ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में बनने वाले विभिन्न प्रकार के अशुभ योगों में से केमद्रुम योग को बहुत अशुभ या भाग्यहीन माना जाता है। केमद्रुम योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार किसी कुंडली में यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह न हो तो ऐसी कुंडली में केमद्रुम योग बन जाता है जिसके कारण जातक को निर्धनता अथवा अति निर्धनता, विभिन्न प्रकार के रोगों, मुसीबतों, व्यवसायिक तथा वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाईयों आदि का सामना करना पड़ता है।
कुछ किस्सो मे जातक चोर , असत्यवादी , दंभी , प्रपंच कर्ता ओर अभिमानी देखा जाता है। अपने जीवन को कितना भी सुधारे पर हमेसा संघर्षमय स्थिति का सामना करते देखा जाता है। अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि केमद्रुम योग से पीड़ित जातक बहुत दयनीय जीवन व्यतीत करते हैं तथा इनमें से अनेक जातक अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कठिनाईयों तथा असफलतओं का सामना करते हैं तथा इन जातकों के जीवन का कोई एक क्षेत्र तो इस अशुभ योग के प्रभाव के कारण बिल्कुल ही नष्ट हो जाता है जैसे कि इस दोष से पीड़ित कुछ जातकों का जीवन भर विवाह नहीं हो पाता, कुछ जातकों को जीवन भर व्यवसाय ही नहीं मिल पाता तथा कुछ जातक जीवन भर निर्धन ही रहते हैं।
कुछ ज्योतिषी विद्वान यह मानते हैं कि केमद्रुम योग के प्रबल अशुभ प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को राजदंड याने लंबे समय के लिए कारावास अथवा जेल में रहना पड़ सकता है तथा इस योग के प्रबल अशुभ प्रभाव में आने वाले कुछ अन्य जातकों को देश निकाला जैसे दण्ड भी दिये जा सकते हैं। केमद्रुम योग से पीड़ित जातकों का सामाजिक स्तर सदा सामान्य से नीचे अथवा बहुत नीचे रहता है तथा इन्हें जीवन भर समाज में सम्मान तथा प्रतिष्ठा नहीं मिल पाती।
केमद्रुम योग के निर्माण संबंधित नियम का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि केमद्रुम योग बहुत सी कुंडलियों में बन जाता है तथा इसी के अनुसार संसार के बहुत से जातक केमद्रुम योग द्वारा दिये जाने वाले अशुभ फलों तथा मुसीबतों से पीड़ित होने चाहिएं। केमद्रुम योग द्वारा प्रदान किए जाने वाले अशुभ फल बहुत चरम हैं तथा इसी कारण इस योग का निर्माण बहुत कम कुंडलियों में ही होना चाहिए क्योंकि संसार के बहुत से जातक इस प्रकार के चरम अशुभ फलों से पीड़ित नहीं पाये जाते। इस लिए इस अशुभ योग के किसी कुंडली में बनने के लिए कुछ अन्य नियम भी आवश्यक हैं।
कुछ यह मानते हैं किसी कुंडली में केमद्रुम योग के निर्माण के लिए कुंडली में चन्द्रमा के साथ कोई ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए तथा कुंडली के केन्द्र के घरों अर्थात 1, 4, 7 तथा 10वें घर में भी राहु अथवा केतु के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह नहीं होना चाहिए तथा चन्द्रमा का कुंडली में राहु अथवा केतु के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रह के साथ दृष्टि के माध्यम से भी संबंध नहीं होना चाहिए। हालांकि उपर बताए गए अतिरिक्त नियम अपने आप में ही केमद्रुम योग को दुर्लभ बनाने के लिए पर्याप्त हैं किन्तु मेरे शोध तथा अनुभव के अनुसार इन नियमों के अतिरिक्त भी कुछ तथ्यों पर विचार करना चाहिए। इन तथ्यों के बारे में जानने से पहले आइए हम केमद्रुम योग के निर्माण के पीछे छिपे तर्क को जानने का प्रयास करें।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में चन्द्रमा को सबसे अधिक महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है जिसका निश्चय इन तथ्यों से किया जा सकता है कि आज भी बहुत से वैदिक ज्योतिषी चन्द्रमा की स्थिति वाले घर को ही कुंडली में लग्न मानते हैं, चन्द्र राशि को ही जातक की जन्म राशि कहा जाता है, चन्द्र नक्षत्र को ही जातक का जन्म नक्षत्र कहा जाता है, विंशोत्तरी जैसी महादशाओं की गणना भी चन्द्रमा के आधार पर ही की जाती है तथा विवाह कार्यों के लिए कुंडली मिलान में प्रयोग होने वाली गुण मिलान की प्रक्रिया भी केवल चन्दमा की स्थिति के आधार पर ही की जाती है जिससे यह सपष्ट हो जाता है कि वैदिक ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा ही प्रत्येक कुंडली में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह हैं।
