकराय नमः ।
ॐ महादेवाय नमः।
ॐ महेश्वराय नमः।
ॐ श्री रुद्राय नमः।
ॐ नील कंठाय नमः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