तरकाळ गरमी मा कठी,
लेई मुंडो न परो जाऊँ,
कणी ठंडा झरणां रे किनारे,
चारा री झौपड़ी परी वणाऊँ।
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ठंडो टीप पाणी पी-पी न,
एकदम तरपत वेई जाऊँ,
राग मा राग मलाई न म्हूँ,
कोयल रे लारे गुण-गुणाऊँ।
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मरजी वे जतरी दाण म्हूँ,
मळ-मळ न खूब हापड़ूँ,
ऊँची चट्टान पे चढ़ न,
गेरा पाणी मा गठीम्बा भीड़ूँ।
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छायादार रूकड़ा रे नीचे,
चौड़ों वेई न नीन्द काडूँ,
हंगळी चिंता छोड़ न,
जोर-जोर ऊँ खल्डाटा छोड़ूँ।
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डाळ-पाक फळ खाई न,
ओ मोटो पेट परो भरूँ,
सूबे जट वेगो उठ न,
भगवान री भगति परी करूँ।
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मात-भौम री गोद मा,
म्हूँ खूब आनन्द पाऊँ,
कणी माँई रे लाल ने,
म्हारे लारे नी ले जाऊँ।
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जीव मा जीव आईजा,
पाछो सर जीवत वेई जाऊँ,
जटा तक जीव नी भराई जा,
राजन पाछो कदी नी आऊँ।
राजन पाछो कदी नी आऊँ।।
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● राजेन्द्र सनाढ्य राजन
व्याख्याता- रा उ मा वि नमाना
नि-कोठारिया, जि-राजसमंद (राजस्थान) M. 9982980777