रिपोर्ट : रविंद्र आर्य
होली केवल रंगों का पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। भारत और नेपाल दोनों में होली धूमधाम से मनाई जाती है, परंतु नेपाल की होली के कुछ अलग रंग और परंपराएँ हैं।
नेपाल में होली का इतिहास और परंपरा : नेपाल में होली को "फागु पूर्णिमा" के नाम से जाना जाता है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। नेपाल में होली का प्रारंभ काठमांडू दरबार चौक में स्थित ऐतिहासिक होलिका स्तंभ (चित्तरूपी यज्ञदंड) को स्थापित करने से होता है। इसे ही नेपाल में होली उत्सव की आधिकारिक शुरुआत माना जाता है।
नेपाल में होली का उल्लेख प्राचीन काल से मिलता है। नेपाल का राजवंशीय इतिहास कहता है कि इसे वैदिक काल से ही मनाया जाता रहा है। नेपाल में होली का संबंध विशेष रूप से मल्ल वंश और शाह वंश की परंपराओं से जुड़ा हुआ है।
नेपाल में होली भारत से एक दिन पहले इसलिए मनाई जाती है क्योंकि वहाँ का पारंपरिक पंचांग तथा भौगोलिक स्थितियाँ इस अंतर को प्रभावित करती हैं। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में पूर्णिमा का चंद्रदर्शन भारत से कुछ घंटे पहले होता है, जिससे पंचांग के अनुसार नेपाल की पहाड़ी होली एक दिन पहले पड़ती है। इसके अतिरिक्त, नेपाल के तराई क्षेत्रों में यह भारतीय कैलेंडर के अनुसार अगले दिन ही मनाई जाती है।
नेपाल और भारत की होली में समानताएँ भी हैं और भिन्नताएँ भी। दोनों देशों में यह पर्व प्रेम, भाईचारे और सांस्कृतिक एकता का संदेश देता है। नेपाल की होली ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, जिसमें पहाड़ों की ठंडक और तराई की गर्मजोशी, दोनों का अनोखा संगम देखने को मिलता है।
होली भारत के सबसे प्रमुख और रंगीन त्योहारों में से एक है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पौराणिक महत्व : होली से जुड़ी प्रमुख कथा प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप और होलिका की है। हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को आदेश दिया, लेकिन अंततः होलिका खुद जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। यह कथा यह दर्शाती है कि सत्य और भक्ति की जीत होती है और अहंकार तथा अधर्म का नाश निश्चित है।
एक अन्य कथा भगवान कृष्ण और राधा से जुड़ी है। माना जाता है कि कृष्ण ने अपनी गहरे रंग की त्वचा के कारण राधा और अन्य गोपियों के साथ रंग खेलने की परंपरा शुरू की थी।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व : समरसता और भाईचारे का प्रतीक – यह त्योहार जाति, धर्म और सामाजिक वर्ग की सीमाओं को मिटाकर समानता का संदेश देता है।
परंपराओं का संगम – विभिन्न राज्यों में होली अलग-अलग तरह से मनाई जाती है। जैसे, मथुरा-वृंदावन में लठमार होली, बंगाल में डोल पूर्णिमा, पंजाब में हल्ला होली, और बिहार-उत्तर प्रदेश में फगुआ के रूप में इसका आयोजन होता है।
संगीत और नृत्य – इस अवसर पर लोकगीत, ढोल, नृत्य और हास्य-व्यंग्य से भरपूर होली के रंग देखने को मिलते हैं।
कृषि और ऋतु परिवर्तन से संबंध : होली का पर्व बसंत ऋतु के आगमन का संकेत देता है। यह समय गेहूं और जौ की फसल कटाई से ठीक पहले आता है, इसलिए इसे कृषि उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
इस दिन होलिका दहन के समय अग्नि में नई फसल की बालियां भूनकर खाने की परंपरा है, जिसे "होला दान" कहा जाता है।
वैदिक ग्रंथों में होली के रंग और होली दहन का महत्व : होली का त्योहार प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। यह न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैदिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। वैदिक परंपरा में होली को "नवान्नेष्टि यज्ञ", "बसंतोत्सव" और "होलिका दहन" के रूप में वर्णित किया गया है।
होली के रंगों का वैदिक महत्व : वैदिक काल में रंगों का संबंध केवल आनंद और उत्सव से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और चिकित्सीय प्रभावों से भी जोड़ा जाता था।
रंगों का आध्यात्मिक प्रभाव : वैदिक मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक रंग का एक विशेष कंपन (वाइब्रेशन) होता है, जो मानसिक और शारीरिक ऊर्जा को संतुलित करता है।
रंगों का आयुर्वेदिक पक्ष : वैदिक ग्रंथों में वर्णित है कि प्राकृतिक रंगों का उपयोग शरीर की विभिन्न बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है। पहले गुलाल और अबीर हल्दी, टेसू के फूल, चंदन और अन्य जड़ी-बूटियों से बनाए जाते थे, जो त्वचा और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।
होली दहन (होलिका दहन) का वैदिक महत्व
होलिका दहन की परंपरा यज्ञ पर आधारित है, जिसमें अग्नि का उपयोग शुद्धिकरण और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए किया जाता है।
ऋग्वेद में अग्नि का महत्व :
ऋग्वेद में अग्नि को सभी पापों को जलाने वाली और शुद्धि प्रदान करने वाली शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। होलिका दहन इसी वैदिक अग्नि तत्व का प्रतीक है।
अथर्ववेद में होलिका का संदर्भ : अथर्ववेद में "रक्षोग्नि" (दुष्ट शक्तियों को नष्ट करने वाली अग्नि) का उल्लेख मिलता है। होलिका दहन इसी विचारधारा पर आधारित है, जहाँ बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है।
होली का पर्व केवल आनंद और रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि वैदिक परंपराओं, आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़ा एक समग्र पर्व है। होलिका दहन अग्नि शुद्धिकरण और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है, जबकि रंग मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं। इस प्रकार, होली केवल सामाजिक समरसता का त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति, ऋतुओं और आध्यात्मिक ऊर्जा का भी उत्सव है।
लेखक : रविंद्र आर्य 7838195666