इंदौर
शकुनियों से जिस दिन पल्ला झाड़ लेंगे, श्रीकृष्ण भी हमारे द्वार चले आएंगे : प्रवीण ऋषि म.सा.
paliwalwani.comइंदौर. शकुनी का संग नहीं होता, तो दुर्योधन को सुधारना आसान होता. एक शकुनी के कारण ही आज सारे श्रीकृष्ण, विदुर, भीष्म पितामह, गांधारी और व्यास अपने जीवन में रो रहे हैं. एक शकुनी का रिश्ता सबको नाकाम बना देता है. शकुनी वह है जो हमारी गलतियों को अच्छा बताए, बदी को ने की बताए, पाप को पुण्य बताए, बुराई को अच्छाई बताए और हमारी सोच के दरवाजे बंद कर दे. शकुनी से हम जिस दिन पल्ला छटक लेंगे, संभालने के लिए श्रीकृष्ण हमारे द्वार चले आएंगे. आईए, पर्युषण की इस पावन बेला में हम सब संकल्प करें कि अपनी गलतियों में साथ देने वाले, गलत कामों में समर्थन और सहयोग देने वाले तथा गलत को सही बताने वाले शकुनियों से हम दूरी बनाए रखेंगे.
एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग, आनंद समवशरण पर चल रहे स्थानकवासी जैन समाज के पर्युषण महापर्व की दूसरे दिन की धर्मसभा में उपाध्यायश्री प.पू. प्रवीण ऋषि म.सा. ने वहां मौजूद समाजबंधुओं को इन शब्दों के साथ प्रभावी उदबोधन में संकल्प दिलाया कि जीवन में शुभ अशुभ और पाप-पुण्य रूपी दरवाजों मंे से शुभ और पुण्य के द्वार ही खुले रखेंगे. ‘नजर बदलें, नजारे बदल जाएंगे’ विषय पर उपाध्यायश्री के धाराप्रवाह उदबोधन को सुनने के लिए आज भी महावीर बाग परिसर में अतिरिक्त बैठक व्यवस्था करना पड़ी. धर्मसभा में प.पू. तीर्थेश ऋषि म.सा. ने भी अंतगड और कल्प सूत्र का वाचन किया. महासती आदर्श ज्योति म.सा. ने भी अपने प्रेरक विचार व्यक्त किए. प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से अचल चौधरी, रमेश भंडारी, जिनेश्वर जैन, प्रकाश भटेवरा, सतीशचंद्र तांतेड़, अभय झेलावत, गजेंद्र बोडाना, गजेंद्र तांतेड़, अशोक मंडलिक, अनुरोध जैन, संतोष जैन, टी.सी. जैन, राजेंद्र महाजन आदि ने सभी श्रावकों की अगवानी की. पर्युषण व्यवस्था समिति के संयोजक विमल चौरड़िया ने बताया कि आवासीय शिविर में शामिल साधक भी नियमित तपस्या कर रहे हैं. आनंद तीर्थ महिला परिषद की ओर से आज भी महावीर बाग में आकर्षक झांकी का निर्माण किया गया. सभा का संचालन जिनेश्वर जैन ने किया और आभार माना संतोष मामा ने.
कैकयी ने मंथरा को दासी नहीं रखा होता तो आज रामायण कुछ और ही होती
उपाध्यायश्री ने कहा कि पाप का द्वार बंद होते ही पुण्य का द्वार खुल जाता है. पाप नहीं आएगा तो पापी भी नहीं आएगा. जैन धर्म का परमात्मा किसी को बचाने नहीं आता, फिर भी हम बुलाते रहते हैं. आजकल तो बुलाने से नौकर भी नहीं आता. हमने परमात्मा की स्तुति प्रारंभ की है, याचना नहीं. केवल प्रवचन सुनने से ही हम कामयाब नहीं होंगे. व्यवहारिक प्रशिक्षण भी लेना पडेगा. नब्बे प्रतिशत लोग केवल घरों मंे ही गुस्सा करते हैं, बाहर तो उन्हें अपनी इमेज की चिंता रहती है. जीवन को सही ढंग से जीने के लिए अपनी नजर बदलना पड़ेगी. नजर नहीं बदल सकते तो प्रभु या गुरू के साथ ऐसा रिश्ता जोड़ लें कि सारे रास्ते बंद होने के बाद भी प्रभु चले आएं. हमारा परमात्मा भाव से बहुत सुखी है, भूखा नहीं. महावीर तो वहां भी जाते हैं, जहां न प्रेम है न श्रद्धा और न ही भक्ति। नजर बिगाड़ने वालों से बच कर रहना ही पड़ेगा. कैकयी ने मंथरा को दासी नहीं रखा होता तो आज रामायण कुछ और ही होती. जो हमारे जीवन को भ्रष्ट बना सकते हैं उनसे कोई मोहब्बत नहीं होना चाहिए.