भारतीय संस्कृति सदैव से ही मातृशक्ति की आराधक व पूजक के रूप में संसार में प्रसिद्ध है। शक्ति की उपासना और प्रथम स्थान की आराधना का तत्व भी शक्ति को माना जाता है। सनातन ग्रंथ मनुस्मृति में तो स्पष्ट लिखा भी है कि 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' यानी जहाँ स्त्री का सम्मान सर्वोपरि हो, वही व्यास वैदिका है, वहीं देवता निवास करते हैं। और विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसके नाम के आगे माता शब्द प्रयुक्त होता है। इस समय दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के ही सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के लिए चुनाव हो रहे हैं और इस पद के लिए दुनिया के सबसे बड़े राजनैतिक दल भाजपा एवं उसके सहयोगियों के समूह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने सतयुगीन माता शबरी की परम्परा में जन्मी द्रौपदी मुर्मू को प्रत्याशी बना कर उसी लोकतंत्र के मान में स्त्री के सामर्थ्य को सम्मानित किया है।
देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद के लिए हो रहे चुनाव के तहत एनडीए समर्थित उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का नाम लगातार मीडिया में चर्चा में बना हुआ है। और जल्द ही देश के अगले राष्ट्रपति कौन होंगे उसका परिणाम सामने होगा। देखा जाए तो देश के 15वें राष्ट्रपति चुनाव में हाशिए के एक समुदाय से किसी व्यक्ति का आना निश्चय ही बहुत बड़ी बात है। लोक सभा, राज्य सभा व विधानसभाओं में एनडीए के संख्या बल को देखते हुए द्रौपदी मुर्मू की जीत लगभग तय मानी जा रही है। भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल (2007-2015) के बाद द्रौपदी मुर्मू का दूसरी महिला राष्ट्रपति व आज़ादी के बाद जन्म लेने वालीं तथा देश की प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति बनना अपने अपने आप में ऐतिहासिक होगा।
ओडिशा के मयूरभंज में 1958 में जन्मी द्रौपदी मुर्मू का व्यक्तिगत जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा है। करियर के लिहाज़ से देखा जाए तो क्लर्क से लेकर पार्षद, विधायक, मंत्री, राज्यपाल होते हुए देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचना लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है। आधी आबादी के बावजूद लोकसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी 14 .36और राज्यसभा में 10है, जबकि वैश्विक औसत 22के करीब है। यहाँ तक कि महिला प्रतिनिधित्व के मसले पर हमारे पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश आदि भी हम से आगे हैं। ऐसे में द्रौपदी मुर्मू का शीर्ष नेतृत्व तक पहुँचना देश और पूरी दुनिया में महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
हाशिए को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए उनके बीच से प्रतिनिधित्व होना पूरे समुदाय को गर्व और आत्मविश्वास का अवसर प्रदान करता है। हमारे देश में राष्ट्रपति कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और सशस्त्र बलों का पदेन प्रमुख होता है। इस लिहाज़ से द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना विशेषकर महिलाओं के लिए आत्मविश्वास और गौरवपूर्ण क्षण है। इससे इनमें तादात्मीकरण और अनुकरण की प्रवृत्ति विकसित होगी, जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
हालांकि व्यावहारिक रूप से देश में संसदीय प्रणाली होने से राष्ट्रपति पद प्रतीकात्मक होने का अंदेशा रहता है। किंतु सैद्धांतिक रूप से ही सही देश के संवैधानिक प्रमुख के पद पर पहुँचना उल्लेखनीय है। ऐसे में यह आशा की जा सकती है कि द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने का दूरगामी प्रभाव सकारात्मक रूप से भारतीय राजनीति में महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा। और आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए चिंतारत लोकतांत्रिक समन्वय को भी तबके से शीर्ष तक पहुंचने का संदेश देगा।
भावना शर्मा
राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, मातृभाषा उन्नयन संस्थान,
दिल्ली, भारत