धर्मशास्त्र
शिव आराधना का उत्तम समय श्रावण मास
Paliwalwani
टोक. इस बार श्रावण मास का महीना 29 दिन का होगा। जो श्रवण नक्षत्र से शुरू हो कर श्रवण नक्षत्र मे पुर्ण होगा. इस महीने में कई प्रमुख त्योहार भी मनाए जाएंगे, इनमें हरियाली अमावस्या, हरियाली तीज, नागपंचमी आदि प्रमुख हैं।
इस महीने में शिवजी की पूजा, आराधना करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं। श्रावण मास का हर दिन विशेष महत्व रखता है, किसी भी दिन रुद्राभिषेक किया जा सकता है श्रावण माह में मुहुर्त में शिव वास देखने की जरूरत नही होती शिव का वास श्रावण माह में पृथ्वी पर ही माना गया है जिसमें आने वाले सोमवार बहुत ही खास माने जाते हैं। इस बार श्रावण में 5 सोमवार का योग बन रहा है। इस वर्ष श्रावण मास मे बनने वाले शुभ योग संयोग निम्न अनुसार है
- 22 जुलाई को श्रावण का पहला सोमवार रहेगा ,
- श्रावण का दूसरा सोमवार 29जुलाई को रहेगा।
- श्रावण का तीसरा सोमवार 5अगस्त को रहेगा।
- 12 अगस्त को श्रावण का चौथा सोमवार रहेगा।
- 19 अगस्त पांचवा सोमवार रहेगा,
श्रावण मास मे बनने वाले सर्वार्थ सिद्धि योग
- 22 जुलाई सोमवार सुबह 5-50 से रात्रि 22-21 तक
- 26 जुलाई शुक्रवार दिन मे 14-30 से 29-52 तक
- 28 जुलाई रविवार सुबह 5 -53 से11-47 तक
- 30 जुलाई मगलवार सुबह 5-54 से 10-23 तक
- 31 जुलाई बुधवार सुबह 5-54 से 10-12 तक
- 2 अगस्त शुक्रवार सुबह 10-58 से 29-56 तक
- 4 अगस्त रविवार को सुबह 5-56 से13-56 तक
- 14 अगस्त बुधवार सुबह 6-01 से 12-12 तक
- 18 अगस्त रविवार सुबह 6-03 से 10-14 तक
- 19 अगस्त सोमवार को सुबह 06-04 बजे से 8-10 बजे तक
इन योगो मे की गई शिव आराधना का विशेष फल प्राप्त होता है। मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोंक के निदेशक, महर्षि बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि इस महीने का नाम श्रावण रखा है इसका महत्व क्या है,
इस महीने का श्रावण नाम श्रवण नक्षत्र से पड़ा है क्योंकि इस महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में होता है। ये 27 में से 22वां नक्षत्र है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्रमा ग्रह है। श्रावण का अर्थ है सुनना, यानी इस महीने में भगवान के स्वरूप का श्रवण करना चाहिए ताकि मन के विकार दूर हो सकें और हम ईश्वर के निराकार स्वरूप को समझ सकें। इसलिए श्रावण मास में रुद्राभिषेक का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है।
रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही 'रुद्र' कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति- नाशयतीतिरुद्र: यानी कि भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।
हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन एवं अभिषेक से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक किया जाता है।