किसी भी जातक की कुंडली में जब चन्द्रमा जैसा सबसे अधिक महत्वपूर्ण ग्रह किसी भी प्रकार के प्रभाव से रहित होकर अकेला पड़ जाता है तथा कुंडली के सबसे अधिक महत्वपूर्ण माने जाने वाले केन्द्र के घरों में भी कोई ग्रह स्थित न होने के कारण अकेलेपन की स्थिति ही बनती हो तो इसका अर्थ यह निकलता है कि ऐसी कुंडली में किसी भी प्रकार के महत्वपूर्ण तथा शुभ फलदायी परिणामों को जन्म देने की क्षमता बहुत कम है| जिसके चलते जातक अपने जीवन में कुछ भी विशेष नहीं कर पाता। इस प्रकार कुंडली के सबसे महत्वपूर्ण ग्रह तथा कुंडली के सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र के घरों के प्रभावहीन होने से कुंडली में केमद्रुम योग बन जाता है जिसके प्रभाव में आने वाला जातक कुछ विशेष उपलब्धियां प्राप्त नहीं कर पाता।
ऐसे बहुत से जातकों की कुंडलियां देखीं हैं जिनमे केवल प्रचलित परिभाषा के अनुसार ही केमद्रुम योग बनता था तथा इनमें से अधिकतर जातक इस दोष के अशुभ फलों से रहित थे जबकि जिन जातकों की कुंडली में केमद्रुम योग के लिए निश्चित किये गए अतिरिक्त नियम भी पूरे हो रहे थे, इनमें से बहुत से जातक गंभीर समस्याओं से पीड़ित थे जिससे इस धारणा को बल मिलता है कि कुंडली में केमद्रुम योग के निर्माण के लिए अतिरिक्त नियमों का पूरा होना भी आवश्यक है।
जिन जातकों की जन्म कुंडली में चन्द्रमा के साथ, चन्द्रमा से पहले अथवा पिछले अथवा कुंडली के केन्द्र के घरों में स्थित होने वाले राहु और केतु शुभ होते हैं, उन कुंडलियों में केमद्रुम योग की उपर बताईं गईं सभी शर्तें पूरीं होने के बाद भी केमद्रुम योग या तो बनता ही नहीं अथवा इसके अशुभ फल बहुत कम होते हैं। तर्क की दृष्टि से देखें तो चन्द्रमा अथवा कुंडली के केन्द्रिय घरों पर किसी भी शुभ ग्रह का प्रभाव केमद्रुम योग को समाप्त अथवा बहुत कम कर देगा तथा इसीलिए राहु अथवा केतु के कुंडली में शुभ होकर इन स्थानों पर स्थित होने से भी केमद्रुम योग नहीं बनता। इस प्रकार किसी कुंडली में केमद्रुम योग के बनने का निर्णय लेने से पहले इस योग के निर्माण के साथ जुड़े सभी विषयों पर गंभीरता से विचार कर लेना चाहिए।
यहां पर यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि विभिन्न कुंडलियों में बनने वाला केमद्रुम योग विभिन्न तथ्यों तथा स्थितियों के चलते कम अथवा अधिक अशुभ फल प्रदान करेगा। उदाहरण के लिए चन्द्रमा के वृश्चिक राशि में स्थित होने पर बनने वाला केमद्रुम योग चन्द्रमा के वृष अथवा कर्क राशि में स्थित होने पर बनने वाले केमद्रुम योग से अधिक अशुभ फल देने वाला होगा।
इसी प्रकार चन्द्रमा के किसी कुंडली में 5 वें अथवा 9 वें घर में स्थित होने से बनने वाला केमद्रुम योग चन्द्रमा के किसी कुंडली में 8वें घर में स्थित होने से बनने वाले केमद्रुम योग की तुलना में कम अशुभ होगा। इसके अतिरिक्त कुंडली में बनने वाले अन्य शुभ अशुभ योगों का भी भली भांति निरीक्षण कर लेना चाहिए क्योंकि कुंडली में उपस्थित एक अथवा एक से अधिक शुभ योग केमद्रुम योग के प्रभाव को कम कर सकते हैं जबकि कुंडली में उपस्थित अशुभ योग अथवा दोष केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव को और बढ़ा सकते हैं।
किसी कुंडली में केमद्रुम योग के साथ साथ कालसर्प दोष का भी बन जाना जातक के लिए भीषण विपत्तियों तथा समस्याओं का सूचक होता है। इसलिए केमद्रुम योग के निर्माण तथा फलादेश से पहले इनसे जुड़े सभी तथ्यों का भली भांति निरीक्षण कर लेना चाहिए।
समान्यत : ये योग किसी भी आराधन पूजन से दूर नहीं किया जा सकता। लेकिन अन्य ग्रहो का बल बढ़ाने से ओर लग्नेश - भाग्येश को मजबूत बनाने से परिणाम को अंशतः नियंत्रित ओर सकारात्मक बनाया जा सकता है।
रुद्र पूजन : ग्रहशांति रत्न उपाय , व्रत यज्ञ जेसे शास्त्र वर्णित उपाय प्रस्तुत है। इनमे से कुछ निम्न लिखित है। इस योग के प्रभाव को कम करने के लिए सोमवार की पूर्णिमा अथवा सोमवार को चित्रा नक्षत्र के दौरान लगातार चार वर्ष तक पूर्णमासी का व्रत रखना चाहिए। किसी भी सोमवार से आरंभ कर भगवान शिव के मंदिर जाकर पवित्र शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध चढ़ाने एवं पूजन करने से लाभ होता है। इसके साथ ही भगवान शंकर और माता पार्वती का भी पूजन करें।भगवान शिव की आराधना से इस योग के अशुभ प्रभाव को कम करने में काफी मदद मिलती है।
ज्योतिषाचार्य डॉ: शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा
?जय मां दुर्गा साधना केंद्र ?