कांकरोली। (विनिता पालीवाल की कलम से...) राजसमंद जिले में स्थित द्वारकाधीश मंदिर की पहचान पूरे भारत वर्ष में छाई हुई हैं...पूरे भारत में वैष्णव सम्प्रदाय का एकमात्र मंदिर जहा फागुन माह में गुलाल अबीर की जगह ठाकुरजी खेलते हैं अंगारो से होली...ओर फिर मंदिर परिसर से उठती है...ऐसी आवाज की वातावरण पूरा रोमांचित हो जाता है...मंदिर के परिसर में खड़े भक्तजन को एक बार ये सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि...ये वास्तविक है या फिर हॉलीवुड फिल्म का कोई सीन देख रहे हैं मगर ये सब ठाकुरजी के समक्ष असल में होता है...ऐसे दर्शन भारत भर में ओर किसी मंदिर में नही होते हैं।
कांकरोली स्थित द्वारकाधीश मंदिर में वैसे तो संपूर्ण पुष्टीमार्ग में होली का विशेष महत्व है वह प्रभु को होली पर विशेष मनोरथ अंगीकार करवाए जाते हैं...परंतु वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ कांकरोली स्थित प्रभु द्वारकाधीश मंदिर में होली पर एक विशेष तरह के दर्शन होते हैं...जिसे राल के दर्शन कहा जाता है... इन दर्शनों में प्रभु द्वारकाधीश के सम्मुख लकड़ी के दो बड़े बड़े बांसों पर कपड़ा बांधा जाता है...इस कपड़े को तेल में भिगोया जाता है...इस तेल में कपूर व अन्य जड़ी बूटियों को डाला जाता है... फिर इसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है...जब प्रभु के सम्मुख इसे रखा जाता है... तो वह गोस्वामी परिवार द्वारा इस अग्नि में पांच तरह की प्राकृतिक औषधियों पंच तत्व के साथ सिंघाड़े का आटा व राल डाली जाती है... जिससे अग्नि की जोरदार लपटें उठती है...एक दर्शन में ये 5 से 6 बार राल उड़ाई जाती है...राल के दर्शन करने आये वैष्णव जन मंदिर में आग की लपटें देख रोमांचित हो जाते हैं...इस हैरत अंगेज़ भरे दर्शनो में वैष्णव जनों के मुख से एक आवाज निकलती हैं...द्वारकाधीश के जयकारों के साथ... प्रभु के जयकारो से मंदिर परिसर गुंजयमान हो जाता है...
मंदिर के अनुसार पुरातन काल में मौसमी बीमारियों को भगाने के लिये कई तरह के उपाय किये जाते थे...जिसमें एक राल दर्शन भी महत्वपूर्ण है... जैसे की फाल्गुन माह में मौसम परिवर्तन का समय होता है... इस मौसम में जहां सर्दी जा रही है... वह गर्मी आ रही है... जो हमारे शरीर में बैक्टीरिया पैदा करती है... इससे हम बीमार होते हैं... राल से निकलने वाला पाच जड़ी बूटी के मिश्रण की सुगंध... जब हमारी सांसों में घुलती है... कोई बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को वह जड़ से खत्म कर देता है... होली डंडा रोपण के साथ ही यह दर्शन आरंभ होते हैं... जो डोल तक विशेष क्रम में लगभग 4 से 5 बार आयोजित होते हैं... होली डंडा रोपण के साथ ही बृजवासी ग्वाल बाल द्वारकाधीश मंदिर में रसिया का गान कर प्रभु को रीजाते हैं...
!! आओ चले बांध खुशियों की डोर...नही चाहिए अपनी तारीफो के शोर...बस आपका साथ चाहिए...समाज विकास की ओर !!
● पालीवाल वाणी ब्यूरो- विनिता पालीवाल...✍
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